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370 पर अकेले पड़े इमरान, मुस्लिम देशों ने भी दिया झटका

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 08 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 2:09 PM IST
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जम्मू-कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान कितना असहाय और मजबूर हो गया है, इसकी झलक मंगलवार को संसद के संयुक्त सत्र में प्रधानमंत्री इमरान खान के बयान में ही मिल गई. विपक्ष के सवालों से झल्लाए हुए इमरान खान पूछ बैठे, आखिर आप मुझसे क्या चाहते हैं? हम क्या करें? क्या हम हिंदुस्तान पर हमला कर दें?

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पाकिस्तान के विपक्षी दल के नेता शहबाज शरीफ और इमरान खान के बीच हुई छोटी सी बहस पाकिस्तान सरकार की लाचारगी को बयां कर गई. इमरान खान ने कहा कि वे दुनिया भर के नेताओं से फोन कर मदद मांग रहे हैं और कश्मीर पर हर संभव विकल्प पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने जब विपक्ष से ही पूछ लिया कि बताइए क्या किया जाए तो शहबाज केवल यह कहकर चुप हो गए कि उन्हें मजबूती से अपना पक्ष रखना चाहिए और इस मुश्किल घड़ी में देश में उत्साह भरना चाहिए.

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पाकिस्तान ने भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार खत्म करके और कूटनीतिक संबंधों में कमी लाने का जो फैसला किया है, उससे भारत से ज्यादा पाकिस्तान पर ही असर पड़ेगा. कूटनीतिक मोर्चे पर इमरान खान की सारी उम्मीदें धाराशायी हो चुकी हैं. दुनिया भर के नेताओं से लेकर हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर, इमरान खान कश्मीर के मुद्दे को उठा रहे हैं लेकिन उनके कंधे पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है. यहां तक कि कई मुस्लिम देश भी भारत के साथ खुलकर खड़े हो गए हैं.

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गल्फ न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूएई के राजदूत ने भारतीय कदम का स्वागत किया है. जहां अधिकतर मुस्लिम देश कश्मीर पर भारत सरकार के फैसले पर खामोश हैं, वहीं, यूएई ने खुलकर भारत का समर्थन किया है. दुबई आधारित न्यूज एजेंसी गल्फ न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में यूएई राजदूत डॉ. अहमद अल बन्ना ने कहा कि राज्यों का पुर्नगठन आजाद भारत के इतिहास में कोई अनोखी घटना नहीं है और इसका मकसद क्षेत्रीय असमानता को खत्म करना रहा है. उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि भारत सरकार के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करने में मदद मिलेगी. यूएई राजदूत ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित फैसला भारत का आंतरिक मामला है.

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मालदीव की सरकार ने कहा कि भारत ने अनुच्छेद 370 को लेकर जो फैसला किया है, वह उसका आंतरिक मामला है. सभी संप्रभु राष्ट्र के पास अधिकार है कि वह कानून में बदलाव कर सकता है.

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वहीं, सऊदी अरब की आधिकारिक न्यूज एजेंसी ने बताया है कि सऊदी क्राउन प्रिंस को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की तरफ से फोन कॉल आया था. इस दौरान क्राउन प्रिंस को कश्मीर के बदले हालात पर भी जानकारी दी गई. हालांकि, सऊदी की तरफ से ना तो पाक को कोई समर्थन मिला और ना ही सऊदी की तरफ से कोई बयान आया.

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पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने सख्त लफ्जों में बयान जारी किया लेकिन उसका पूरा ध्यान लद्दाख को लेकर था जहां पर वह अपना क्षेत्रीय दावा पेश करता रहता है. भारत की ओर से लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किए जाने पर आपत्ति जताते हुए चीन ने मंगलवार को कहा कि यह कदम उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता के खिलाफ है.

