मद्रास हाई कोर्ट ने एक विकलांग शख्स मनोज राजन के केस पर फैसला सुनाते हुए एक अनोखा कदम उठाया है. कोर्ट ने अनाथ मूक-बधिर मनोज को गोद ले लिया है. जस्टिस पीएन प्रकाश ने मनोज राजन की जान पर बने खतरे को भांपते हुए 'लोको पेरेंटिस' सिद्धांत के तहत उसे गोद लेने का फैसला सुनाया है. लेटिन शब्द लोको पेरेंटिस का इस्तेमाल 'माता-पिता की भूमिका' के लिए किया जाता है. इसके तहत किसी शख्स की कानूनी तौर पर जिम्मेदारी किसी संस्था या व्यक्ति विशेष को सौंपी जाती है.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के अनुसार 15 अगस्त 1979 को जन्मे मनोज को उनके पिता ने स्पेशल स्कूल में दाखिल किया था. 29 साल की उम्र में उनकी शादी प्रियदर्शिनी से कर दी गई. जिसने मनोज को मानसिक रोगी बताकर तलाक दे दी. लेकिन उसकी पिता की मृत्यु के बाद 2013 में फिर से उसकी कस्टडी पाने की कोशिश करने लगी. कामयाबी न मिलने पर प्रियदर्शिनी ने मनोज को स्पेशल होम से अगवा कर चर्च में फिर उससे शादी कर ली. उसी दिन मनोज की एक संपत्ति 1.6 करोड़ में बेच दी गई.
अब मद्रास हाई कोर्ट ने अनाथ मनोज के अभिभावक की भूमिका निभाने का फैसला लिया है. जज ने कहा है कि 'सारे सबूतों और परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट मनोज और उसकी संपत्ति के लिए लोको पेरेंटिस की भूमिका निभाएगा.' कोर्ट ने मनोज और उसकी संपत्ति की सुरक्षा की बात भी कही. मनोज को मदुरै के एक स्पेशल होम में रखा गया है जहां उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात की गई है.
सबा नाज़