Friendship Day 2025: मित्रता का रिश्ता इस दुनिया में सबसे सुंदर माना जाता है, क्योंकि इस रिश्ते में ना कोई रंग देखा जाता है, ना रूप, ना पैसा और ना ही कोई भेदभाव. इस बार फ्रेंडशिप डे 3 अगस्त को मनाया जाएगा. जब भी कोई सच्ची दोस्ती की मिसाल देता है, तो सबसे पहले दिमाग में श्रीकृष्ण और उनके मित्र सुदामा का नाम आता है.
श्रीकृष्ण सिर्फ एक राजा या भगवान नहीं थे, वो प्रेम के प्रतीक, करुणा के सागर और रिश्तों को निभाने वाले सच्चे इंसान थे. एक ओर जहां श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को धर्म का रास्ता दिखाया, वहीं दूसरी ओर अपने गरीब मित्र सुदामा के पैर धोकर ये साबित किया कि प्रेम-मित्रता, किसी राजपद या सत्ता से ऊपर होती है.
बचपन से ही कृष्ण और सुदामा एक साथ पढ़ते थे. लेकिन एक समय ऐसा आया कि श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बन गए थे और दूसरी ओर उनके मित्र सुदामा इतने गरीब हो चुके थे कि घर में रोज का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया था. सुदामा अपनी पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण भी नहीं कर पा रहें थे. ऐसे में एक दिन सुदामा की पत्नी सुशीला बोली 'आप श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र हैं, आज वो द्वारका के राजा हैं. आप उनसे मदद क्यों नहीं मांगते हैं?' सुदामा को यह बात सुनकर थोड़ी झिझक हुई. लेकिन उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था. इसलिए उन्होंने सोचा कि वो कृष्ण से मिलने द्वारका जाएंगे.
तीन मुठ्ठी चावल भेंट लेकर सुदामा पहुंचे द्वारका
सुदामा द्वारका जाने के लिए तो तैयार हो गए थे, लेकिन खाली हाथ जाना उन्हें ठीक नहीं लग रहा था. तब उनकी पत्नी सुशीला ने पड़ोस से तीन मुट्ठी चावल उधार लिए और एक छोटी-सी पोटली में बांधकर सुदामा को देते हुए बोलीं- 'इन्हें श्री कृष्ण को भेंट कर देना.'
पोटली लेकर सुदामा अपने मित्र से मिलने निकल पड़े थे. चलते-चलते कई दिन बीत गए, लेकिन सुदामा के दिल में उम्मीद थी कि कृष्ण उन्हें वैसे ही अपनाएंगे, जैसे पहले थे. जब सुदामा श्रीकृष्ण के भव्य महल के सामने खड़े हुए, तो वहां मौजूद द्वारपालों ने उन्हें गरीब देखकर तिरस्कार की नजर से देखा. द्वारपालों ने सुदामा से पूछा कि तुम कौन हो? और किससे मिलने आए हो?
सुदामा ने कहा- 'मैं श्रीकृष्ण के बचपन का मित्र हूं और उनसे मिलना चाहता हूं.' ऐसा सुनकर पहरेदार हंसने लगे, फिर थोड़ी देर बाद अंदर जाकर उन्होंने यह बात श्रीकृष्ण को बताई. जैसे ही श्रीकृष्ण ने अपने मित्र का नाम सुना, वो राजा का रूप भूलकर दौड़ते हुए महल के बाहर पहुंचें.
दरवाजे पर खड़े सुदामा को देखते ही श्रीकृष्ण ने उन्हें गले से लगा लिया था और उनकी आंखें नम हो गईं थी. श्रीकृष्ण सुदामा को महल के अंदर लेकर गए और अपने सिंहासन पर बैठा दिया. फिर खुद अपने अश्रुओं से उनके पैर धोने लगे. यह दृश्य देखकर महल में मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए थे.
दो मुट्ठी चावल से सुदामा को मिली दो लोक की संपत्ति
महल में सुदामा को आदर देने के बाद श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा, 'सखा, मेरे लिए क्या लेकर आए हो?' यह सुनकर सुदामा को लज्जा आ गई और उन्होंने पोटली छिपा ली. लेकिन श्रीकृष्ण तो अपने मित्र की दिल की बात जानते थे. वे बोले कि आज भी बचपन की तरह मेरे हिस्से के चावल छिपा रहे हो क्या? यह कहते हुए श्रीकृष्ण ने खुद ही सुदामा से वो पोटली ले ली और चावल खाने लगे. जैसे ही श्रीकृष्ण ने पहली मुट्ठी चावल खाए तो उसके बदले उन्होंने सुदामा को एक लोक की संपत्ति दे दी. दूसरी मुट्ठी चावल खाते ही सुदामा को दो लोकों की संपत्ति मिल गई.
लेकिन जैसे ही कृष्ण तीसरी मुट्ठी चावल खाने लगे, तभी रुक्मिणी ने उन्हें रोकते हुए कहा, 'प्रभु, यदि आप तीनों लोक इन्हें दे देंगे, तो दूसरे जीव-जंतु और देवता कहां जाएंगे?' रुक्मिणी की बात सुनकर श्रीकृष्ण रुक गए. इस तरह बिना कहे, बिना मांगे, सिर्फ प्रेम की भावना के बदले श्रीकृष्ण ने अपने सखा सुदामा को सम्मान, वैभव और सुख-समृद्धि से भर दिया था.
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