जिस शख्स के एक शॉट पर सौ करोड़ लोग डेढ़ दशक तक झूमते रहे, जिसके हर फैसले पर एक देश ने भरोसा किया, जिसके आने की उम्मीद ही मैच का नतीजा तय कर देती थी. वो महेंद्र सिंह धोनी, खुद को 'पल दो पल का शायर' कहकर नीली जर्सी को खूंटी पर टांगकर चल दिए. माही ने आखिरी मैच करीब एक साल पहले खेला था, लेकिन संन्यास का ऐलान अब जाकर किया.
महेंद्र सिंह धोनी पर काफी कुछ लिखा गया, क्योंकि धोनी के किस्से कुछ ऐसे ही हैं. करीब दो दशक तक खेलने के बाद सचिन तेंदुलकर ऐसे मुकाम पर पहुंच गए थे, जब वो मैदान में फील्डिंग करते और उनके पास बॉल जाती तो पूरे मैदान की धड़कनें बढ़ जाती थीं. सचिन के बाद अगर किसी खिलाड़ी ने देश में ऐसा कल्ट पैदा किया तो वो महेंद्र सिंह धोनी ही रहे.
महेंद्र सिंह धोनी एक कप्तान, एक विकेटकीपर, एक बल्लेबाज, एक फिनिशर, एक लीडर, एक मेंटर सबकुछ रहे... पीढ़ी को अपना दीवाना बनाया. क्योंकि महेंद्र सिंह धोनी अपने हर किरदार में कुछ अलग और नया कर चले गए. हर रोल में माही ने कैसा जीवन बिताया, एक नजर डालते हैं...
महेंद्र सिंह धोनी – एक बल्लेबाज
रांची का एक लड़का जो लंबे-लंबे बाल रखता था, खेलता ऐसा कि सिर्फ छक्के मारना जानता था. 2004 में जब धोनी की एंट्री भारतीय टीम में हुई, तो कई विशेषज्ञों ने कई तरह के सवाल खड़े किए. क्योंकि धोनी अबतक आए बल्लेबाजों से अलग थे, ना उनके पास किताबी तकनीक थी और ना ही वैसा लंबा रिकॉर्ड. लेकिन, धोनी में उस वक्त एक निडरता थी, जिसकी दुनिया दीवानी बनी.
पाकिस्तान के खिलाफ 148 रनों की पारी ने दुनिया को ये दिखा दिया कि धोनी बड़े खिलाड़ी बन सकते हैं. उसके बाद लगातार कई वनडे सीरीज, फिर एक साल बाद टेस्ट मैच में पर्दापण धोनी के आगे का रास्ता खोल दिया. शुरुआती दो से तीन साल में बतौर बल्लेबाज धोनी की पहचान इतनी ही रही कि वो लंबे छक्के मारते हैं, अंत में आकर जल्दी रन बना सकते हैं. (पाकिस्तान में 2006 की सीरीज यादगार थी)
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लेकिन कप्तानी मिलने के बाद धोनी की बल्लेबाजी पूरी तरह से बदल गई, वो निचले क्रम में बल्लेबाजी करने लगे. आते ही ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करने वाला बल्लेबाज अब थोड़ा थमने लगा और उस जिम्मेदारी को संभालने लगा जो देश ने उनके कंधे पर रखी.
एक ऐसा बल्लेबाज जिसकी तकनीक क्रिकेट की किताबों से पूरी अलग थी, उन धोनी ने खुद के गेम को पूरी तरह से बदल दिया. 2007 से 2013 के बीच धोनी बल्लेबाजी के पीक पर रहे, जिसका नजारा दुनिया ने देखा. धोनी की बल्लेबाजी क्रिकेट फैंस के लिए एक भरोसा बन गई. 5-6-7 नंबर पर खेलकर धोनी ने अपने करियर के आधे से अधिक रन बना दिए, इतिहास के लिए यही काफी है.
