यह मत समझिए कि भारत में अब असली सुकून और विरासत वाले हिल स्टेशन बचे ही नहीं हैं. दक्षिण भारत की नीलगिरि की पहाड़ियों में एक ऐसा जादुई ठिकाना है ऊटी, जहां सुबह से घाटी में गूंजने वाली एक सीटी आपको 117 साल पुराने एक शांत दौर में खींच ले जाती है.
आज जहां उत्तरी भारत के हिल स्टेशन पर्यटकों की भीड़ से भरे हैं, वहीं ऊटी में आज भी वह औपनिवेशिक शांति और कुदरत का वैभव बरकरार है, जिसे हर यात्री खोजता है. 7,350 फीट की ऊंचाई पर, यहां आपको बसों का शोर नहीं, बल्कि 20,000 से अधिक किस्मों के गुलाबों से भरे बाग और बादलों के बीच से गुजरती यूनेस्को की टॉय ट्रेन का सुकून मिलता है.
ऊटी की यात्रा का सबसे खास और अविस्मरणीय हिस्सा यहां की यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल टॉय ट्रेन है. यह 1908 में ब्रिटिश इंजीनियरों द्वारा बनाई गई एक इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल है, जो असंभव माने जाने वाले रास्तों पर विजय पाने की कहानी कहती है. मेट्टुपालयम से ऊटी तक की 5 घंटे की यह धीमी चढ़ाई किसी 'टाइम मशीन' से कम नहीं है.
यह ट्रेन 208 मोड़ों और 16 सुरंगों से होकर गुजरती है. ट्रेन की धीमी रफ्तार के कारण यात्री मैदानों से चाय बागानों, फिर देवदार के जंगलों और आखिर में बादलों के बीच पहुंचते हैं और प्रकृति को पूरी तरह महसूस करने का मौका मिलता है. इस ट्रेन में केवल 16 प्रथम श्रेणी सीटें होती हैं, जो इस पूरे नजारे को और भी ज्यादा निजी और खास बना देती हैं. कुन्नूर स्टेशन अपनी आर्ट डेको डिजाइन और हाथ से पेंट किए गए चिन्हों के साथ समय में रुका हुआ सा लगता है.
नीलगिरि की पहाड़ियां अपनी अद्वितीय शांति के लिए जानी जाती हैं. यहां जो भी पर्यटक आते हैं, वे तीन बड़े शहरों- ऊटी, कुन्नूर और कोटागिरी में बंट जाते हैं, जिससे संकरी गलियों में पर्यटकों की भीड़ वाली समस्या पैदा नहीं होती. यहां की शांति शिमला के मॉल रोड की भीड़ से दूर, पुराने विक्टोरियन ग्रीष्मकालीन महल के पास की शांति जैसी है. कुन्नूर में सुबहें बादलों के बीच जागने जैसी लगती हैं, जहां गीली मिट्टी और चाय की पत्तियों की खुशबू चीड़ के पेड़ों के साथ घुल-मिल जाती है. यहां डोड्डाबेट्टा पीक (लगभग 8,650 फीट) पर सूर्योदय का नजारा अद्भुत शांति का अनुभव देता है. यहां दूर से आती टॉय ट्रेन की सीटी ही एकमात्र यांत्रिक आवाज होती है, जो आपको सच में सुकून देती है.
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इन पहाड़ों को 'ब्लू माउंटेन्स' कहे जाने के पीछे एक अद्भुत प्राकृतिक रहस्य छिपा है. दरअसल पश्चिमी घाट की ये चोटियां अक्सर नीली धुंध में लिपटी रहती हैं. यह धुंध विशाल जंगलों से वाष्पित होते यूकेलिप्टस के तेल से बनती है. जब सूरज की रोशनी इन वाष्पों से होकर गुजरती है, तो ऐसा लगता है जैसे दूर की चोटियों पर हल्के नीले रंग फैल गए हों.
7,350 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऊटी, अपनी विक्टोरियन वास्तुकला के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक गर्मियों की कहानी कहता है. यह पूरा इलाका नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा है, जो तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों के संगम पर स्थित है और इस प्राकृतिक विरासत की सुरक्षा करता है.
ऊटी के बीचों-बीच प्राकृतिक सुंदरता अपने चरम पर पहुंच जाती है. यहां लगभग 10 एकड़ में फैला सरकारी गुलाब उद्यान है, जहां 2,800 किस्मों की 20,000 से ज्यादा गुलाब की झाड़ियां हैं. खास बात यह हे कि नवंबर में खिलने वाले ये गुलाब पहाड़ियों को लाल, क्रीम और मूंगा रंग से रंग देते हैं. यही वजह है कि सुबह 6:30 से 8 बजे के बीच की रोशनी में यहां फोटोग्राफी का शानदार अनुभव मिलता है. गुलाब ही नहीं, पास के बॉटनिकल गार्डन में आपको 55 एकड़ में फैली 1,000 पौधों की प्रजातियां मिलती हैं, जिनमें 2 करोड़ साल पुराना जीवाश्म पेड़ भी शामिल है, जो इस भूभाग की प्राचीन विरासत को दर्शाता है.
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नीलगिरि की यात्रा सिर्फ घूमना नहीं है, बल्कि यहां की स्थानीय संस्कृति में पूरी तरह डूब जाना भी है. आप चाय बागानों के दौरे कर सकते हैं, जहां पत्ती तोड़ने से लेकर कप तक की पूरी प्रक्रिया देखने को मिलती है. इसके साथ ही, स्थानीय टोडा आदिवासी कारीगरों द्वारा बनाई गई जटिल कढ़ाई को जरूर देखें. ये कपड़े कोई आम पर्यटक गहने नहीं हैं, ये कढ़ाई वाले कपड़े सचमुच संग्रहालय-स्तर की क्वालिटी रखते हैं और 2,000 साल पुरानी पहाड़ी संस्कृति को जीवंत रूप में दिखाते हैं.
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