दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 0-2 की टेस्ट सीरीज हार ने भारतीय क्रिकेट को अजीब-सी खामोशी दे दी थी. वह खामोशी जिसमें सवाल भी थे, नाराजगी भी और दिशाहीनता का एहसास भी. आलोचना का ताप इतना तेज था कि टीम का मनोबल तक पिघलता दिख रहा था. लेकिन क्रिकेट की खूबी ही यही है...एक हार आपको डुबोती है, तो अगला फॉर्मेट आपको किनारे भी लगा देता है.
रांची में खेले गए मौजूदा सीरीज के पहले वनडे ने यही किया. भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 17 रनों से हराकर सीरीज में 1-0 की बढ़त बनाई और टेस्ट की हार से बने माहौल को कुछ ही दिनों में हल्का कर दिया. लेकिन यह सिर्फ एक जीत नहीं थी- यह दो दिग्गजों की धाक थी. उन्हीं की वापसी ने वह सब बदल दिया जो पिछले दो हफ्तों से बिगड़ा पड़ा था.
37 साल के विराट कोहली पर पिछले दिनों सवालों की बौछार हुई- क्या अब उम्र पकड़ रही है? क्या वनडे में नए चेहरे को तरजीह मिलनी चाहिए? क्या समय आ गया है कि कोहली धीरे-धीरे वनडे से भी दूरी बनाने लगें? आलोचनाओं की ये आवाजें लगातार बढ़ रही थीं, मानो कोहली से ज्यादा उनकी उम्र खेल रही हो.
कोहली ने रांची में इन तमाम सवालों को एक झटके में हवा में उड़ा दिया. 135 रन, 52वां वनडे शतक और वही पुरानी क्लास- गैप ढूंढना, रन बनाते जाना और हर मौके पर नियंत्रण स्थापित करना.
उन्होंने यह साफ संदेश दे दिया- 'उम्र मत देखिए, आंकड़े देखिए. खेल आज भी मेरे काबू में है.' उनकी पारी मैच जिताऊ थी, पर उससे ज्यादा 'करियर जिताऊ' संदेश थी, जिसने सोशल मीडिया और क्रिकेट मंडलों में तुरंत एक नई बहस भड़का दी... टेस्ट में ज्यादा भरोसा युवाओं पर करना सही था? क्या टीम मैनेजमेंट ने फॉर्मेट की प्राथमिकता गलत तय की?
क्या बड़े फॉर्मेट में भी बड़े खिलाड़ी ही बैलेंस बनाते हैं?
कोहली का शतक दरअसल बल्ले की आवाज ही नहीं था- वह चयन, नेतृत्व और प्लानिंग की बहस की आग में नया ईंधन डालने वाला था. रोहित की मौजूदगी से टोन, टेंपो और भरोसा... तीनों बदले. वनडे की जर्सी पहनकर मैदान पर रोहित के उतरते ही लगा कि उनकी वह ‘शांत आक्रामकता’ टीम को कितना मिस हो रही थी.
कोहली और रोहित ने दूसरे विकेट के लिए 136 रन जोड़कर टीम की धड़कनें स्थिर कर दीं. टाइमिंग, स्टांस, शॉट सेलेक्शन.. सब बताता था कि भारत को अपना खोया हुआ बैलेंस मिल गया है.
... और फिर वही पुरानी बात सच हुई. जब रोहित-कोहली चलते हैं, भारत सहज रूप से जीत की तरफ बढ़ता है. उनकी साझेदारी ने टेस्ट की हार से टूटे भरोसे को फिर से जोड़ दिया. लेकिन इसने एक और बहस छेड़ दी.
क्या टेस्ट टीम ने इन दोनों दिग्गजों को 'दरकिनार' कर लड़ने की कोशिश कर गलती की? क्या भारत अब भी ट्रांजिशन के लिए तैयार नहीं? क्या टीम इंडिया की धुरी आज भी वही पुराना टॉप-ऑर्डर है?
वनडे ने माहौल बदला, लेकिन टेस्ट का दर्द अभी जिन्दा है
यह सच है कि एक जीत से व्हाइटवॉश के गम पर परदा नहीं डाला जा सकता. लेकिन यह भी सच है कि क्रिकेट फॉर्मेट-टू-फॉर्मेट भावनाओं को कितना बदल देता है. फैन्स और विशेषज्ञों के मन में एक और बहस को जन्म दिया... क्या भारतीय टीम का फ्यूचर अभी भी इन्हीं दिग्गजों पर टिका रहेगा? टेस्ट में हार ने सवाल और बढ़ा दिए थे, लेकिन वनडे में उनकी वापसी ने इसे अस्थायी राहत भी दी.
विश्व मोहन मिश्र