90 टेस्ट: 4876 रन, 38.09 औसत
350 वनडे: 10773 रन, 50.57 औसत
98 टी-20: 1617 रन, 37.60 औसत
महेंद्र सिंह धोनी – विकेटकीपर
क्रिकेट में पहले विकेटकीपर की गिनती बतौर बल्लेबाज नहीं होती थी, माना जाता था कि एक खिलाड़ी जो विकेटकीपिंग करता है और कुछ बल्लेबाजी भी जान लेता है. मौजूदा दौर में मार्क बाउचर, एडम गिलक्रिस्ट जैसे धुरंधरों ने इस परंपरा को तोड़ा था. फिर 2004 में महेंद्र सिंह धोनी आए, उनके आने से पहले कुछ ही साल में भारत कई विकेटकीपर को आजमा चुका था. दिनेश कार्तिक, पार्थिव पटेल और राहुल द्रविड़ भी, लेकिन धोनी ने आकर इस जगह को ऐसा भरा कि डेढ़ दशक किसी की याद नहीं आई.
एक विकेटकीपर का स्थान किसी क्रिकेट टीम में काफी अहम होता है, क्योंकि फील्डिंग के वक्त कप्तान का करीब 30 फीसदी काम उसके जिम्मे होता है. क्योंकि उसकी जगह से बल्लेबाज के एंगल के तौर पर हर फील्डर का अंदाजा लगता है, जिसकी मदद से बॉलर-कप्तान को मदद मिल सकती है. धोनी ने एक साधारण विकेटकीपर के तौर पर ही शुरुआत की, हालांकि उनका बैकग्राउंड फुटबॉल के गोलकीपर वाला था.
लेकिन वक्त आगे बढ़ते-बढ़ते धोनी ने दुनिया को विकेटकीपिंग का अलग नजारा दिखाया. सिर्फ फील्ड सेट करना नहीं, बल्कि एक विकेटकीपर कुछ सेकेंड में कितना बड़ा अंतर तय कर सकता है. महेंद्र सिंह धोनी ने अपने करियर में ना जाने कितने ऐसे स्टंप किए जो 'एक सेकेंड' से भी कम वक्त में हुए.
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धोनी ने विकेटकीपिंग को अलग मुकाम पर पहुंचा दिया, वो बिना देखे स्टंप में गेंद मार देते थे. फील्डर के थ्रो को सिर्फ हाथ लगाकर स्टंप की ओर मोड़ देते थे, बल्लेबाज के सामने स्थिर रहते ताकि उसे बॉल आने का पता ना लगे और तुरंत गेंद पकड़ उसे रनआउट कर देते थे. इसके अलावा स्टंप के पीछे धोनी की कमेंट्री, गेंदबाजों को सलाह अक्सर सुर्खियां बटोरती रहीं. भविष्य में टीम इंडिया में जो भी विकेटकीपर आएगा, उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती यही रहेगी कि क्योंकि अब उसकी तुलना महेंद्र सिंह धोनी से होगी.
90 टेस्ट: 256 कैच, 38 स्टंप
350 वनडे: 321 कैच, 123 स्टंप
98 टी-20: 57 कैच, 34 स्टंप
महेंद्र सिंह धोनी – एक कप्तान
सचिन तेंदुलकर अक्सर इस बात का जिक्र करते हैं कि जब वो स्लिप में खड़े होते थे, तब युवा धोनी उन्हें इनपुट देते रहते थे और वो आगे जाकर सही साबित होते थे. यही कारण रहा कि 2007 के टी-20 विश्वकप के लिए उन्हें कप्तान चुना गया. सौरव गांगुली ने जब कप्तानी संभाली तो टीम काफी संकटों से गुजर रही थी, तब उन्होंने नए खिलाड़ियों की एक खेप तैयार की.
