डिजिटल युग में ठगी के तरीके जितने हाई-टेक हुए हैं, उनकी पकड़ उतनी ही मुश्किल. ऑनलाइन फ्रॉड से लेकर बैंकिंग ऐप्स तक, ठगों ने हर जगह सेंध लगाने की कला सीख ली है. लेकिन राजस्थान के अलवर से जो मामला सामने आया, उसने यह साबित कर दिया कि धोखाधड़ी अब सिर्फ वर्चुअल दुनिया की समस्या नहीं रही बल्कि सुपरमार्केट की शेल्फ़ से लेकर बिलिंग काउंटर तक में इसके साए तैर रहे हैं.
डी-मार्ट जैसी इंटरनेशनल लेवल पर फेमस कंपनी के अलवर स्थित स्टोर में एक ऐसा घोटाला पकड़ा गया, जिसे समझने में प्रबंधन को भी वक्त लग गया. लेकिन जैसे ही परतें खुलनी शुरू हुईं, सामने आया कि कंपनी में ही काम करने वाला एक कर्मचारी चुपचाप अपने स्तर पर पूरा ‘बारकोड सिस्टम’ चला रहा था. नकली बारकोड बनाता, उन्हें प्रोडक्ट्स पर चिपकाता और फिर कीमतें अपने हिसाब से बदल देता. अरावली विहार थाना पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जांच अब इस बात पर टिक गई है कि यह सिर्फ एक व्यक्ति की कारस्तानी थी या बड़ी साजिश का छोटा हिस्सा.
कैसे खुली गड़बड़ी की परतें?
डी-मार्ट का बिलिंग सिस्टम बेहद मजबूत और ऑटोमेटेड माना जाता है. लेकिन हाल ही में स्टॉक मिलान के दौरान कर्मचारियों को बार-बार एक अजीब सी गड़बड़ी महसूस हो रही थी. किसी प्रोडक्ट की कीमत सिस्टम में अलग दिख रही थी, जबकि ग्राहक के बिल पर कुछ और दर्ज हो रहा था. पहले इसे तकनीकी दिक्कत समझा गया, पर जब फिजिकल स्टॉक और डिजिटल इन्वेंट्री में फर्क बढ़ने लगा, तो मैनेजमेंट को शक हुआ. एक विस्तृत चेकिंग की गई. यहीं से सामने आया कि कई उत्पादों पर लगे बारकोड असली नहीं थे. बारकोड स्कैनर उन पर रजिस्टर हो रहे थे, लेकिन वे सिस्टम की आधिकारिक लिस्ट से मैच नहीं कर रहे थे.
कौन है आरोपी
थाना पुलिस के अनुसार गिरफ्तार आरोपी की पहचान नरेंद्र पुत्र कुशाल, निवासी उपला सोनावा, अलवर के रूप में हुई है. आरोपी डी-मार्ट में ही नौकरी करता था और कंपनी की प्रक्रियाओं से अच्छी तरह वाकिफ था. पुलिस की जांच में सामने आया कि नरेंद्र कम कीमत वाला नकली बारकोड तैयार करता. उसे असली उत्पादों पर चिपका देता. फिर बिलिंग काउंटर पर वही उत्पाद कम कीमत में खरीद लेता और इस प्रक्रिया में कंपनी को आर्थिक नुकसान होता. उसके इस ‘शॉर्टकट स्कैम’ का फायदा महीने-दर-महीने बढ़ रहा था, लेकिन बचत की लालच में उसने खुद ही अपने कदमों के निशान छोड़ दिए.
पुलिस के अनुसार नरेंद्र को बारकोड, POS सिस्टम और प्रोडक्ट मैनेजमेंट की बेसिक समझ थी. उसने इंटरनेट पर मौजूद टूल्स और फ्री सॉफ्टवेयर की मदद से बारकोड बनाना सीखा. सबसे बड़ा फायदा उसे यह था कि वह कंपनी में अंदर ही काम करता था, इसलिए उसकी हर हरकत सामान्य लगती थी. स्टोर में उसकी ड्यूटी के दौरान वह शेल्फ पर जाकर असली बारकोड उतार देता और अपने बनाए स्टिकर लगा देता. यह काम इतने सफाई से किया जाता कि मैनेजमेंट को काफी समय तक गड़बड़ी का अंदाजा ही नहीं हुआ.
हिमांशु शर्मा