जब कोई भी टीम भारत के खिलाफ नहीं दाग सकी थी एक भी गोल, हॉकी पर ऐसे दुनिया को नचाता था ये धुरंधर

हॉकी की दुनिया के अबतक के सबसे बड़े खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद, जिन्हें दुनिया हॉकी के जादूगर के नाम से जानती है. वह मेजर ध्यानचंद ही थे, जिन्होंने हॉकी की दुनिया में हिंदुस्तान को उन उंचाइयों तक पहुंचाया, जहां आजतक कोई टीम नहीं पहुंच सकी. 

Advertisement
मेजर ध्यानचंद मेजर ध्यानचंद

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 11:11 PM IST
  • 41 साल बाद भारत ने हॉकी ओलंपिक में जीता ब्रॉन्ज
  • कभी ओलंपिक में चलता था भारत का सिक्का
  • हॉकी स्टिक से दूसरे देशों को पस्त कर देते थे मेजर ध्यानचंद

एक जादूगर था जो अपनी हॉकी स्टिक से जादू दिखाता था, एक धुरंधर था जो हॉकी पर दुनिया के देशों के नचाता था. हॉकी की दुनिया के अबतक के सबसे बड़े खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद, जिन्हें दुनिया हॉकी के जादूगर के नाम से जानती है. वह मेजर ध्यानचंद ही थे, जिन्होंने हॉकी की दुनिया में हिंदुस्तान को उन उंचाइयों तक पहुंचाया, जहां आजतक कोई टीम नहीं पहुंच सकी. 

Advertisement

यह कहानी शुरू होती है साल 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक से, जहां भारतीय हॉकी ने ओलंपिक में पहली बार कदम रखा. जिस वक्त भारतीय हॉकी बॉम्बे बंदरगाह से रवाना हुई थी, उस वक्त सिर्फ तीन लोग उसे विदा करने आए थे, लेकिन उसके बाद जब भारतीय हॉकी गोल्ड जीतकर वापस लौटी तो उसे देखने हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. इस ओलंपिक की सबसे खास बात थी कि दुनिया की कोई भी टीम भारत के खिलाफ एक भी गोल नहीं कर सकी. 

बस यहीं से शुरू हुआ हॉकी में हिंदुस्तान के स्वर्णिम युग का सिलसिला. इसके बाद साल1932 में लॉस एंजेल्स ओलंपिक में आर्थिक मंदी के दौरान सिर्फ दो हॉकी मुकाबले हुए. यहां भारत के प्रदर्शन को देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

भारत ने पहले मुकाबले में जापान को 11-1 के भारी अंतर से हराया. वहीं अगले मुकाबले में अमेरिका को 24-1 के अंतर से मात दी. मेजबान अमेरिका के खिलाफ भारत ने औसतन हर तीन मिनट में एक गोल किया. अमेरिका की ओर से जो एक गोल किया गया उसकी कहानी भी दिलचस्प थी. मैच के दौरान गोलकीपर रिचर्ड एलन फैंस को ऑटोग्राफ देने व्यस्त हो गए. इस दौरान अमेरिका एक गोल करने में कामयाब रहा. 

Advertisement

यह भी पढ़ें- 1928-2021: एम्सटर्डम से टोक्यो ओलंपिक तक भारतीय हॉकी की विजय गाथा!

इसके बाद बारी आई साल 1936 में बर्लिन ओलंपिक की. यह ध्यानचंद का आखिरी ओलंपिक था, जहां भारत का मैजिक जारी रहा. भारत ने फाइनल मुकाबले में जर्मनी को 8-1 से मात दी. कहा जाता है कि इस शानदार प्रदर्शन से खुश होकर हिटलर ने ध्यानचंद को खाने पर बुलाया और उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने को कहा. हिटलर ने इसके बदले उन्हें मजबूत जर्मन सेना में कर्नल पद का लालच भी दिया,  लेकिन हिटलर को ध्यानचंद ने शानदार जवाब दिया. उन्होंने कहा, ''हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं वहां खुश हूं. मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा.''

इसके बाद वक्त बदलता रहा. ओलंपिक की जगहें बदलती रहीं, लेकिन भारत की जीत का सिलसिला कई सालों तक कायम रहा. भारतीय हॉकी के पास ओलंपिक के 8 गोल्ड मेडेल हैं, जबकि एक सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज हैं. आज से पहले साल 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारत ने आखिरी बार ओलंपिक में मेडल जीता था.  अब एक बार फिर भारत ने मेडल के सूखे को खत्म किया है, जहां से उसे फिर हॉकी को स्वर्णिम युग तक ले जाना है.

(आजतक ब्यूरो)

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement