अजब! प्रजनन के लिए 4500 KM तैरकर ओडिशा से श्रीलंका होते हुए महाराष्ट्र पहुंच गया कछुआ

कछुए की यात्रा और घोंसला बनाने की प्रक्रिया अद्भुत है. ओडिशा से महाराष्ट्र तक 4500 किमी की यात्रा की एक ऑलिव रिडले कछुए ने. कछुए ने गुहागर समुद्र तट पर घोंसला बनाया और 125 अंडे दिए. ओडिशा से महाराष्ट्र तक श्रीलंका और केरल के रास्ते पहुंचा.

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चेन्नई के तट पर ऑलिव रिडले कछुआ. (प्रतीकात्मक फोटोः PTI) चेन्नई के तट पर ऑलिव रिडले कछुआ. (प्रतीकात्मक फोटोः PTI)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 17 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 11:50 AM IST

इस साल की शुरुआत में महाराष्ट्र वन विभाग की एक टीम ने रत्नागिरी के गुहागर समुद्र तट पर एक अकेले कछुए को घोंसला बनाते हुए पाया. करीब से जांच करने पर उन्होंने इसके दोनों सामने के फ्लिपर्स पर दो चमकदार धातु के टैग पाए. इस ऑलिव रिडले कछुए की पहचान 03233 के रूप में हुई औक इसकी एक कहानी सामने आई.

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कछुए की 4500 km की लंबी यात्रा

शोधकर्ताओं ने पाया कि कछुए ने लगभग 4500 किमी की लंबी और कठिन यात्रा की थी. ओडिशा के गहिरमाथा से शुरू होकर, पूर्वी तट के साथ नीचे की ओर श्रीलंका के आसपास मुड़कर, उत्तर में जाफना तक जाने के बाद, वापस मुड़कर तिरुवनंतपुरम तक और फिर पश्चिमी तट के साथ ऊपर की ओर बढ़ते हुए अंत में रत्नागिरी के तट पर पहुंचा.

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कछुए का घोंसला और 125 अंडे

गुहागर के सफेद रेत के समुद्र तट पर कछुए ने घोंसला बनाया और 125 अंडे दिए, जिनमें से कम से कम 107 अंडे फूट चुके हैं. फ्लिपर टैग पर 03233 नंबर था, जिसे  जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) ने 18 मार्च 2021 को ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री वन्यजीव अभयारण्य में टैग किया था.

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पहली बार ऐसा देखने को मिला

कछुए को 12000 ऑलिव रिडले कछुओं में से एक था जिन्हें उनके प्रवासन पैटर्न और भोजन के क्षेत्रों को ट्रैक करने में मदद करने के लिए उस वर्ष फ्लिपर्स पर टैग लगाए गए थे. वन्यजीव संस्थान ऑफ इंडिया (WII) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि कछुआ पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक आ सकता है. जबकि यह एक दुर्लभ घटना नहीं हो सकती है, यह शायद पहली बार दर्ज की गई घटना है जिसमें पूर्वी तट पर टैग किया गया कछुआ पश्चिमी तट पर पाया गया है. हमें पता नहीं था कि इस प्रजाति में ऐसा प्रवासन संभव है.

डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि कछुए ने श्रीलंका के आसपास 4500 किमी का रास्ता लिया, जो ऑलिव रिडले कछुओं के लिए एक ज्ञात भोजन क्षेत्र है. यह संभव है कि इसने रामेश्वरम द्वीप को तमिलनाडु की मुख्य भूमि से जोड़ने वाले पंबन कॉरिडोर के माध्यम से एक वैकल्पिक छोटा रास्ता लिया हो. 

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सिर्फ पूर्वी नहीं, पश्चिमी तटों की भी सुरक्षा करनी होगी

ZSI के डॉ. बसुदेव त्रिपाठी ने टर्टल 03233 को टैग किया था. वो कहते हैं कि महाराष्ट्र के रत्नागिरी के तट पर इसकी खोज ऑलिव रिडले कछुओं के घोंसला बनाने के पैटर्न पर नया प्रकाश डालती है. कछुए एक अद्वितीय सिंक्रनाइज़्ड मास नेस्टिंग व्यवहार प्रदर्शित करते हैं. इसे अरिबाडा कहा जाता है, जिसमें हजारों मादा कछुए अंडे देने के लिए समुद्र तटों पर एकत्रित होते हैं. 

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ऑलिव रिडले पूर्वी श्रीलंका से ओडिशा के तटों पर आएंगे. छह महीने रहेंगे और मास नेस्टिंग के बाद वापस जाएंगे. इस विशेष कछुए ने रत्नागिरी के तटों पर घोंसला बनाया, जो दर्शाता है कि सभी ऑलिव रिडले मास नेस्टिंग के लिए ओडिशा या पूर्वी तट पर नहीं आते हैं. कुछ पश्चिमी तटों की ओर यात्रा करते हैं. इसका मतलब है कि हमें न केवल पूर्वी तटों की रक्षा करनी होगी, बल्कि पश्चिमी तटों की भी रक्षा करनी होगी. 

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