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चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुवा चुनयिंग ने जम्मू-कश्मीर में भारत द्वारा किए गए बदलावों पर कहा, "हाल के दिनों में भारतीय पक्ष ने अपने घरेलू कानूनों को इस तरह से संशोधित किया है, जिससे चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता को कमजोर किया जा सके. यह अस्वीकार्य है." उन्होंने कहा, "हम भारतीय पक्ष से सीमा मुद्दे पर सावधानी बरतने का आग्रह करते हैं, ताकि दोनों पक्षों के बीच पहुंचे संबंधित समझौतों का सख्ती से पालन किया जा सके और सीमावर्ती मुद्दे और न उलझें."

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वहीं, पाकिस्तान की चिंता पर चीन ने सिर्फ कश्मीर के विवादित क्षेत्र होने का जिक्र करते हुए कहा कि संबंधित पक्षों को संयम बरतने की जरूरत है. दोनों देशों को ऐसी कोई भी कार्रवाई करने से बचना चाहिए जिससे यथास्थिति में बदलाव हो और तनाव बढ़े.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कश्मीर मुद्दे पर भारत-पाक के बीच मध्यस्थता के प्रस्ताव की वजह से पाकिस्तान को यूएस से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उसने भी पाक को बिल्कुल भाव नहीं दिया. अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कश्मीर के हालात का संज्ञान लेते हुए सीधे शब्दों में कहा, हम इस बात को नोट करते हैं कि भारत सरकार ने कश्मीर पर अपने फैसले को सख्त तौर पर अपना आंतरिक मामला बताया है.

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तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने भले ही बाकी नेताओं से थोड़ा आगे जाकर पाकिस्तान का समर्थन किया हो लेकिन उन्होंने भी एक सीमित दायरे के भीतर ही प्रतिक्रिया दी. पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एर्दोगान ने इमरान खान को कश्मीर मसले पर जोरदार समर्थन देने के लिए आश्वस्त किया. इस बात पर संदेह ही है कि तुर्की भारत के साथ किसी भी तरह से व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्तों को किनारे करेगा.

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रही बात खुद को मुस्लिम दुनिया की आवाज कहने वाले इस्लामिक सहयोग संगठन की, तो उसके ऐतराज से भारत को बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है. जम्मू कश्मीर पर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) संपर्क समूह ने अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के भारत के निर्णय की निंदा की है. हालांकि, भारत की कूटनीतिक जीत ये है कि इस्लामिक संगठनों के सबसे दमदार देश यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) ने कश्मीर पर भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया है.

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इमरान ने यूके समकक्ष बोरिस जॉनसन को भी फोन घुमाया. इमरान ने पीएम जॉनसन को यूके के नवनियुक्त प्रधानमंत्री को पहले बधाई दी, फिर कश्मीर का राग छेड़ा. दोनों नेताओं ने यूके और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्ते के लिए प्रतिबद्धता जताई पर कश्मीर पर यूके का कोई बयान सामने नहीं आया. दूसरी तरफ, ब्रिटेन के विदेश सचिव डोमिनिक राब ने कहा, कश्मीर के हालात पर भारतीय समकक्ष के सामने अपनी चिंता जाहिर की लेकिन हम भारत सरकार के नजरिए से भी हालात को समझ रहे हैं.


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जम्मू-कश्मीर से लद्दाख क्षेत्र के अलग होने पर श्रीलंका भी भारत के साथ खड़ा हुआ है. श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने ट्वीट कर कहा कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख के अलग होने का रास्ता साफ हो गया है. लद्दाख की 70 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म से ताल्लुक रखती है. ऐसे में लद्दाख पहला भारतीय राज्य होगा, जहां बौद्ध बहुमत है. लद्दाख का पुनर्गठन भारत का आंतरिक मामला है. यह एक सुंदर क्षेत्र है, जो यात्रा के लायक है.

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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संघ ने भी केवल मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर चिंता जताई लेकिन कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारत सरकार के फैसले को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई. संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल ने सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की. कुल मिलाकर, पाकिस्तान को कहीं से भी कोई मदद मिलती नजर नहीं आ रही है.

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