ऐसा ही महेंद्र सिंह धोनी के साथ हुआ, विश्वकप हारने के बाद टीम बिखरी हुई थी, ग्रेग चैपल वाला कांड भी हुआ था. ऐसे में धोनी को कप्तानी मिली, सिर्फ युवा खिलाड़ियों के साथ वो दक्षिण अफ्रीका के लिए उड़े और फिर इतिहास रच दिया. बतौर कप्तान धोनी की सोच और फैसले कैसे अलग रहे, यहां से ही साफ हो गया.
पाकिस्तान के खिलाफ बॉलआउट में गेंदबाजों से इतर रॉबिन उथप्पा और वीरेंद्र सहवाग को मौका देना, फाइनल में मिस्बाह के सामने जोगिंदर शर्मा से गेंद फेंकवा देना. धोनी ने अपनी दिमागी ताकत के जुए के संकेत दे दिए थे. अगले ही साल जब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जीती तो उन्होंने फिर इतिहास रचा. 2008, 2009, 2010, 2011 के दौरान टीम में कई दिग्गज थे ऐसे में धोनी को पकने में आसानी रही, उसके बावजूद उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए जिसके जरिए वो भविष्य की टीम बनाना चाहते थे.
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2011 के विश्वकप में युवराज को स्टार बनाना, विराट कोहली को मौका देना, श्रीसंत को फाइनल में खिलाना (नेहरा चोटिल हो गए थे इसलिए) और फिर फाइनल में विकेट गिरने पर खुद बल्लेबाजी के लिए आ जाना वो भी तब जब उनकी फॉर्म ठीक नहीं थी, ये कुछ ऐसे मौके रहे जिसने वर्ल्ड कप में भूमिका निभाई.
लेकिन बतौर कप्तान धोनी ने इसके बाद अपनी टीम बनाने पर जोर दिया, उन्होंने सीनियर खिलाड़ियों को खिलाने से इनकार कर दिया. नए खिलाड़ियों को मौका दिया, उनकी गलती को अपने सिर पर ले लिया. विराट कोहली, सुरेश रैना, रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा, रोहित शर्मा, युजवेंद्र चहल, कुलदीप यादव, उमेश यादव, मोहम्मद शमी ना जाने ऐसे कितने नाम हैं जिन्हें धोनी की कप्तानी के अंदर मौका मिला और वो आज सितारे बन गए.
2013 की चैम्पियंस ट्रॉफी में जब किसी ने उम्मीद ना की थी, तब सारे मैच जीतकर इन्हीं खिलाड़ियों के साथ धोनी ने इतिहास रचा. धोनी ने टेस्ट, टी-20 और वनडे में अपनी कप्तानी के अंदर टीम इंडिया को नंबर वन बनाया, विश्व कप जितवाए. यही कारण है कि उन्हें ना सिर्फ भारत का बल्कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट कप्तान माना जाता है.
60 टेस्ट: 27 जीत, 18 हार
200 वनडे: 110 जीत, 74 हार
72 टी-20: 41 जीत, 28 हार
महेंद्र सिंह धोनी – एक लीडर
किसी टीम का कप्तान होना और एक लीडर के तौर पर उभर जाने में धागे भर का अंतर है. धोनी ने इस अंतर को अपने हौसले से दूर किया. मैदान पर कई ऐसे मौके आए, जब महेंद्र सिंह धोनी ने अपने खिलाड़ियों में तब भरोसा जताया जब हर विश्लेषक उनके खिलाफ रहा. सचिन की गैरमौजूदगी में जब विराट कोहली को मौका मिला, तो हर किसी को उम्मीद थी सचिन लौटेंगे तो कोहली बाहर हो जाएंगे. एक लंबे फ्लॉप के वक्त भी धोनी ने कोहली को खिलाना ठीक समझा, ऐसा ही सुरेश रैना, आर अश्विन, रविंद्र जडेजा के साथ लंबे वक्त तक हुआ.
