मुंगेर की वो गुफा, जिसका गुप्त रास्ता 250 साल से एक अनसुलझा सवाल है

मुंगेर की ये गुफा सिर्फ इतिहास नहीं, एक रहस्य भी समेटे है. कहा जाता है इसका दूसरा सिरा कहीं और खुलता है, पर सदियों बाद भी कोई नहीं जान सका कि आखिर वो रास्ता जाता कहां है. जानिए इस गुफा से जुड़ी वो कहानी, जिसने इतिहासकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया.

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मीर कासिम की गुप्त सुरंग का प्रवेश द्वार (Photo: x.com/ @MungerIndex) मीर कासिम की गुप्त सुरंग का प्रवेश द्वार (Photo: x.com/ @MungerIndex)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 13 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:47 AM IST

अगर आप घूमने-फिरने के शौकीन हैं और किसी ऐसी जगह की तलाश में हैं, जहां रोमांच के साथ इतिहास और रहस्य भी भरपूर हो, तो बिहार के मुंगेर जिले में एक अनोखी जगह है जो आपके लिए एकदम सही रोमांच साबित हो सकती है. आपने कई गुफाओं के बारे में सुना होगा, जहां एक तरफ से अंदर जाओ और दूसरी तरफ से बाहर निकल जाओ. लेकिन क्या आपने कभी ऐसी गुफा के बारे में सुना है जिसका दूसरा किनारा 250 सालों से एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ हो?

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हम बात कर रहे हैं मुंगेर जिले में स्थित एक ऐसी ही रहस्यमयी गुफा की, जो आज भी लोगों के बीच गहरी जिज्ञासा पैदा करती है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि इसका दूसरा रास्ता कहां जाकर खुलता है. यह सिर्फ एक सुरंग नहीं, बल्कि भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय, नवाब मीर कासिम के दौर की एक जीती-जागती निशानी है. तो अगर आप इतिहास और रोमांच को एक साथ महसूस करना चाहते हैं, तो आइए जानते हैं क्या है इस प्राचीन गुफा का रोचक इतिहास और इससे जुड़ा अनसुलझा राज.

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मीर कासिम ने क्यों बनवाई थी ये गुप्त गुफा?

यह अनोखी गुफा आज मुंगेर के श्रीकृष्ण वाटिका पार्क में मौजूद है. इसका इतिहास करीब 250 साल पुराना है और यह सीधे नवाब मीर कासिम से जुड़ी हुई है. बात सन 1760 ईस्वी की है, जब ईस्ट इंडिया कंपनी की ताकत बढ़ रही थी. ऐसे में मीर कासिम, जो उस समय बंगाल के नवाब थे, उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते खतरे को देखते हुए एक बड़ा फैसला लिया. फैसला ये था कि उन्होंने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से बदलकर मुंगेर में शिफ्ट कर दी.

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मीर कासिम ने मुंगेर को न केवल अपनी नई राजधानी बनाया, बल्कि इसे एक मजबूत किले में भी बदल दिया ताकि वह और उनका खजाना सुरक्षित रहे. इसी सुरक्षा रणनीति के तहत उन्होंने गंगा नदी के कष्टहरणी घाट किनारे एक गुप्त गुफा का निर्माण करवाया. इस गुफा को बनवाने का मुख्य कारण था, अंग्रेजों के अचानक हमले से बचने के लिए एक सुरक्षित और गुप्त भागने का रास्ता तैयार करना. इतिहासकारों के अनुसार, मीर कासिम 1764 तक मुंगेर में रहे और इस दौरान उन्होंने अपनी सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी.

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250 साल बाद भी अनसुलझा है दूसरा छोर

आज भी जब आप इस गुफा को देखते हैं, तो इसका एक छोर पूरी तरह सुरक्षित और स्पष्ट नजर आता है, जिससे अंदर जाने का रास्ता साफ है. लेकिन असली रहस्य इसके दूसरे छोर पर टिका हुआ है. 250 साल बीत जाने के बाद भी, कोई भी व्यक्ति या संस्था इस गुफा के अंतिम सिरे का पता नहीं लगा पाई है. स्थानीय लोग और इतिहास में रुचि रखने वाले लोग आज भी इस गुमनाम रास्ते को खोजने की कोशिश कर रहे हैं. इस बारे में कई तरह की कहानियां और अनुमान लगाए जाते हैं. लोगों का मानना है कि गुफा का दूसरा छोर मुंगेर के मुफस्सिल थाना क्षेत्र की पीर पहाड़ी के पास स्थित हो सकता है.

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हालांकि, यह बात केवल अनुमानों पर आधारित है, क्योंकि आज तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है. यह गुफा मीर कासिम की चतुराई और अंग्रेजों के डर को दर्शाती है, लेकिन इसका अनसुलझा दूसरा सिरा आज भी मीर कासिम के सबसे बड़े गुप्त राज को अपने अंदर समाए हुए है.

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