ओवल की जीत चमत्कारी... लेकिन टीम इंड‍िया को लेकर इन सवालों से बच नहीं सकते हेड कोच गौतम गंभीर

भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ 5 टेस्ट मैचों की सीरीज 2-2 से ड्रॉ की, जिसमें ओवल टेस्ट में 6 रनों से रोमांचक जीत ने सबका दिल जीत लिया. शुभमन गिल की कप्तानी में टीम ने शानदार वापसी की, लेकिन जीत की खुशी में कुछ गंभीर सवालों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

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हेड कोच गौतम गंभीर अब भी कई सवालों से बच नहीं सकते. (Photo, Getty) हेड कोच गौतम गंभीर अब भी कई सवालों से बच नहीं सकते. (Photo, Getty)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में जीत वो मरहम है जो हर चोट को भुला देती है. ओवल टेस्ट में मिली 6 रनों से रोमांचक जीत के साथ भारत ने 5 मैचों की टेस्ट सीरीज 2-2 से ड्रॉ करा दी. आखिरी मैच के इस नतीजे ने टीम इंडिया के जज्बे को सलाम किया और क्रिकेट जगत में जश्न का माहौल बना दिया.

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इंग्लैंड सीरीज के दौरान एजबेस्टन में 336 रनों की धमाकेदार जीत से लेकर ओल्ड ट्रैफर्ड में हाई-स्कोरिंग ड्रॉ और फिर ओवल में तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज और प्रसिद्ध कृष्णा के दम पर मिली रोमांचक जीत... इस दौरे में टीम इंडिया ने कई बार करिश्माई वापसी की.

शुभमन गिल की कप्तानी में टीम ने आत्मविश्वास से भरपूर खेल दिखाया, लेकिन उपलब्धियों के बीच कुछ ऐसे सवाल भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. गौतम गंभीर ने पिछले साल जुलाई में राहुल द्रविड़ की जगह भारत के मुख्य कोच का पद संभाला था. इसके बाद से भारत ने व्हाइट-बॉल क्रिकेट में कई उपलब्धियां हासिल कीं. इस साल की शुरुआत में चैम्पियंस ट्रॉफी जीतना और टी20 फॉर्मेट में निरंतरता से जीत दर्ज करना इनमें शामिल हैं.

लेकिन टेस्ट क्रिकेट की बात करें तो गंभीर के कार्यकाल में भारत ने अपना सबसे खराब दौर देखा. घरेलू जमीन पर न्यूजीलैंड के हाथों 0-3 की शर्मनाक हार और फिर ऑस्ट्रेलिया में 1-3 की हार ने टेस्ट क्रिकेट में भारत की साख को गहरा झटका दिया. 8 वर्षों में पहली बार बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी भारत की पकड़ से फिसल गई.

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... जब बीसीसीआई ने कुछ सख्त कदम उठाए

भारतीय टेस्ट टीम की इस गिरावट को देखते हुए बीसीसीआई ने कुछ सख्त कदम उठाए- सीनियर खिलाड़ियों के लिए घरेलू क्रिकेट खेलना अनिवार्य किया गया, निजी यात्राओं पर रोक लगी और दौरे के दौरान परिवारजनों की उपस्थिति सीमित कर दी गई.

रोहित शर्मा और विराट कोहली जैसे अनुभवी खिलाड़ियों पर भी दबाव साफ दिखा और आखिरकार उन्होंने एक साल पहले टी20 से संन्यास लेने के बाद अब टेस्ट क्रिकेट से भी विदाई ले ली.

लेकिन इस उथल-पुथल के दौर में गंभीर और उनके चुने हुए सहयोगी स्टाफ- सहायक कोच रयान टेन डोशेट और गेंदबाजी कोच मॉर्न मोर्कल आलोचना और कार्रवाई से लगभग बचे रहे. हां, एक सहायक कोच अभिषेक नायर को अप्रैल में फील्डिंग कोच टी दिलीप के साथ जरूर हटाया गया था, हालांकि दिलीप को इंग्लैंड दौरे के लिए फिर से बहाल कर दिया गया.

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इंग्लैंड में भारत की बहादुरी में गंभीर को श्रेय जरूर मिल सकता है, लेकिन टीम की कई बड़ी गलतियों की जिम्मेदारी भी उनसे जुड़ी है, क्योंकि वह फैसले उनके बिना संभव नहीं थे.

