Pitru Paksh 2022: भटकती आत्माओं को इस कुंड से मिलता है मोक्ष! पितरों को भी मिलती है मुक्ति

Pishach Mochan Kund: काशी के 'पिशाच मोचन कुंड' (Pishach mochan kund) में प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से होने वाली व्याधियों से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध (Tripindi Shradh) कराया जाता है जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ती होती है.

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(Image credit: Facebook/prabhu d boss and getty images) (Image credit: Facebook/prabhu d boss and getty images)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:22 AM IST

Pratipada Shraddha 2022: पितृपक्ष 2022 (Pitru Paksha 2022) 10 सितंबर 2022 से शुरू हो चुके हैं जो 25 सितंबर 2022 तक चलेंगे. इन दिनों में श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करके पूर्वजों को यह बताया जाता है कि आज भी वह परिवार का हिस्सा हैं. पितृ पक्ष में सनातनी अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान की परंपरा निभाते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु वाले पितरों की आत्माओं को मुक्ति कैसे मिल सकती है? मान्यताओं के मुताबिक, प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से होने वाली परेशानियों से मुक्ति दिलाने के लिए काशी नगरी में एक कुंड के पास खास अनुष्ठान करने से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिलती है.
 
यही कारण है कि हर साल पितृपक्ष के दौरान देशभर से लोग काशी पहुंचते हैं और पूर्वजों की भटकती आत्माओं के लिए खास अनुष्ठान कराते हैं. मान्यताओं के मुताबिक, मोक्ष नगरी काशी में एक खास कुंड है जहां पर पितृपक्ष के दौरान अनुष्ठान, श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की मुक्ति मिल सकती है. तो आइए वह कौन सा कुंड है? इस बारे में भी जान लीजिए.

काशी में कौन सा कुंड है?

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मान्यताओं के मुताबिक, पितरों (पूर्वजों) को अकाल मृत्यु और प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए मोक्ष नगरी काशी में चेतगंज थाने के पास एक कुंड है जिसे 'पिशाच मोचन कुंड' (Pishach mochan kund) कहा जाता है. इसके बारे में कहा जाता है कि पिशाच मोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से होने वाली व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है. 

पितरों की तिथि को मृत्यु हुई थी, अनुष्ठान और श्राद्ध उसी तिथि को होता है. गरुड़ पुराण में भी पिशाच मोचन कुंड का जिक्र मिलता है. बताया जाता है कि यह कुंड गंगा के धरती पर आने से पहले का है. यहां पर पितृपक्ष के दौरान अतृप्त और अशांत आत्माओं का श्राद्ध किया जाता है. मान्यताएं बताती हैं कि जिनकी अकाल मृत्यु हुई है उन लोगों के लिए देशभर में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड में ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है जिससे उन्हें मुख्ति मिलती है.

तीन तरह के होते हैं प्रेत

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पिशाच मोचन मंदिर के महंत मुन्नालाल पांडेय के मुताबिक, "त्रिपिंडी श्राद्ध और पिशाच मोचन तीर्थ का पुराणों में भी जिक्र है. इस कुंड के पास श्राद्ध करने से जैसी भी प्रेत योनी में गई आत्मा हो, उसे त्रिपिंडी श्राद्ध से मुक्ति मिल जाती है. अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की आत्मा को त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से ही शांत किया जाता है. त्रिपिंडी का अर्थ होता है तीन तरह के देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश. उसी तरह प्रेत आत्माएं भी तीन तरह की होती हैं, तामसी, राजसी और सात्विक. जिस तरह का प्रेत आत्मा होती है, उसे उसी लोक में त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से भेजा जाता है. 

भगवान शंकर का वरदान

मान्यताओं के मुताबिक, पितृपक्ष के 16 दिनों में पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं. मान्यता है कि भगवान शंकर ने स्वयं वरदान दिया था कि जो भी अपने पितरों को श्राद्ध कर्म इस कुंड पर करेगा उसे सभी बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है.

बताया जाता है कि इस कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है, बताया जाता है कि उस पेड़ पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है. ब्राम्हण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिल जाती है.पहले पिशाच मोचन कुंड पर श्राद्ध और तर्पण किया जाता है और फिर पिंडदान किया जाता है. इससे अतृप्त आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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