बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने एक बार फिर राज्य की राजनीति को जाति, गठबंधन और विकास के त्रिकोण में उलझा दिया है. 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में संपन्न मतदान के बाद, 14 नवंबर को होने वाली मतगणना से पहले तमाम एग्जिट पोल्स ने NDA की स्पष्ट जीत की भविष्यवाणी की है. कोई भी एग्जिट पोल प्रदेश में प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज को लड़ाई में भी नहीं बता रहा है. जाहिर है कि ये प्रशांत किशोर के लिए बहुत सेट बैक साबित हो सकता है.
किशोर ने चुनाव प्रचार के दौरान एक राष्ट्रीय चैनल को इंटरव्यू में कहा था कि अगर जेडीयू को 25 सीट मिल जाएगी तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे.हालांकि कोई भी नेता अपनी बात पर खरा नहीं उतरता है, इसलिए प्रशांत किशोर से भी ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए. पर उनकी छवि पर बट्टा तो लगेगा ही. पर असली सवाल यह है कि देश में दर्जनों सरकार बनवाने वाले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर से कहां कमी रह गई कि वे खुद की पार्टी को सफलता दिलाने से वंचित हो सकते हैं.
2022 में स्थापित यह पार्टी 'बिहार को नया सूरज' देने का वादा लेकर आई थी, और किशोर की पादयात्रा ने लाखों युवाओं को आकर्षित किया था.शायद यही कारण रहा कि पार्टी ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन एग्जिट पोल्स के दावे प्रशांत किशोर के लिए निराशाजनक हो सकती हैं. मैट्रिज के अनुसार जनसुराज को 5 सीटें, डीवीसी रिसर्च के मुताबिक 2 से 4 सीटें और कई अन्य सर्वे में तो पार्टी के खाते में एक भी सीट मिलती नजर नहीं आ रही है.
हालांकि किशोर के लिए यह राहत की बात हो सकती है कि पार्टी का वोट शेयर कांग्रेस (लगभग 8-10%) से बेहतर (11-12%) होने का अनुमान है. पर उसका कारण यह है कि कांग्रेस के मुकाबले कम से कम चार गुना सीटों पर जनसुराज लड़ रही है. हालांकि एक्सिस माई इंडिया तो केवल 4 पर्सेट वोट ही जनसुराज को दिला रहा है. किशोर, जो पहले मोदी, नीतीश आदि की जीत के सूत्रधार रहे, ने 'सुशासन' का नया मॉडल पेश किया पर जनता उसे अभी स्वीकर करती नहीं दिख रही है. आइये देखते हैं कि वे कौन से कारण रहे जिसके चलते प्रशांत किशोर अपने दावों पर खरा उतरते नहीं दिख रहे हैं.
मोदी-शाह को निशाने पर लेने से बचते रहे प्रशांत, इसका गलत संदेश गया
नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे केंद्रीय नेताओं को सीधे निशाने पर लेने से बचना जनसुराज के लिए घातक हो गया. जनता को लगा कि किशोर 'सेफ गेम' खेल रहे हैं. इसके चलते ये संदेश गया कि जनसुराज 'एनडीए की बी-टीम' या किशोर 'मोदी और शाह के एजेंट' हैं. बिहार की राजनीति में, जहां केंद्र की छाया हर मुद्दे पर पड़ती है, यह चूक घातक रही.
किशोर ने चुनाव प्रचार के शुरुआती चरणों में नीतीश कुमार की पलटियां और तेजस्वी यादव की 'परिवारवाद' पर फोकस किया, लेकिन मोदी-शाह की आलोचना हल्की-फुल्की ही रही. अक्टूबर 2025 में औरंगाबाद रैली में किशोर ने कहा कि मोदी जी बिहार से वोट मांगते हैं, लेकिन फैक्टरियां गुजरात में लगाते हैं.
उन्होंने 'जंगलराज' के आरोपों पर मोदी की आलोचना जरूर की. उन्होंने कहा कि पीएम डर फैलाकर वोट लेना चाहते हैं. पर उन्होंने कभी भी अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर मोदी या शाह को नहीं घेरा. दरअसल ये प्रशांत किशोर की गलती नहीं है. यह समय का दोष है. आज की राजनीति में पॉजिटिव बातें करके किसी खास तबके का हीरो नहीं बना जा सकता. यही प्रशांत किशोर अगर नफरत के लेवल पर अपनी राजनीत को ले जाते तो हो सकता है कि मोदी विरोधियों का एक तबका उनके साथ हो गया होता.
सम्राट चौधरी और अशोक चौधरी के खिलाफ आरोप लगाए पर कांसिस्टेंसी नहीं बना सके
प्रशांत किशोर ने एनडीए के दिग्गज नेताओं बीजेपी नेता सम्राट चौधरी (उपमुख्यमंत्री) और जेडीयू नेता अशोक चौधरी (मंत्री) के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए. किशोर ने इन आरोपों को 'सुशासन' के नाम पर हथियार बनाया, लेकिन सबूतों की कमी, फोकस शिफ्टिंग और जवाबी हमलों ने इसे राजनीतिक बूमरैंग बना दिया. यह न केवल जनसुराज की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर गया, बल्कि वोटरों को 'खोखले वादों' का संदेश भेजा.
