जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन वृंदावन में अद्भुत रौनक देखने को मिलती है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचकर इस उत्सव को देखते हैं. श्रीकृष्ण केवल भगवान ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन दर्शन का प्रतीक हैं. उनकी हर लीला में जीवन में बड़ी सीख हो सकती है. जन्माष्टमी पर भगवना का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है और विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग भी अर्पित किया जाता है. आइए आज आपको इसी के बारे में विस्तार से बताते हैं.
कब है जन्माष्टमी 2025?
कृष्ण जन्माष्टमी की अष्टमी तिथि 15 अगस्त को रात 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 16 अगस्त को रात 9 बजकर 34 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, इस साल 16 अगस्त शनिवार को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा. जन्माष्टमी का पूजन मुहूर्त 16 अगस्त को रात 12 बजकर 4 मिनट पर शुरू होकर 12 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगा. जिसकी अवधि कुल 43 मिनट की रहेगी.
कैसे करें श्रीकृष्ण का श्रृंगार?
श्रीकृष्ण का श्रृंगार प्रेम, श्रद्धा और पूरे भक्ति भाव से करना चाहिए. सबसे पहले भगवान को स्नान करवाकर स्वच्छ करें, फिर एक साफ कपड़े पर बैठाकर श्रृंगार शुरू करें.
श्रृंगार में ताजगी और सुंदरता लाने के लिए फूलों का खूब प्रयोग करें. गेंदा, गुलाब, मोगरा या चमेली के फूल भगवान को अति प्रिय हैं. भगवान को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं, क्योंकि पीला रंग उनका सबसे पसंदीदा रंग माना जाता है.
इसके बाद उनके माथे, गले और हाथों में चंदन का लेप लगाएं. यह न केवल भगवान के श्रृंगार को सुंदर बनाता है, बल्कि पूरे वातावरण में मधुरता और पवित्रता भी घोल देती है.
इस बात का खास ध्यान रखें कि श्रृंगार में काले रंग का प्रयोग न करें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है. यदि संभव हो तो भगवान को वैजयंती के फूल अर्पित करें. वैजयंती के फूल की माला भगवान को अत्यंत प्रिय होती है.
अंत में उनके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट या पगड़ी सजाएं. गले में फूलों की माला पहनाएं और हाथ में बांसुरी रखें. इस तरह आपका श्रृंगार न केवल सुंदर दिखेगा, बल्कि उसमें भक्ति और प्रेम की झलक भी दिखाई देगी. श्रृंगार के बाद लड्डू गोपाल को झूले पर विराजमान करें और झूले को फूलों से सजाएं. साथ ही भजन-कीर्तन के साथ भगवान को धीरे-धीरे झुलाएं.
श्रीकृष्ण को अर्पित होने वाला प्रसाद
प्रसाद में पंचामृत अवश्य शामिल करें और उसमें तुलसी दल डालना न भूलें, क्योंकि तुलसी भगवान को अत्यंत प्रिय है. साथ ही मेवा, माखन और मिश्री का भोग लगाएं. बाजार में मिलने वाले मिश्री के दाने की जगह अगर आप धागे वाली मिश्री को पीसकर इसका प्रसाद में प्रयोग करें तो ये ज्यादा उत्तम होगा. कई स्थानों पर धनिये की पंजीरी भी अर्पित की जाती है, जो प्रसाद का विशेष भाग होती है. इस दिन प्रसाद में पूर्ण सात्विक भोजन शामिल करें, जिसमें आप पूरी, हलवा, सब्जी, खीर और लड्डू जैसे व्यंजन शामिल कर सकते हैं. मान्यता है कि इससे भक्त को मनोवांछित फल प्राप्त होता है.
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