मैदान पर युजवेंद्र चहल और कुलदीप यादव की आधी से अधिक विकेट के हकदार महेंद्र सिंह धोनी रहे, क्योंकि स्टंप में आई आवाज से ये महसूस होता रहा कि इस गेंद के बारे में उन्होंने ही बताया था. हार्दिक पटेल को आखिरी ओवर कराने को दिया, पूरा ओवर पिट गया लेकिन आखिर में एक रन चाहिए था तो बल्लेबाज को खुद ही दौड़कर रन आउट कर दिया. हालिया वक्त के कई ऐसे किस्से हैं जो धोनी को सबसे अलग बनाते थे.
एक युवा टीम में जब हर किसी को टीम में अपनी जगह बचाने की चिंता होती रही, तब महेंद्र सिंह धोनी ने सिर्फ इतना कहा कि युवा खिलाड़ी सिर्फ प्रोसेस पर ध्यान दें, अगर अच्छा प्रोसेस रहा तो नतीजा हक में आएगा. वो वही लीडर रहे, जिन्होंने अगर अच्छी गेंद पर छक्का लगा हो तो गेंदबाज के लिए ताली जरूर बजाई.
जब धोनी को उनके पता ही नहीं चला कि उनका चयन हो गया और छूट गई फ्लाईट...
साउथ अफ्रीका के खिलाफ जब विराट कोहली ने मैच विनिंग पारी खेली और जीतने के लिए सिर्फ एक रन चाहिए था, तब धोनी स्ट्राइक पर थे. लेकिन धोनी ने डॉट बॉल खेली, ताकि अगले ओवर में स्ट्राइक कोहली के पास आए और वो जीतने वाला रन बनाए. एक लीडर की पहचान ऐसे ही वक्त पर होती है, जब जीत का क्रेडिट वो टीम के खिलाड़ियों को दे दे, ऐसी कई तस्वीरें मिलेंगी जहां धोनी जीतने के बाद ट्रॉफी टीम के किसी युवा खिलाड़ी को पकड़ा कर निकल जाएं और खुद कोने में खड़े हो.
ऐसे में महेंद्र सिंह धोनी की गिनती ना सिर्फ एक बेहतरीन कप्तान के तौर पर होती रहेगी, बल्कि एक ऐसे लीडर के तौर पर भी होगी जिसने अपने खिलाड़ियों को खुलकर खेलने की आजादी दी और उनमें भरोसा जताया.
महेंद्र सिंह धोनी – एक फिनिशर
ऑस्ट्रेलिया के माइकल बेवन जब बल्लेबाजी करने उतरते थे, तब वो कमाल करते थे. यही कारण रहा कि मैच की पहली गेंद से लेकर आखिरी गेंद तक ऑस्ट्रेलिया को कभी हारी हुई टीम नहीं माना जाता था, क्योंकि आखिर तक उम्मीद रहती थी. भारतीय टीम के लिए वो दर्जा महेंद्र सिंह धोनी का रहा, जो चमत्कार साबित हुआ.
2012 की सीबी सीरीज में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी ओवर में छक्का मारना हो, श्रीलंका के खिलाफ आखिरी बॉल में मैच को टाई कराना हो, धोनी ने हर किसी को हैरान किया. 2013 में जब टीम इंडिया वेस्टइंडीज पहुंची तो धोनी पूरी सीरीज में नहीं खेल पाए और विराट कोहली कप्तानी कर रहे थे. लेकिन फाइनल मैच में धोनी की वापसी हुई, सबको लगा अगर टीम इंडिया जीती पूरा क्रेडिट धोनी ले जाएंगे.
