हर मौसम में जा सकेंगे केदारनाथ, सुरंग खोलेगी साल भर का रास्ता, आसान होगी यात्रा

हाल ही में केंद्र सरकार ने केदारनाथ धाम तक साल भर यात्रा को सुगम बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. सड़क परिवहन मंत्रालय ने चौमासी से लिंचोली तक करीब 7 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने की योजना शुरू की है

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केदारनाथ जाना होगा आसान (Photo-ITG) केदारनाथ जाना होगा आसान (Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 6:06 PM IST

केदारनाथ धाम में हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. परंपरागत रूप से, केदारनाथ मंदिर मई से अक्टूबर-नवंबर तक खुला रहता है, क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर और आसपास के रास्ते बंद हो जाते हैं. जिससे लोगों के पास जाने के लिए वक्त काफी कम रहता है, लेकिन आने वाले वक्त में ऐसा हो सकता है कि श्रद्धालु साल भर वहां जा पाएं.

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हाल ही में केंद्र सरकार ने केदारनाथ धाम तक साल भर यात्रा को सुगम बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. सड़क परिवहन मंत्रालय ने चौमासी से लिंचोली तक करीब 7 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने की योजना शुरू की है. इस सुरंग के निर्माण से भक्त हर मौसम में, विशेष रूप से सर्दियों में, जब भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद हो जाते हैं, केदारनाथ धाम तक आसानी से पहुंच सकेंगे. इस परियोजना का शुरुआती सर्वे शुरू हो चुका है, और यह 2013 और 2024 की प्राकृतिक आपदाओं से सबक लेते हुए यात्रा को सुरक्षित और सुगम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

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फिलहाल केदारनाथ यात्रा मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के महीनों में सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, और तापमान 5 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है. मानसून के दौरान (जुलाई-अगस्त) भूस्खलन और बाढ़ का खतरा रहता है, जिसके कारण यात्रा जोखिम भरी हो सकती है. सर्दियों में (नवंबर से मार्च) भारी बर्फबारी के कारण मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, और भगवान केदारनाथ की पूजा उखीमठ में की जाती है.

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सुरंग से दूरी होगी कम

 प्रस्तावित 7 किलोमीटर की सुरंग न केवल यात्रा को मौसम की बाधाओं से मुक्त करेगी, बल्कि पैदल यात्रा की दूरी और समय को भी कम करेगी. वर्तमान में, गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक 16-18 किलोमीटर की पैदल यात्रा 5-7 घंटे ले सकती है, जो शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है. सुरंग के बनने से यह यात्रा अधिक सुगम और कम समय लेने वाली होगी, इसके अलावा, यह परियोजना भूस्खलन और बर्फबारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को भी कम करेगी.

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