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धर्म

जानें, क्यों थे रावण के 10 सिर, क्यों करना पड़ा था राम के लिए यज्ञ?

aajtak.in
  • 08 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 8:15 AM IST
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दशहरे के त्योहार को अच्छाई की बुराई पर जीत का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म की पौराणिक कथा रामायण के अनुसार प्रभु श्रीराम ने दशहरे के दिन ही लंकापति रावण का वध किया था. शक्ति सम्राट रावण के बारे में कई ऐसी दिलचस्प बातें हैं जिनके बारे में शायद ही आपने पहले कभी सुना होगा. जैसे- क्या रावण के वाकई दस सिर थे या ये महज एक अफवाह है.

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आपको जानकर हैरानी होगी कि रावण के 10 नहीं थे. उनके गले में 9 मणियों की एक माला थी. ये माला रावण के 10 सिर होने का भ्रम पैदा करती थी. रावण को मणियों की यह माला उनकी मां ने दी थी.

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रावण को शिवजी का सबसे बड़ा भक्त बताया जाता है. शिवजी ने ही उन्हें रावण नाम दिया था. रावण शिवजी को अपने साथ कैलाश पर्वत से लंका ले जाना चाहता था जिसके लिए भगवान शिव तैयार नहीं थे. रावण ने जब कैलाश पर्वत उठाने का प्रयास किया तो शिव की ताकत से उनकी उंगली दब गई और वो दर्द से तड़पने लगा.

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दर्द में तड़पते हुए भी रावण शिवजी के सामने तांडव करने लगा, जिससे भगवान शिव आश्चार्य में पड़ गए. बाद में उन्होंने प्रसन्न होकर दशानन को रावण नाम दिया, जिसका अर्थ होता है तेज आवाज में दहाड़ना.

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रावण ने भगवान राम के लिए एक बार यज्ञ भी किया था. राम जी की सेना को समुद्र पर सेतु बनाने के लिए शिवजी का आशीर्वाद चाहिए था और इसके लिए एक यज्ञ करना था जो सिर्फ ज्ञानी ब्राह्मण द्वारा ही संभव था. इसके लिए राम ने रावण को यज्ञ करने का निमंत्रण भेजा. रावण शिव को काफी मानता था, इसलिए वो इस निमंत्रण को ठुकरा न सका.

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रावण को संगीत से भी अत्यंत प्रेम था. रावण को रूद्र वीणा बजाने में हराना लगभग नामुमकिन था. ऐसा कहा जाता है कि रावण जब भी परेशान होता था तो वीणा बजाता था.

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रावण ने अपने अंतिम समय में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण से बात की थी. इस दौरान उन्होंने लक्ष्मण को जीवन में सफलता से जुड़े कई मूल मंत्र दिए थे.

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रावण को वेद और संस्कृत का उच्च ज्ञान था. रावण को चारों वेदों का ज्ञान था. रावण को एक अच्छा रणनीतिकार और बुद्धीमानी ब्राह्मण का दर्जा मिला हुआ था.

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