दुनिया की मशहूर साइंटिस्ट और चिम्पैंजी एक्सपर्ट जेन गुडॉल का 91 वर्ष में निधन

दुनिया की मशहूर चिम्पैंजी वैज्ञानिक जेन गुडॉल का 91 वर्ष की आयु में 1 अक्टूबर 2025 को लॉस एंजिल्स में निधन हो गया. गोम्बे में 60 सालों के अध्ययन से उन्होंने चिम्पैंजियों की बुद्धिमत्ता साबित की. जेजीआई की संस्थापक रहीं, जो पर्यावरण संरक्षण सिखाती है.

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ये है जेन गुडॉल जिन्होंने चिम्पैंजियों की स्टडी, पर्यावरण संरक्षण के लिए 60 साल काम किया. (Photo: AP) ये है जेन गुडॉल जिन्होंने चिम्पैंजियों की स्टडी, पर्यावरण संरक्षण के लिए 60 साल काम किया. (Photo: AP)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:25 PM IST

दुनिया की सबसे मशहूर चिम्पैंजी विशेषज्ञ जेन गुडॉल का 91 साल की उम्र में निधन हो गया. जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट (जेजीआई) ने बुधवार (1 अक्टूबर 2025) को एक बयान जारी करके यह पुष्टि की. वे लॉस एंजिल्स में एक लेक्चर टूर पर थीं, जब प्राकृतिक कारणों से उनका निधन हो गया. जेन गुडॉल ने अपनी जिंदगी भर जानवरों, जंगलों और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष किया. 

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बचपन से जानवरों का प्यार: एक सपने की शुरुआत

डेम वैलरी जेन मॉरिस-गुडॉल का जन्म 3 अप्रैल 1934 को लंदन में हुआ था. बचपन से ही वे जानवरों की दीवानी थीं. उन्हें 1920 की किताब "द स्टोरी ऑफ डॉ. डूलिटल" बहुत पसंद थी, जिसमें एक डॉक्टर जानवरों से बात करता है. अफ्रीका के जंगलों और जानवरों के रहस्य उन्हें हमेशा आकर्षित करते थे.

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1957 में केन्या की यात्रा पर वे गईं. वहां उन्होंने पैलियोएंथ्रोपोलॉजिस्ट लुई लीकी से मुलाकात की. लीकी ने कहा कि चिम्पैंजी (पैन ट्रोग्लोडीटीज) के व्यवहार का अध्ययन करने से प्राचीन मानव पूर्वजों के बारे में पता चल सकता है. बस, यहीं से जेन की असली यात्रा शुरू हुई.

गोम्बे में चिम्पैंजी का साथ: क्रांति लाने वाली खोजें

1960 में जेन तंजानिया के गोम्बे स्ट्रीम नेशनल पार्क पहुंचीं. उस समय पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में उनके पास कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी. फिर भी, उन्होंने महीनों चुपचाप चिम्पैंजियों को देखा. उन्होंने बंदरों को नाम दिए – जैसे फीफी, पैशन और डेविड ग्रेबर्ड.

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1996 के एक पीबीएस डॉक्यूमेंट्री में जेन ने कहा कि केवल इंसान ही नहीं, जानवरों में भी व्यक्तित्व होता है. वे तर्कसंगत सोच सकते हैं, खुशी-दुख महसूस कर सकते हैं. 1966 में जेन गोम्बे से ब्रेक लेकर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट पूरी की. उनकी थीसिस में गोम्बे के सालों के अध्ययन का जिक्र था.

एक बड़ी खोज यह थी कि चिम्पैंजी औजार बनाते और इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने देखा कि एक बंदर ने टहनी को साफ करके दीमक के टीले से 'मछली' की तरह दीमकें निकालीं. यह खोज उस समय के मान्य सिद्धांत को चुनौती देती थी, जहां कहा जाता था कि केवल इंसान ही इतने बुद्धिमान होते हैं.

लीकी ने कहा कि अब हमें औजार की परिभाषा बदलनी होगी, इंसान की परिभाषा बदलनी होगी या चिम्पैंजी को इंसान मानना होगा. जेन ने पहली बार यह भी दर्ज किया कि चिम्पैंजी शिकार करते हैं और मांस खाते हैं. वैज्ञानिक उन्हें शाकाहारी मानते थे, लेकिन वे सर्वाहारी निकले.