.... चयन नीति पर सवाल उठते रहे

पूरे दौरे के दौरान भारत की चयन नीति पर सवाल उठते रहे. सबसे बड़ी बहस का विषय बना. कुलदीप यादव को एक भी टेस्ट में मौका न देना, जबकि कई पूर्व दिग्गज लगातार उनके पक्ष में आवाज उठा रहे थे.

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दूसरी ओर, बाएं हाथ के बल्लेबाज और स्पिन ऑलराउंडर रवींद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर को लगातार खिलाया गया, खासकर जब सुंदर को एजबेस्टन टेस्ट में शामिल किया गया. लेकिन ओवल टेस्ट में दोनों ने मिलकर सिर्फ 10 ओवर डाले, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें केवल बल्लेबाज के तौर पर टीम में रखा गया था?

इसी तरह, मैनचेस्टर टेस्ट में अंशुल कम्बोज को डेब्यू कराना भी एक विवादित फैसला था , खासतौर पर तब, जब भारत 1-2 से पीछे था और मैच में मजबूत गेंदबाजी की दरकार थी.

कम्बोज में संभावनाएं हैं, उन्होंने आईपीएल और घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन ओल्ड ट्रैफर्ड में इंग्लैंड के 669 रनों के सामने वह फीके नजर आए. ऑलराउंडर शार्दुल ठाकुर भी पहले और चौथे टेस्ट में न तो बल्ले से कुछ खास कर पाए, न गेंद से ज्यादा  प्रभाव छोड़ सके.

क्यूरेटर से  जुबानी जंग- नकारात्मक कोचिंग शैली? 

गंभीर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई बार रक्षात्मक रुख अपनाया और ओवल में आखिरी टेस्ट से पहले क्यूरेटर के साथ जुबानी जंग में उलझना भी उनकी कोचिंग शैली को लेकर बनी नकारात्मक धारणा को और गहरा कर गया.

अप्रैल में  अभिषेक नायर की विदाई के बाद अब संभावना है कि बीसीसीआई सहायक कोच टेन डोशेट और गेंदबाजी कोच मोर्कल को भी हटाने पर विचार कर सकती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, घरेलू टेस्ट सीजन से पहले टीम के सहयोगी स्टाफ में नए चेहरे जोड़े जाने की तैयारी हो रही है.

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गंभीर काल - 13 टेस्ट मैचों में 3 जीत

ओवल में मिली जीत ने गौतम गंभीर को भले ही समय दिया हो, लेकिन आंकड़े अभी भी निराशाजनक हैं. टेस्ट कोच के तौर पर पिछले 13 मैचों में यह उनकी सिर्फ तीसरी जीत थी. भारत जीत हासिल करने में कामयाब रहा- रणनीतिक कौशल की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि खिलाड़ियों ने उस समय अच्छा प्रदर्शन किया जब उम्मीद लगभग खत्म हो चुकी थी.

क्या ड्रॉ ही रही टीम इंडिया की नई मंजिल?

मोहम्मद सिराज को लगातार उतार कर थका दिया गया. जसप्रीत बुमराह टेस्ट सीरीज में तीन से  ज्यादा मैच नहीं खेल पाते. कुलदीप यादव जैसे स्पिनर प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं बना पा रहे और अभिमन्यु ईश्वरन को बार-बार स्क्वॉड में रखकर भी डेब्यू का मौका नहीं दिया जा रहा.

ओवल में जीत ने शायद गौतम गंभीर की कोचिंग की कुर्सी को बचा लिया हो, लेकिन बतौर रेड-बॉल कोच उनकी सोच और रणनीति पर गंभीर सवाल बने हुए हैं. कब तक वह टी20 शैली की टीमों का चयन करते रहेंगे, जहां टेस्ट क्रिकेट में 20 विकेट लेने की क्षमता की जगह एक अनिश्चित बल्लेबाजी गहराई को प्राथमिकता दी जाती है?

क्या अब भारतीय क्रिकेट की महत्वाकांक्षाएं सिर्फ फॉलोऑन बचाने और टेस्ट सीरीज ड्रॉ करने तक सीमित रह गई हैं? या फिर इस टीम को उन जीतों के लिए लड़ना चाहिए, जिनका वह अपनी प्रतिभा के दम पर असल में हकदार है? भारत एक और वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल से चूकने का जोखिम नहीं उठा सकता.

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भारत की इंग्लैंड में बहादुरी पर जश्न तो बनता है, लेकिन उसी जश्न की आड़ में यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सीरीज बेहतर प्रबंधन से भारत की जीत में भी बदल सकती थी.

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