Vikram Lander: 14 दिन के लिए स्लीप मोड में चंद्रयान का विक्रम लैंडर, 22 सितंबर को ऐसे किया जाएगा रिएक्टिवेट

Vikram Lander को चांद पर छलांग लगाने के बाद सुला दिया गया है. यह काम इसरो ने 4 सितंबर 2023 की सुबह 8 बजे किया. उसके सारे पेलोड्स बंद कर दिए गए हैं. सिर्फ रिसिवर ऑन रखा गया है. अब तक सारा का डेटा बेंगलुरु स्थिति ISTRAC को मिल चुका है. उम्मीद है कि अब यह 22 सितंबर को फिर से जाग जाएगा.

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बाएं से...  ये विक्रम की पुरानी जगह जहां उसने लैंड किया था. दाएं... ये है नई जगह. (सभी फोटोः ISRO) बाएं से... ये विक्रम की पुरानी जगह जहां उसने लैंड किया था. दाएं... ये है नई जगह. (सभी फोटोः ISRO)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:08 PM IST

ISRO ने प्रज्ञान को सुलाने के बाद आज यानी 4 सितंबर 2023 की सुबह 8 बजे विक्रम लैंडर को भी सुला दिया है. सुलाने से पहले ही उसने चांद पर छलांग लगाई थी. छलांग के पहले और बाद की फोटो भी ISRO ने जारी की है. जिसमें जगह बदली हुई दिख रही है. 

फिलहाल विक्रम लैंडर को सुलाने से पहले नई जगह पर सभी पेलोड्स से वहां की जांच-पड़ताल की गई. उसके बाद विक्रम लैंडर को सोने का कमांड दिया गया है. अब सारे पेलोड्स बंद हैं. सिर्फ रिसीवर ऑन है. ताकि वह बेंगलुरु से कमांड लेकर फिर से काम कर सके. 

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विक्रम की बैटरी जैसे ही धीरे-धीरे कम होगी. वो सोता हुआ चला जाएगा. अब इसरो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि 22 सितंबर 2023 को फिर से विक्रम लैंडर जाग सकता है. इससे पहले कल यानी 3 सितंबर को विक्रम लैंडर ने चांद पर छलांग लगाई थी. वह अपनी जगह से कूदकर 30-40 सेंटीमीटर दूर गया. वह हवा में 40 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक कूदा. विक्रम की यह छलांग भविष्य के सैंपल रिटर्न और इंसानी मिशन में ISRO की मदद करेगा. 

छलांग से पहले बंद हुआ था रोवर का रैंप

इस समय विक्रम लैंडर के सभी हिस्से और यंत्र सही से काम कर रहे हैं. यह छलांग लगाने से पहले विक्रम लैंडर के रैंप, चास्टे और इल्सा पेलोड्स को बंद कर दिया गया था. दोबारा सॉफ्ट लैंडिंग के बाद फिर से खोल दिया गया है. इसके पहले चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर को चांद पर ऐसी जगह लाकर स्लीप मोड में डाल दिया गया है, जहां दोबारा सूरज उगने पर उसे सौर ऊर्जा मिलेगी, तो वह वापस से एक्टिव हो जाएगा. 

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विक्रम लैंडर के पेलोड्स क्या काम करेंगे?

1. रंभा (RAMBHA)... यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा. 
2. चास्टे (ChaSTE)... यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा. 
3. इल्सा (ILSA)... यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा. 
4. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA) ... यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा. 

प्रज्ञान तो पहले ही सो चुका है 

चांद पर अगले एक-दो दिन में अंधेरा छाने लगेगा. सूरज ढल जाएगा. फिर लैंडर-रोवर 14-15 दिन तक रात में रहेंगे. यानी चांद की रात शुरू होने वाली है. लेकिन अभी चांद पर दिन है या यूं कहें की शाम होने वाली है. चंद्रयान 23 अगस्त 2023 की शाम छह बजकर चार मिनट पर चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारा गया था. उस समय वहां पर सूरज उग रहा था.     

इसरो की प्लानिंग थी कि चांद के जिस हिस्से पर लैंडर-रोवर उतरें, वहां अगले 14-15 दिनों तक सूरज की रोशनी पड़ती रहे. यानी अभी वहां पर दिन है. जो अगले चार-पांच दिन ही और रहेगी. उसके बाद अंधेरा होने लगेगा. सूरज की रोशनी लैंडर-रोवर पर नहीं पड़ेगी. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि पहले ही बैटरी को पूरी तरह से चार्ज करके सिस्टम बंद कर दिए जाएं. ताकि बाद में जरुरत पड़ने पर उन्हें फिर से ऑन किया जा सके. 

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प्रज्ञान के पेलोड्स क्या करेंगे? 

1. लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS). यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा. जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा. इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी. 

2. अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS). यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा. साथ ही खनिजों की खोज करेगा. 

अंधेरे के बाद क्या होगा? 

लैंडर और रोवर मे सोलर पैनल लगे हैं. वो सूरज से ऊर्जा लेकर चार्ज होते हैं. जब तक सूरज की रोशनी मिलेगी, उनकी बैटरी चार्ज होती रहेगी. वो काम करते रहेंगे. अंधेरा होने के बाद भी कुछ दिन या घंटे तक रोवर और लैंडर काम कर सकते हैं. 

ये उनके बैटरी की चार्जिंग पर निर्भर करता है. लेकिन इसके बाद वो अगले 14-15 दिनों के बाद सूरज उगने का इंतजार करेंगे. हो सकता है सूरज उगने के बाद वो फिर से एक्टिव हो जाएं. अगले 14-15 दिन काम करने के लिए.  
चंद्रमा पर हर 14-15 दिन में सूरज उगता है. फिर इतने ही दिन अस्त रहता है. यानी वहां इतने दिनों तक रोशनी रहती है. 

चंद्रमा अपनी धुरी पर घूमते हुए धरती का चक्कर लगाता रहता है. इसलिए उसका एक हिस्सा सूरज के सामने आता है, तो दूसरा पीछे चला जाता है. इसलिए हर 14-15 दिन पर सूरज की आकृति भी बदलती रहती है. इसरो इस बात को लेकर भरोसा जता रहा है कि सूरज की रोशनी मिलने पर लैंडर-रोवर फिर से एक्टिव हो जाएंगे.  

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