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उन्होंने देखा कि बंदर एक-दूसरे को गले लगाते हैं जब कोई सदस्य मर जाता है. उन्होंने एक तरह की प्रारंभिक भाषा भी विकसित की. लेकिन जेन ने डरावनी बातें भी देखीं – जैसे प्रमुख मादा चिम्पैंजी अन्य मादाओं के बच्चों को मार देती हैं. अपनी किताब "रीजन फॉर होप: ए स्पिरिचुअल जर्नी" (2000) में जेन ने लिखा कि हमने पाया कि चिम्पैंजी में भी क्रूरता हो सकती है – वे हमारी तरह, प्रकृति का एक अंधेरा पहलू रखते हैं.

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पर्यावरण की रक्षा: जेजीआई की स्थापना और दुनिया भर की यात्रा

1970 के दशक में जेन गोम्बे और अफ्रीका भर में संरक्षण की चिंता करने लगीं. 1977 में उन्होंने गैर-लाभकारी संगठन जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट (जेजीआई) की स्थापना की. जेजीआई गोम्बे स्ट्रीम रिसर्च सेंटर को संभालता है – जो दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला चिम्पैंजी अध्ययन है. यह युवाओं को पर्यावरण संरक्षण सिखाता है.

निधन तक जेन साल में लगभग 300 दिन दुनिया घूमती रहीं. वे वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण संकट पर लेक्चर देतीं. उनके व्याख्यान अक्सर चिम्पैंजी की 'पैंट-हूटिंग' (एक तरह की पुकार) से शुरू होते. वे कहतीं कि व्यक्तिगत कार्रवाइयों की सामूहिक शक्ति पर्यावरण को बचा सकती है. 2002 के टाइम मैगजीन के एक निबंध में जेन ने लिखा कि हमारे भविष्य का सबसे बड़ा खतरा उदासीनता है. 

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यूनेस्को की डायरेक्टर-जनरल ऑड्रे अजौलाय ने बयान में कहा कि डॉ. जेन गुडॉल ने अपनी रिसर्च के सबक सबको सिखाया, खासकर युवाओं को. उन्होंने ग्रेट एप्स को देखने का तरीका बदल दिया. पिछले साल यूनेस्को में उनकी चिंपांजी वाली नमस्ते – जो बायोस्फीयर के लिए हमारे काम का इतना समर्थन करती थीं – सालों तक गूंजती रहेगी.

परिवार और विरासत: महिलाओं को प्रेरणा देने वाली जेन

जेन अपनी बहन जूडी वाटर्स, बेटे ह्यूगो एरिक लुई वैन लाविक (जिन्हें बचपन में 'ग्रब' कहते थे) और तीन पोते-पोतियों को छोड़ गईं. ग्रब गोम्बे में ही बड़े हुए. जेन ने 1977 के पीपल मैगजीन को बताया कि चिम्पैंजी के मां-बच्चे के बंधन ने उन्हें बेटे को पालने में मदद की. चिम्पैंजी में मां-बच्चे का बंधन बहुत मजबूत होता है. मैंने ग्रब को इसी तरह पाला.

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60 साल के प्राइमेट्स के काम और पर्यावरण संदेश फैलाने से जेन ने कई महिलाओं को वैज्ञानिक बनने के लिए प्रेरित किया. उन्हें कई सम्मान मिले: ब्रिटिश एम्पायर के ऑर्डर का कमांडर (1995), संयुक्त राष्ट्र का शांति दूत (2002), फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर (2006) और जनवरी 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम.

जेजीआई का बयान: साहस और समर्पण की मिसाल

जेजीआई के बयान में कहा गया कि जेन एक साहस और दृढ़ता की अनोखी मिसाल थीं. उन्होंने जीवन भर वन्यजीवों के खतरे के बारे में जागरूकता फैलाई, संरक्षण को बढ़ावा दिया और लोगों, जानवरों व प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण, टिकाऊ रिश्ते की प्रेरणा दी.

जेन गुडॉल सिर्फ एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की प्रेरणा थीं. उनकी विरासत चिम्पैंजी, जंगलों और पर्यावरण में जिंदा रहेगी. अगर हम सब थोड़ा-थोड़ा बदलाव करें, तो उनकी 'रीजन फॉर होप' सच हो सकती है. 

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