रांची के एक साधारण परिवार से आकर क्रिकेट की दुनिया में छा जाने वाले धोनी (MS Dhoni) का जीवन 2004 में टीम इंडिया के लिए चयनित होने तक जीवन काफी चुनौतियों से भरा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपनी पुस्तक 'टीम लोकतंत्र' में लिखा है कि बचपन में धोनी ने टेनिस की गेंद से क्रिकेट खेलना शुरू किया था. धोनी दुबले-पतले थे, इसलिए क्रिकेट खेलते समय उन्हें विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी दे दी जाती थी.
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स्कूल के दिनों में धोनी फुटबॉल और बैडमिंटन में भी दिलचस्पी रखते थे. विकेटों के बीच तेज दौड़ के लिए मशहूर रहे धोनी की तेज रफ्तार के पीछे भी यही कारण माना जाता है. बचपन से ही धोनी छक्के मारने में माहिर थे. धोनी के छक्कों से घरों की खिड़कियों के कांच टूट जाते थे और जब उनसे इस संबंध में पूछा जाता था, तब वे किसी और के पत्थर मारने का बहाना बना देते थे.
जनरल कोच में टॉयलेट के पास बैठकर किया सफर
Mahendra Singh Dhoni जूनियर क्रिकेट के दिनों में कई बार बगैर रिजर्वेशन के ट्रेन के जनरल कोच में भी सफर किया. राजदीप ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि धोनी को कई कई दफे टॉयलेट के आसपास भी सोना पड़ा था. धोनी ने साल 1997 में स्कूल क्रिकेट के एक मैच में अपना पहला दोहरा शतक जड़ा था. तब वे 16 साल के थे. धोनी बाद में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की लोकल टीम में शामिल हो गए थे, जहां उन्हें पहले वेतन के तौर पर 625 रुपये मिले थे.
ऐसा रहा धोनी का टीम इंडिया तक का सफर
धोनी को सीसीएल और बिहार के लिए अंडर-19 में अच्छे प्रदर्शन का इनाम साल 2000 में मिला, जब उनका चयन रणजी के लिए हुआ. दिलचस्प वाकया यह हुआ कि रांची जैसे शहर का होने के कारण ईस्ट जोन की टीम में अपने चयन की जानकारी धोनी तक नहीं पहुंची. धोनी के दोस्त परमजीत को कोलकाता के किसी दोस्त से इसकी जानकारी हुई, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.
परमजीत ने एक टाटा सूमो गाड़ी किराए पर ली और दो अन्य दोस्तों के साथ धोनी को लेकर कोलकाता के लिए सड़क मार्ग से ही निकल पड़े. धोनी जब कोलकाता एयरपोर्ट पहुंचे, टीम अगरतला के लिए रवाना हो चुकी थी. धोनी ने ईस्ट जोन के लिए पहला मैच मिस कर दिया. हालांकि, धोनी इसके बाद वहां पहुंचे और टीम से जुड़े.
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