मौत के बाद शरीर कर दे मरने से इनकार तो... जानें क्या होती है 'थर्ड स्टेट'

इंसान और अन्या जीवों के मरने के बाद भी कुछ कोशिकाएं जिंदा रहती हैं. नई जिंदगी शुरू कर देती हैं. मेंढक की मरी हुई त्वचा कोशिकाएं 'जेनोबॉट' बनकर खुद चलती-फिरती हैं. घाव भरती हैं. अपने जैसे नए जेनोबॉट बनाती हैं. इंसान के मरे फेफड़ों की कोशिकाएं 'एंथ्रोबॉट' बनकर नसें ठीक करती हैं. वैज्ञानिक इसे 'थर्ड स्टेट' कहते हैं – न पूरी तरह जिंदा, न मुर्दा.

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जीव के मरने के बाद कुछ कोशिकाएं मरने से मना कर देती हैं. (Photo: Getty) जीव के मरने के बाद कुछ कोशिकाएं मरने से मना कर देती हैं. (Photo: Getty)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:59 PM IST

अब तक हम यही समझते थे कि इंसान या कोई जीव मर गया तो उसकी हर कोशिका (सेल) भी मर जाती है. लेकिन नए शोध ने सबको हैरान कर दिया है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि मरने के बाद भी कुछ कोशिकाएं जिंदा रहती हैं. खुद को नया रूप देती हैं. नई जिंदगी शुरू कर देती हैं. इसे उन्होंने 'थर्ड स्टेट' नाम दिया है – न पूरी तरह जिंदा, न पूरी तरह मुर्दा.

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मेंढक की मरी हुई कोशिकाओं से बना 'जेनोबॉट'

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक मरा हुआ मेंढक का भ्रूण लिया. उसकी त्वचा की कोशिकाएं निकालकर एक प्लेट में रख दीं. सोचा था कि कोशिकाएं सड़ जाएंगी. लेकिन हुआ उल्टा. कोशिकाएं आपस में जुड़ीं और छोटे-छोटे जीव जैसे बन गए.इन्हें नाम दिया गया 'जेनोबॉट'. 

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ये जेनोबॉट खुद चल सकते हैं. घाव भर सकते हैं. सबसे हैरानी की बात – नई कोशिकाओं को इकट्ठा करके अपने जैसे और जेनोबॉट बना लेते हैं. यानी मरे हुए मेंढक की कोशिकाएं नई पीढ़ी पैदा कर रही थीं.

इंसान की फेफड़ों की कोशिकाएं भी कर रही कमाल

अब यही प्रयोग इंसान की कोशिकाओं पर किया गया. मरे हुए इंसान के फेफड़ों की कोशिकाएं ली गईं. लैब में रखते ही वे 'एंथ्रोबॉट' नाम के छोटे-छोटे गोले बन गए. ये गोले पानी में तैर सकते हैं. पास की क्षतिग्रस्त नसों (नर्व सेल्स) को ठीक करने में मदद करते हैं. खास बात – इन कोशिकाओं में कोई जेनेटिक बदलाव नहीं किया गया. बस सही माहौल दिया तो वे खुद नया रूप ले लिया.

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इसका फायदा क्या होगा?

वैज्ञानिक कहते हैं कि आने वाले समय में यही तकनीक दवाइयों की नई दुनिया खोलेगी...

  • मरीज की अपनी कोशिकाएं लेकर छोटे रोबोट बनाए जाएंगे.  
  • ये रोबोट शरीर के अंदर जाएंगे. कैंसर की गांठ पर दवा पहुंचाएंगे.  
  • नसों को जोड़ेंगे, नसों में जमा गंदगी साफ करेंगे.  
  • काम खत्म होने के कुछ हफ्तों बाद खुद गल जाएंगे – कोई साइड इफेक्ट नहीं.  
  • क्योंकि मरीज की अपनी कोशिकाएं होंगी, इसलिए शरीर इन्हें रिजेक्ट नहीं करेगा.

मौत अब पहले जैसी नहीं रही

टफ्ट्स यूनिवर्सिटी रिसर्च के वैज्ञानिकों की ये रिसर्च नेचर जर्नल में छपी है. अब वैज्ञानिक कह रहे हैं – शरीर भले मर जाए, लेकिन उसकी कुछ कोशिकाएं अब भी 'क्रिएटिव' रहती हैं. वे नया रूप ले सकती हैं, नया काम कर सकती हैं. यानी मौत के बाद भी जिंदगी का एक टुकड़ा बाकी रह जाता है.

यह खोज रीजनरेटिव मेडिसिन (नया अंग बनाने की दवा) के लिए बहुत बड़ी उम्मीद है. आने वाले सालों में डॉक्टर बीमारियों का इलाज मरीज की मरी हुई कोशिकाओं से ही कर सकेंगे. वाकई प्रकृति कितने रहस्य छुपाए बैठी है.

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