मुगल भी नहीं काट पाए थे यह चमत्कारी पेड़, जानें क्यों खास है ये पिंडदान स्थल

पितृपक्ष के दौरान पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान का विशेष महत्व है. अगर आप भी इस साल पितृकर्म करने की सोच रहे हैं, तो मध्य प्रदेश का उज्जैन एक ऐसा पवित्र स्थल है.

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सिद्धवट आस्था और चमत्कार का प्रतीक (Photo: AI generated) सिद्धवट आस्था और चमत्कार का प्रतीक (Photo: AI generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:36 PM IST

Pind Daan 2025: हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समय पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए होता है. इस दौरान पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक चलेगा. वैसे तो पितृ कर्म के लिए गया जी धाम को सबसे पवित्र माना जाता है, लेकिन  मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी ऐसे कई प्राचीन और पवित्र स्थान हैं, जहां पितृ तर्पण का विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक है सिद्धवट तीर्थ, जहां एक ऐसा वटवृक्ष मौजूद है, जिसे मुगल शासक भी नहीं काट पाए थे. 

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पितरों को शांति देने वाले खास स्थान

उज्जैन में पितृ तर्पण के लिए तीन मुख्य स्थान हैं, सिद्धवट, गयाकोठा मंदिर और रामघाट. इनमें से गयाकोठा मंदिर का महत्व सबसे विशेष माना जाता है. हर साल यहां हजारों श्रद्धालु दूध और जल अर्पित कर अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि इसी स्थान पर फल्गु नदी गुप्त रूप से प्रकट हुई थी. यही कारण है कि सप्तऋषियों को साक्षी मानकर यहां किया गया श्राद्ध वही पुण्यफल देता है, जो बिहार के गया जी में श्राद्ध करने से प्राप्त होता है. इसके अलावा, क्षिप्रा नदी के पवित्र तट पर स्थित रामघाट भी पितृ कर्म और तर्पण के लिए अत्यंत पूजनीय स्थल है.

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सिद्धवट: एक चमत्कारी वटवृक्ष

उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित सिद्धवट तीर्थ को प्रेतशिला तीर्थ भी कहते हैं. यहां एक विशाल वटवृक्ष मौजूद है, जिसे सिद्धवट कहा जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस पवित्र पेड़ को स्वयं माता पार्वती ने लगाया था. वहीं धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का मुंडन संस्कार हुआ था, इसलिए यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण है.

इस वटवृक्ष से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है. कहा जाता है कि मुगल शासकों ने इसे कई बार कटवाने की कोशिश की थी. इतना ही नहीं, इसके ऊपर लोहे के तवे तक रखवा दिए गए, ताकि यह दोबारा अंकुरित न हो सके. लेकिन हर बार यह वटवृक्ष उन लोहे के तवों को चीरकर फिर से लहलहा उठा. आज भी यह वटवृक्ष उसी स्थान पर मजबूती से खड़ा है और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.

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150 साल पुराना वंशावली रिकॉर्ड

उज्जैन की एक और विशेषता यह है कि यहां के पुरोहितों के पास पीढ़ियों का हिसाब-किताब आज भी मौजूद है. बताया जाता है कि उनके पास लगभग 150 से 200 साल पुराना वंशावली रिकॉर्ड मौजूद है. डिजिटल युग में भी वे बिना किसी कंप्यूटर की मदद के, केवल गोत्र, समाज या गांव का नाम पूछकर किसी भी व्यक्ति की कई पीढ़ियों के बारे में जानकारी दे सकते हैं. 
 

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