फतेहपुर के जिस मकबरे को मंदिर बताकर हिंदू संगठनों ने काटा बवाल, जानिए उसका पूरा इतिहास

फतेहपुर जिले का अबू नगर इन दिनों सुर्खियों में है. यहां स्थित एक ऐतिहासिक मकबरे को लेकर सांप्रदायिक तनाव और राजनीतिक बहस तेज हो गई है. इतिहासकार सतीश द्विवेदी के मुताबिक, यह मकबरा मुगल बादशाह औरंगजेब के फौजदार अब्दुस समद का है.

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फतेहपुर में एक मंदिर और मकबरे को लेकर विवाद (Photo- Screengrab) फतेहपुर में एक मंदिर और मकबरे को लेकर विवाद (Photo- Screengrab)

संतोष शर्मा

  • फतेहपुर ,
  • 13 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 1:43 PM IST

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले का अबू नगर इन दिनों सुर्खियों में है. यहां स्थित एक ऐतिहासिक मकबरे को लेकर सांप्रदायिक तनाव और राजनीतिक बहस तेज हो गई है. सोमवार को हिंदू संगठनों और बीजेपी के जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल के आह्वान पर इस मकबरे में तोड़फोड़ की गई. घटना ने न केवल स्थानीय माहौल को गरमाया, बल्कि प्रदेश की राजनीति में भी हलचल मचा दी. 

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इतिहासकार की नज़र से मकबरे का 'सच'

इतिहासकार सतीश द्विवेदी के मुताबिक, यह मकबरा मुगल बादशाह औरंगजेब के फौजदार अब्दुस समद का है. द्विवेदी बताते हैं कि खजुआ के युद्ध में औरंगजेब ने अपने भाई शुजा को हराने के बाद फतेहपुर में डेरा डाला था. इसी दौरान यह इलाका औरंगजेब के सैन्य छावनी के रूप में विकसित हुआ, बाद में अब्दुस समद को यहीं बसाया गया. 

अब्दुस समद की 1699 में मृत्यु के बाद उसके बड़े बेटे अबू बकर ने यह मकबरा बनवाया, जिसमें अब्दुस समद और अबू बकर दोनों की मजार मौजूद है. अबू नगर का नाम भी अबू बकर के नाम पर रखा गया. 

इतिहासकार बताते हैं कि उस समय फतेहपुर में केवल दो मोहल्ले थे — अबू नगर और खेलदार. 1850 के सरकारी नक्शे में भी यही दो मोहल्ले दर्ज हैं, जबकि बाकी इलाका झील से घिरा था. 

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मकबरे पर हिंदू प्रतीकों की मौजूदगी

मकबरे की दीवारों और सजावट में कमल, कलश जैसे हिंदू प्रतीकों के निशान पाए गए हैं. इस पर इतिहासकार सतीश द्विवेदी का कहना है- “भले ही मकबरा अबू बकर ने बनवाया हो, लेकिन उस दौर में निर्माण कार्य हिंदू कारीगरों द्वारा ही किया जाता था. इसलिए ऐसे चिन्ह मिलना असामान्य नहीं है.”

तोड़फोड़ और सांप्रदायिक तनाव

बीते सोमवार को हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता और बीजेपी जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल के समर्थक मकबरे पर पहुंचे और इसे मंदिर बताते हुए तोड़फोड़ की. पुलिस ने इस घटना के बाद सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और शांति भंग करने के आरोप में 150 से अधिक लोगों पर मामला दर्ज किया है. 

हालांकि, सवाल उठ रहे हैं कि इस मामले में मुखलाल पाल का नाम FIR में क्यों नहीं है, जबकि वे कैमरे पर खुलेआम 11 अगस्त को वहां पहुंचने का आह्वान करते नजर आए. इस पर एसपी अनूप सिंह का कहना है कि पुलिस जांच कर रही है और फिलहाल कानून-व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान है. 

राजनीतिक तूल

घटना का राजनीतिक असर भी दिखा. मंगलवार को समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को यूपी विधानसभा के मानसून सत्र में उठाया. विपक्ष ने सरकार को लॉ एंड ऑर्डर पर घेरने की कोशिश की, जबकि सरकार ने बचाव में कहा कि दोषियों के खिलाफ नामजद FIR दर्ज की गई है और कार्रवाई होगी. 

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पुलिस की कार्रवाई जारी

फतेहपुर पुलिस का कहना है कि तोड़फोड़ के आरोपियों को पकड़ने के लिए छापेमारी की जा रही है. वहीं, इलाके में तनाव को देखते हुए पुलिस बल की तैनाती बढ़ा दी गई है. 

ग्राउंड रिपोर्ट में इतिहास और हकीकत

ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू संगठन और बीजेपी के जिला अध्यक्ष जहां इस संरचना को मंदिर बता रहे हैं, वहीं इतिहासकार और स्थानीय दस्तावेज इसे स्पष्ट रूप से मुगलकालीन मकबरा बताते हैं. लंबे समय से फतेहपुर के इतिहास को समझने वाले सतीश द्विवेदी कहते हैं 1969 में फतेहपुर के असोथर के रहने वाले हिंदू राजपूत परिवार के नाम पर यह जमीन थी. बाद में 20 अप्रैल 2012 को सरकारी दस्तावेजों में गाटा संख्या 753 पर यह 'मकबरा मांगी' राष्ट्रीय संपत्ति के तौर पर दर्ज हुई, जिसका मुतवल्ली मोहम्मद अनीश बनाया गया. इसका क्षेत्रफल 10 बीघा 17 बिस्वा है और सरकारी अभिलेखों में दर्ज है. कुल मिलाकर पूरा मामला दर्शाता है कि यह एक संरक्षित संपत्ति है. मकबरा-मंदिर विवाद की जड़ें इतिहास में ही नहीं, बल्कि आधिकारिक रिकॉर्ड में भी गहरी पड़ी हैं. 

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