Premanand Maharaj: मथुरा-वृंदावन के जाने माने प्रेमानंद महाराज के पास देश-विदेश से हर कोई अपनी जीवन से जुड़ी समस्याएं लेकर पहुंचता है. वहीं, महाराज जी बिना किसी भेदभाव के सबकी समस्याओं का हल भी बताते हैं. प्रेमानंद महाराज इस वार्तालाप के दौरान अपने अनुभव भी लोगों के साथ साझा करते हैं. ऐसी ही एक ओर अनुभव महाराज जी ने अपने भक्तों के साथ साझा करते हुए बताया कि भगवान भी उनसे बहुत ज्यादा प्रेम करते हैं.
प्रेमानंद महाराज रोते हुए बताया कि, 'भगवान सबसे कितना प्यार करते हैं. हमारा कुछ नहीं होता है, सिर्फ उनकी करुणा होती है. कलिकाल के कुचाल में मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाना बहुत ही खास और दुर्लभ बात है, पर जब वे कृपा करते हैं तो स्वयं खींच लेते हैं. यह खिंचाव कब होता है? जब मनुष्य किसी महापुरुष का आश्रय ले लेता है. इस बात को गांठ बांध लीजिए कि भगवान उसी को अपने पास खींचते हैं, जो महापुरुषों की शरण में जाता है. जो स्वयं साधना करता है, उसका फल यह होगा कि उसे स्वयं किसी बड़े महापुरुष के दर्शन होंगे. जब महापुरुष की उस व्यक्ति पर कृपा होगी तब भगवान उसको स्वीकार कर लेते हैं.'
महापुरुष का आश्रय है बेहद जरूरी
आगे प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि, 'आज तक किसी को भी भगवान ने स्वयं नहीं स्वीकार किया है. यदि प्रह्लाद जी भक्तराज बने, तो उसके पीछे देवर्षि नारद जी का वरदहस्त था. यदि ध्रुव जी को अटल पद की प्राप्ति हुई, तो उसमें भी देवर्षि नारद जी की ही कृपा थी. शास्त्रों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि महापुरुषों के आश्रय के बिना कोई भी भगवान का लाडला नहीं बन सकता है.
'भगवान की अपार कृपा निरंतर अपने प्रिय भक्तों पर बरस रही है, वे प्रेम और रस की वर्षा कर रहे हैं. पर उस रस को पी पाना हमारे बस की बात नहीं होती है. महापुरुष की करुणा हमें उस योग्य बनाती है, कभी-कभी तो जैसे हमें पकड़कर ही उस मार्ग पर ले आते हैं. हम स्वयं जब उस रस को पीने चल पड़ते हैं, तो उसकी प्राप्ति कभी नहीं होती है. यह रस केवल दैन्य भाव से ही ग्रहण किया जा सकता है और उस दैन्य का संस्कार महापुरुष ही हमारे भीतर जगाते हैं. '
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