हिंदू धर्म में कोविदार वृक्ष का विशेष आध्यात्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है. इसे कंचनार, कोविदार, पर्वतक, कपित्थ, आदि नाम से जाना जाता है. महाभारत और भागवत की कथाओं में इस बात का जिक्र मिलता है कि भगवान कृष्ण कोविदार वृक्ष के नीचे रास-लीला करते थे. इसलिए वृंदावन और ब्रज क्षेत्र में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है.
अयोध्या के राम मंदिर पर जो ध्वज लहराया गया है उस पर ओम और सूर्य के चिन्ह के साथ-साथ कोविदार वृक्ष का चित्र भी अंकित है. इस देव वृक्ष को घर में लगाना भी बहुत शुभ माना जाता है. ऐसा करने से कई समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है. भगवान की विशेष कृपा मिलती है. जानते हैं वास्तु के अनुसार, कोविदार वृक्ष को कहां लगाना चाहिए और इससे जुड़े नियम क्या हैं.
इस दिशा में लगाएं कोविदार वृक्ष
पूर्व दिशा सूर्य और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत मानी जाती है. यहां कोविदार लगाने से शांति, सौभाग्य और प्रगति बढ़ती है. धार्मिक दृष्टि से भी पूर्व शुभ माना जाता है. उत्तर दिशा धन के देवता कुबेर से संबंधित है. इस दिशा में कोविदार लगाने से आर्थिक स्थिरता और परिवार को उन्नति मिलती है. दक्षिण में इसे लगाने से बचें. दक्षिण-पश्चिम भी वास्तु में पेड़ लगाना शुभ नहीं माना जाता, इसलिए यहां इसे न लगाएं.
कोविदार वृक्ष लगाते समय रखें इन बातों का ध्यान
मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने पेड़ लगाना वास्तु में बाधा माना जाता है.पौधे और दीवार के बीच कम से कम 3–4 फीट का अंतर रखें. कोविदार देवी-कृष्ण से जुड़ा पवित्र वृक्ष माना जाता है, इसलिए इसके टूटे फूल न चढ़ाएं. इस वृक्ष को शुक्रवार या सोमवार को लगाना शुभ माना जाता है. कोविदार एक बाहरी (आउटडोर) वृक्ष है. इसे बालकनी या इनडोर बढ़ना मुश्किल होता है. अगर आपके घर के बाहर जगह खाली है तो आप इस पौधे के लगा सकते हैं.
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