सोचिए ज़रा… भारत जैसा देश. जहां हर गली, हर चौक, हर मोड़ पर एक नई कहानी है. कहीं ताजमहल है, जो मोहब्बत की निशानी है, कहीं गोवा है, जहां समंदर के किनारे सूरज ढलते ही नजारा बदल जाता है. जयपुर की हवाओं में गुलाबी रंग घुला है, तो वहीं वाराणसी की आरती, जो दिल को छू जाए.
14 दिनों में पूरा भारत घूमना नामुमकिन है, लेकिन अगर सही प्लानिंग हो, तो दो हफ़्तों में भारत के कई राज्यों की झलक देखी जा सकती है. यह एक ऐसी झलक होगी जो रंगों से भरी, आवाज़ों से गूंजती और खुशबूओं से महकती हुई, हमेशा के लिए आपकी यादों में बस जाएगी.
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शुरुआत यहीं से करनी चाहिए. दिल्ली, जहां लाल क़िला है, इंडिया गेट है और चांदनी चौक की गलियों में पुरानी दिल्ली की असली रौनक मिलती है. फिर आगरा, जहां ताजमहल को देखकर समझ आता है कि तस्वीर और हक़ीक़त में कितना फर्क है. उसके बाद जयपुर, आमेर किला, हवा महल और गुलाबी शहर की गलियां. यहां रिक्शे की सवारी रंगों और रौनक से भर देती है.
इंडिया में सफर का मतलब सिर्फ़ मंज़िल नहीं होता, सफर खुद एक किस्सा होता है और रात की ट्रेनें इस किस्से का हिस्सा हैं. रात में ट्रेन पकड़ लीजिए, सुबह उठिए तो नया शहर, नई हवा, नया बाज़ार. यही इंडिया है, जहां नींद भी आपको यात्रा कराती है.
दो हफ्तों की ट्रिप में सबसे मुश्किल फैसला यही होता है कि पहाड़ों की सैर करें या समंदर का मजा लें, क्योंकि 14 दिन में दोनों करना थका देने वाला और जल्दबाज़ी भरा होगा. अगर आपका मन ठंडी हवा, ऊंचे पहाड़ और गंगा की धारा के संग सुकून ढूंढने का है, तो मनाली या ऋषिकेश सही चुनाव हैं.
लेकिन अगर आपको नारियल के पेड़ों की छांव, सुनहरी रेत और समंदर की लहरों का साथ चाहिए, तो गोवा से बेहतर कोई जगह नहीं है. अगर आपको असली शांति चाहिए तो केरल के बैकवॉटर में हाउसबोट पर बैठ जाइए. पानी की धीमी आवाज़ और चारों तरफ फैली हरियाली ये अनुभव जिंदगी भर याद रहेगा.
अगर आपके दिमाग में इंडिया घूमने का मतलब सिर्फ़ दिल्ली, मुंबई या कोलकाता है, तो यकीन मानिए आपकी तस्वीर अधूरी रह जाएगी. क्योंकि भारत का असली स्वाद, असली रौनक और असली कहानियां तो बड़े शहरों से ज़्यादा छोटे कस्बों में मिलती हैं.
पुष्कर, जहां ऊंटों का मेला लगता है और गांव की गलियों में रंग-बिरंगे दृश्य बिखरे मिलते हैं. वहीं हम्पी, जहां खंडहरों के बीच भी इतिहास सांस लेता है और हर पत्थर कोई राज़ सुनाता है. इसके अलावा पुडुचेरी, जहां फ्रेंच गलियां अब भी यूरोप की झलक दिखाती हैं और हर मोड़ पर एक नई कहानी बसी है. यानी असली इंडिया वो है, जो इन कस्बों और छोटे शहरों की धड़कनों में बसता है.
भारत के हर शहर में इतना कुछ है कि महीनों में भी सब नहीं देखा जा सकता. लेकिन आपके पास सिर्फ़ 14 दिन हैं तो अपनाइए हाफ-डे फार्मूला. सुबह-सुबह सूरज निकलने से पहले किसी मंदिर या घाट पर पहुंच जाइए. उसके बाद दिन में लोकल बाज़ार और वहां का असली खाना का मजा लीजिए और फिर शाम होते-होते बैग पैक कर ट्रेन पकड़ लीजिए अगले शहर की ओर निकल पड़िए. यकीन मानिए, इस तरीके से कम वक्त में भी आप हर जगह का असली रंग महसूस कर पाएंगे.
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