पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में एक बार फिर तनाव बढ़ गया है. ऐसे वक्त में पाकिस्तान की ओर से न्यूक्लियर धमकियों का सिलसिला भी तेज हो गया है. हाल ही में पाकिस्तान के रेल मंत्री हनीफ अब्बासी ने खुलेआम भारत को परमाणु हमले की चेतावनी दी और दावा किया कि पाकिस्तान के पास '130 परमाणु हथियार' हैं.
लेकिन ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने ऐसे बयानों से भारत को धमकाने की कोशिश की हो. 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी, एक पाकिस्तानी मंत्री ने दावा किया था कि उनके पास '125 से 250 ग्राम' वजन वाले मिनी न्यूक्लियर बम हैं, जिन्हें 'लिमिटेड टारगेट' पर इस्तेमाल किया जा सकता है.
क्या सच में 125 ग्राम का परमाणु बम मुमकिन है?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या 125-250 ग्राम में कोई काम करने वाला परमाणु बम बनाया जा सकता है? जवाब है – नहीं. परमाणु बम (जैसे यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 आधारित) को काम करने के लिए एक न्यूनतम मात्रा की आवश्यकता होती है जिसे 'क्रिटिकल मास' कहा जाता है. यह वह मात्रा है, जो आत्मनिर्भर श्रृंखलाबद्ध रिएक्शन (chain reaction) के लिए जरूरी होती है.
आमतौर पर क्रिटिकल मास 5 से 50 किलोग्राम के बीच होती है, और यह बम के डिजाइन और इस्तेमाल की गई सामग्री पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए, हिरोशिमा पर गिराए गए 'लिटिल बॉय' बम में क्रिटिकल मास कुछ किलोग्राम था, जबकि पूरे बम का वजन करीब 4,400 किलोग्राम (4.4 टन) था.इस बम में यूरेनियम के दो हिस्सों को तेज गति से एक-दूसरे से टकराया गया था, जिससे क्रिटिकल मास पूरा हुआ और विस्फोट हुआ.
सिर्फ क्रिटिकल मास नहीं, पैकेजिंग और ट्रिगर का भी वजन होता है
परमाणु बम का केवल विखंडनीय पदार्थ ही भारी नहीं होता, बल्कि उसमें ट्रिगर मैकेनिज्म, डिटोनेशन सिस्टम, सुरक्षा उपकरण और कंटेनमेंट जैसी कई चीजें जुड़ी होती हैं.इसलिए, कुल मिलाकर देखा जाए तो 10-15 किलोग्राम से हल्का कोई भी कार्यशील परमाणु बम तकनीकी रूप से संभव नहीं है.ऐसे में ये समझा सकता है पाकिस्तान की धमकियां कितनी खोखली होती है.
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