सिर्फ पहाड़ नहीं अब तारे भी दिखाएंगे, जानें लद्दाख में कैसे शुरू हुआ एस्ट्रो-टूरिज्म

भारत में पर्यटन का एक नया और रोमांचक दौर शुरू हो गया है, जिसका केंद्र है पूर्वी लद्दाख का एक गांव. यह क्षेत्र अब देश का पहला डार्क स्काई रिज़र्व (HDSR) बन गया है, जो खगोल-पर्यटन (Astro-Tourism) के लिए एक स्वर्ग है.

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भारत में खगोल-पर्यटन की शुरुआत (Photo: Pixabay) भारत में खगोल-पर्यटन की शुरुआत (Photo: Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 07 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 3:33 PM IST

भारत में हमेशा से लोग पहाड़ों, जंगलों और ऐतिहासिक जगहों पर जाना पसंद करते रहे हैं, लेकिन अब देश में एक नए तरह का पर्यटन तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है, जिसे खगोल-पर्यटन (Astro-Tourism) कहते हैं. यह उन लोगों को आकर्षित कर रहा है जो तारों, ग्रहों और दूर की आकाशगंगाओं को देखना चाहते हैं. यह यात्रा उन लोगों के लिए है जो शहरों की रोशनी से दूर, एकदम अंधेरे और साफ़ आसमान की तलाश में हैं.

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हान्ले क्यों बना तारों को देखने का स्वर्ग?

भारत में खगोल-पर्यटन की शुरुआत लद्दाख के छोटे, ऐतिहासिक गांव हान्ले से हुई. हैहान्ले गांव, जो लद्दाख की हान्ले नदी घाटी में स्थित है. इसकी खासियत इसका साफ़ और अंधेरा आकाश है, जो रात में आकाशगंगाओं, तारा और अन्य खगोलीय पिंडों को देखने और उनकी तस्वीरें लेने के लिए बिल्कुल सही माना जाता है.

वैज्ञानिक दृष्टि से भी हान्ले का महत्व बड़ा है. यही कारण है कि दिसंबर 2022 में इसे हान्ले डार्क स्काई रिज़र्व (HDSR) घोषित किया गया, जिससे यह दुनिया भर के पेशेवर और शौकिया खगोलविदों (जो अंतरिक्षीय घटनाओं का अध्ययन करता है) के लिए खास केंद्र बन गया. डार्क स्काई रिज़र्व में कई प्रमुख वेधशालाएं मौजूद हैं, जैसे हिमालयन चंद्रा टेलीस्कोप (HCT), मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) और हाई-एल्टीट्यूड गामा रे टेलीस्कोप ऐरे (HAGAR).

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इन आधुनिक उपकरणों और अनूठे वातावरण के कारण हान्ले खगोल अनुसंधान और अवलोकन के लिए अद्वितीय स्थान बन चुका है, जो शोधकर्ताओं और तारों के प्रेमियों दोनों को समान रूप से आकर्षित करता है.

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स्थानीय लोगों को कैसे मिल रहा फायदा?

खगोल-पर्यटन सिर्फ वैज्ञानिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि हान्ले और आसपास के गांवों की अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा दे रहा है. दरअसल स्थानीय लोगों को इस नए पर्यटन का फायदा दिलाने के लिए भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने पहल की. इसके तहत 40 से अधिक लद्दाखी स्थानीय लोगों को खगोल-गाइड बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया और उन्हें पर्यटकों की मदद के लिए दूरबीनें दी गईं. ये प्रशिक्षित लोग अब "खगोल विज्ञान राजदूत" बनकर पर्यटकों को तारों और आकाशगंगाओं की जानकारी देते हैं. इससे उन्हें आय का नया साधन मिला है.

खगोल-पर्यटन होमस्टे और पारिस्थितिक पर्यटन को भी बढ़ावा दे रहा है. कई स्थानीय लोग, जो शिक्षा के लिए बड़े शहरों में गए थे, अब अपने गांव लौटकर खगोल-पर्यटन से जुड़े हैं. कई होमस्टे मालिक अपने परिसर में दूरबीनें लगाकर पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी बढ़ोतरी हो रही है.

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भविष्य की योजनाएं और विस्तार

विशेषज्ञों का मानना है कि हान्ले में खगोल-पर्यटन को सही ढंग से नियमित करने की आवश्यकता है, लेकिन इसकी सफलता ने पूरे देश में नए अवसरों के दरवाजे खोल दिए हैं. भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA)अब हिमालय क्षेत्र की अन्य राज्य सरकारों के साथ भी बातचीत कर रहा है, ताकि खगोल-पर्यटन को और लोकप्रिय बनाया जा सके और स्थानीय लोगों को खगोल-गाइड के रूप में प्रशिक्षित किया जा सके. हान्ले जैसा साफ़ और अंधेरा आकाश हर जगह नहीं है, लेकिन कई हिमालयी इलाकों में इसकी अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं.

यही कारण है कि IIA ने लद्दाख के अलग-अलग स्थानों पर 6-7 कैमरे लगाए हैं, ताकि खगोलीय पिंडों और घटनाओं का अवलोकन और रिकॉर्डिंग आसान हो सके. इस पर IIA की निदेशक प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम का कहान है कि हान्ले एक अद्वितीय और आशाजनक स्थान है, जहां धुंधले खगोलीय पिंडों की तस्वीरें लेना अन्य जगहों की तुलना में आसान है.

इस तरह से संक्षेप में कहा जाए तो हान्ले डार्क स्काई रिज़र्व न केवल विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय के लिए रोजगार और आर्थिक विकास का माध्यम तथा दुनिया भर के तारामय प्रेमियों के लिए एक नया यात्रा स्थल भी बन गया है.
 

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