उस मैच में भारतीय टीम की हालत खराब हो गई और धोनी ने अकेले दम पर ईशांत शर्मा के साथ पार्टनरशिप करके वो मैच जिता दिया जो नामुमकिन था, हां क्रेडिट धोनी को ही मिला लेकिन उन्होंने सीरीज की ट्रॉफी विराट कोहली को थमाई. इसके अलावा बतौर फिनिशर ऐसे कई मौके आए जब टॉप ऑर्डर पूरी तरह फ्लॉप हुआ, कभी 17 पर 5, कभी 29 पर पांच, कभी 60 पर 5, हर बार धोनी ने बल्लेबाजी की कमान संभाली और अपनी फेमस टुक-टुक से शुरुआत करते हुए अंत में हेलिकॉप्टर तक टीम को आगे ले गए.
महेंद्र सिंह धोनी के इस अंदाज की आलोचना भी हुई, क्योंकि वो हर मैच को पचासवें ओवर तक ले जाना चाहते थे. लेकिन 100 में 99 बार महेंद्र सिंह धोनी ही सही बैठते थे, इसलिए किसी को दुख नहीं हुआ. माही ने कई बार कहा कि शुरुआत में जल्दबाजी कर आप अपना मौका खो सकते हो, ऐसे में जीतने का चांस तभी है जब मैच आखिर तक जाएं.
एक बार मैच खत्म होने के बाद जब कमेंटटेर ने धोनी से पूछा कि क्या आप प्रेशर में नहीं होते आखिरी ओवर में इतने रन बनाने होते हैं, तब धोनी ने हंसते हुए सिर्फ यही कहा था कि मैं प्रेशर में होता हूं, लेकिन मेरे से ज्यादा प्रेशर में वो बॉलर होता है जिसे पता है कि वो मुझे बॉल डालेगा. धोनी ने ऐसे कई मैच जिताए जो हार के मुंह से निकाल कर लाए गए थे, इसलिए क्रिकेट की कहावतों में ‘अनहोनी को होनी कर दे, होनी को अनहोनी...नाम महेंद्र सिंह धोनी’ और ‘अरे..रुक ना. अभी धोनी है संभाल लेगा’ जैसी बातें कही जाने लगीं.
महेंद्र सिंह धोनी – विवादों का सफर
ऐसा नहीं हुआ कि महेंद्र सिंह धोनी का सफर सिर्फ अच्छा ही रहा, कई बार उनके साथ विवादों का नाता जुड़ा. कप्तान बनने के बाद सीनियर्स खिलाड़ियों को बाहर कर देना, वीरेंद्र सहवाग-गौतम गंभीर के साथ अनबन होना, ऑस्ट्रेलिया में पूरी टीम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में परेड करवा देना.
आम्रपाली ग्रुप के ग्राहकों को धोखा देने के बाद भी उनके साथ जुड़े रहना, आईपीएल फिक्सिंग मामले में धोनी का नाम आना और CSK के साथ उनके रिश्ते ऐसे कई मौके आए जब धोनी का नाम विवादों में आता रहा. लेकिन बतौर क्रिकेटर उन्होंने इतना नाम और इज्जत कमाई की ये बातें पीछे दबती रहीं.
अलविदा कैप्टन कूल...
2007 में जब महेंद्र सिंह धोनी के पुतले फूंके गए और उनके घर पर पत्थर मारे गए, तब बहुत विवाद रहा. धोनी की शख्सियत का अंदाजा इस अंदाज से लगाया जा सकता है कि अपने संन्यास के ऐलान करने वाले वीडियो में उन्होंने उस जले हुए पोस्टर का भी इस्तेमाल किया. धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास, अपनी शादी, वनडे की कप्तानी गुमनामी में ही छोड़ दी.
ऐसे में जो धोनी को जानते हैं कि वनडे से भी ऐसे ही अलविदा कह जाएंगे और ऐसा ही हुआ. ऐसे में अब महेंद्र सिंह धोनी के लिए एक फेयरवेल मैच की मांग करना बेइमानी होगी, वो भी खुद धोनी से ही. वो आईपीएल में दिखते रहेंगे, उसका ही आनंद लें.
मोहित ग्रोवर