कोरोना वायरस एक बार फिर लोगों की नींद उड़ाने लगा है. पहले सिंगापुर और हांगकांग में कोविड मामलों में तेजी आई और अब भारत में भी संक्रमण के केस धीरे-धीरे बढ़ने लगे हैं. मई की शुरुआत से ही देश के चार राज्यों में केस ज्यादा आ रहे हैं और अब तक दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है. ऐसे में जरूरी है कि हम समझें कि पहले भारत में कोरोना की तीन लहरों ने कैसे असर डाला था और हर बार इसका फैलाव किस तरह अलग रहा.
पहली लहर (जनवरी 2020 - फरवरी 2021):
कोविड का पहला मामला भारत में 30 जनवरी 2020 को केरल में सामने आया था. पहले 100 केस आने में करीब 46 दिन लगे और फिर 1000 केस तक पहुंचने में 15 दिन और लगे. शुरुआत में वायरस का फैलाव धीमा था क्योंकि संक्रमण विदेश से आए यात्रियों और उनके संपर्कों तक सीमित था. 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया जिससे वायरस के फैलाव पर लगाम लगी, लेकिन धीरे-धीरे मामले बढ़ते गए. सितंबर 2020 में पहली लहर चरम पर पहुंची, जब रोज़ाना करीब 93,000 केस दर्ज हो रहे थे. यह लहर 377 दिन तक चली और इसमें कुल 1.08 करोड़ मामले और 1.55 लाख मौतें दर्ज हुईं.
दूसरी लहर (मार्च 2021 - मई 2021):
दूसरी लहर का कहर बेहद भयावह था. मार्च 2021 में जैसे ही केस बढ़ने लगे, तेजी से हालात बिगड़ने लगे. डेल्टा वेरिएंट के कारण संक्रमण की रफ्तार बहुत तेज थी. 100 से 1000 दैनिक केस का आंकड़ा महज 10-12 दिनों में पार हो गया. अप्रैल-मई 2021 के बीच रोज़ाना 4 लाख तक केस दर्ज हुए. स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी दबाव पड़ा और मौतों की संख्या भी बहुत अधिक रही.
तीसरी लहर (दिसंबर 2021 - फरवरी 2022):
इस लहर की शुरुआत ओमिक्रॉन वेरिएंट से हुई, जो तेजी से फैलता था लेकिन लक्षण अपेक्षाकृत हल्के थे. सिर्फ 8 दिनों में ही केस 10,000 से 1 लाख दैनिक आंकड़े तक पहुंच गए. जनवरी 2022 में यह लहर अपने चरम पर थी, हालांकि अस्पताल में भर्ती और मौतें कम रहीं.
अब क्या खतरा है?
2025 में कोविड JN.1 वेरिएंट के कारण एक बार फिर दस्तक दे रहा है. 12 से 21 मई के बीच 164 नए मामले सामने आए हैं, जिनमें अकेले केरल में 69 केस हैं. भले ही अभी स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन पहले के अनुभव हमें सिखाते हैं कि सतर्क रहना ही सबसे बड़ा बचाव है.
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