बल्ले और किताब दोनों में कमाया नाम... एक ऐसी कप्तान की कहानी, जहां जिद ही उसकी ताकत बनी

दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लॉरा वोलवार्ट की कहानी सिर्फ रन और रिकॉर्ड की नहीं, बल्कि मेहनत, संतुलन और जुनून की है. उन्होंने वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में 169 रनों की ऐतिहासिक पारी खेलकर टीम को पहली बार फाइनल में पहुंचाया. मैदान पर उनकी चमक के पीछे है किताबों से जुड़ा एक दूसरा सफर- यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ अफ्रीका से लाइफ साइंसेज में ग्रेजुएशन.

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लॉरा वोलवार्ट की दोहरी जीत की कहानी... (Photo- Instagtam,Getty) लॉरा वोलवार्ट की दोहरी जीत की कहानी... (Photo- Instagtam,Getty)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 30 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 4:47 PM IST

गुवाहाटी की शाम, वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल और दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लॉरा वोलवार्ट के बल्ले से निकलते हर चौके...दर्शक जान रहे थे कि वह इतिहास देख रहे हैं. 169 रनों की वह शानदार पारी सिर्फ एक रिकॉर्ड नहीं थी, बल्कि एक खिलाड़ी की मेहनत, संतुलन और जिद की कहानी थी जिसने किताबों और क्रिकेट दोनों को बराबरी से जिया.

26 साल की लॉरा वोलवार्ट ने बुधवार को न सिर्फ दक्षिण अफ्रीका को पहली बार वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचाया, बल्कि दक्षिण अफ्रीका की पहली महिला खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने 5000 वनडे रन पूरे किए और ऐसा करने वाली दुनिया की सिर्फ छठी बल्लेबाज...साथ ही, उनके नाम अब महिला वर्ल्ड कप में संयुक्त रूप से सबसे ज्यादा 50 प्लस स्कोर (13) का रिकॉर्ड भी है. दरअसल, उन्होंने मिताली राज के रिकॉर्ड- टूर्नामेंट के इतिहास में सबसे ज्यादा 50+ स्कोर की बराबरी की.

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किताबों की दुनिया से मैदान तक

कुछ ही हफ्ते पहले लॉरा ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर पोस्ट की थी- हाथों में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ अफ्रीका की डिग्री, स्क्रीन पर असाइनमेंट्स और बगल में क्रिकेट बैग. उन्होंने लिखा था, 'इस डिग्री में उतना ही समय लगा, जितना क्रिकेट ने लिया.'

क्रिकेट के बीच उन्होंने लाइफ साइंसेज में ग्रेजुएशन पूरा किया. वे कहती हैं, 'मैं हमेशा पढ़ाई पसंद करती रही हूं. जब क्रिकेट चुना, तो लगा थोड़ा रिस्क है क्योंकि तब महिलाओं का क्रिकेट इतना बड़ा नहीं था. लेकिन मैंने कभी पछतावा नहीं किया.'

‘क्रिकेट नर्ड’ और ‘स्टैटिस्टिक्स क्वीन’

लॉरा खुद को 'क्रिकेट नर्ड' कहती हैं. इंग्लैंड और श्रीलंका का मैच बैकग्राउंड में चलता रहता है और वे हर आंकड़ा याद रखती हैं. उन्हें आंकड़ों से प्यार है- अपने, टीम के और विरोधी के भी. शायद यही वजह है कि उन्होंने मैदान पर एक योजनाबद्ध बल्लेबाजी का नया अध्याय लिखा.

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पावर-हिटिंग... और बन गईं हिटर

कभी सिर्फ कवर ड्राइव के लिए मशहूर रही लॉरा ने अपने खेल को लगातार बदला. उन्होंने पावर-हिटिंग सीखी, जिम में खुद को मजबूत बनाया और 'अपनी ऑन-ड्राइव' पर घंटों मेहनत की. वह कहती हैं. 'अब कोई मुझे चौड़ाई नहीं देता, सब सीधे गेंदबाजी करते हैं—इसलिए मुझे लेग-साइड पर रन बनाना सीखना पड़ा,” 

कप्तान बनने की चुनौती

जब वे दक्षिण अफ्रीका की कप्तान बनीं, तब खुद पर भरोसा नहीं था. लेकिन कोच मंडला मशिम्बी के साथ उन्होंने खुद को और टीम को बदला. अब वह कहती हैं, 'पिछले छह महीनों में मुझे लगने लगा है कि मैं सही फैसले ले पा रही हूं. पहले मैं बस बल्लेबाज़ी सोचती थी, अब पूरे खेल को समझती हूं.'

वह कप्तान जिसने ‘संतुलन’ सिखाया

लॉरा वोलवार्ट की कहानी किसी सुपरस्टार की नहीं, बल्कि एक संतुलित इंसान की है- जो मैदान और किताब, दोनों को बराबर सम्मान देती हैं. वे बताती हैं कि असली जीत वही होती है, जब आप खुद को हर दिन थोड़ा बेहतर बनाते हैं.

 

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