सितंबर 2025 में पटना प्रेस कॉन्फ्रेंस में किशोर ने विस्फोटक खुलासे किए.दावा किया कि वे 'माफिया' हैं और नीतीश सरकार से उनकी बर्खास्तगी होनी चाहिए. अशोक चौधरी पर 100 करोड़ की रिश्वत की डील का इल्जाम ठोका, कहा कि वे 'भ्रष्टाचार के सरदार' हैं. किशोर ने नीतीश से मांग की कि इनकी बर्खास्तगी करें, वरना 'जनता का विश्वास टूटेगा'.
शुरुआत में फोकस अशोक पर था. उनके 'परिवारवाद' और 'कॉन्ट्रैक्ट घोटालों' पर था. लेकिन अक्टूबर में सीतामढ़ी रोड शो में यह सम्राट पर शिफ्ट हो गया. इस शिफ्टिंग ने असंगति पैदा की: एक तरफ 'सबूत हैं' का दावा, दूसरी तरफ कोर्ट में पेश न करना. भाजपा और जदयू ने तीखा जवाब दिया. अशोक चौधरी ने कहा, किशोर तथ्यों को तोड़-मरोड़ रहे हैं; कोर्ट में सबूत लाएं.
दूसरी तरफ सम्राट ने चुनौती दी कि अगर आरोप साबित हुए, तो राजनीति छोड़ दूंगा. बिहार की राजनीति में आरोप गंभीर होते हैं, लेकिन बिना कंसिस्टेंसी के वे हथियार बन जाते हैं. यदि किशोर ने एक मुद्दे पर फिक्स रहकर सबूत दिए होते, तो 'एंटी-एनडीए' ब्रांड मजबूत होता.
शराबबंदी का विरोध करके फंस गए
प्रशांत किशोर शराबबंदी के विरोध के असर को समझ नहीं सके.2016 से लागू नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति जो महिलाओं की सुरक्षा और परिवारिक सुख-शांति का प्रतीक बन चुका है के खिलाफ किशोर का जाना उनके लिए राजनीतिक आत्मघाती कदम बन गया. युवा पुरुषों को लुभाने की कोशिश में उन्होंने बिहार की 50% महिला वोटरों को नाराज कर लिया, जो एनडीए की झोली में चली गईं.
अक्टूबर 2025 में जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की सत्ता में आने पर शराबबंदी हटा देंगे, जिससे राज्य को सालाना 28,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा. किशोर ने इसे 'आर्थिक क्रांति' बताया. किशोर ने कहा कि इस राजस्व से 6 लाख करोड़ का लोन लेकर विकास होगा. लेकिन यह वादा बूमरैंग बन गया.
बिहार में शराबबंदी केवल कानून नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का प्रतीक है. नीतीश इसे महिलाओं के सशक्तिकरण से जोड़ चुके हैं.एक सर्वे में 70% महिलाओं ने कहा कि वे शराबबंदी हटाने वाली पार्टी को वोट नहीं देंगी. इस बीच एक मोर्चे ने किशोर पर आरोप लगा दिया कि शराब माफियाओं से 20,000 करोड़ लेकर बैन हटाने की साजिश रच रहे हैं प्रशांत किशोर.
तेजस्वी के खिलाफ लड़ने का वादा करके मुकरना
जनसुराज को अपेक्षित सफलता मिलती न दिखने का एक बड़ा कारण प्रशांत किशोर का तेजस्वी यादव के खिलाफ 'चैलेंज' देकर पीछे हट जाना भी है. किशोर, जो 'बिहार को नया सूरज' देने का दावा कर रहे थे, ने खुद को वैकल्पिक लीडर के रूप में स्थापित करने का सुनहरा मौका गंवा दिया. महागठबंधन के युवा चेहरे तेजस्वी के खिलाफ सीधा मुकाबला न लड़कर, किशोर ने न केवल अपनी विश्वसनीयता खो दी, बल्कि जनसुराज को 'खोखले वादों' वाली पार्टी की छवि दे दी.
सितंबर-अक्टूबर 2025 में किशोर ने तेजस्वी पर तीखे हमले बोले. उन्होंने राघोपुर सीट जो तेजस्वी का पारिवारिक गढ़ है, वहां से चुनाव लड़ने का संकेत दिया. 9 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, पंडित ने 51 नंबर शुभ बताया, राघोपुर से लड़ सकता हूं. यह चैलेंज तेजस्वी के 'परिवारवाद' और 'खोखले वादों' (जैसे हर घर नौकरी) पर था. किशोर ने कहा, तेजस्वी की हालत राहुल गांधी जैसी होगी; मैं उनके गढ़ में उतरूंगा. यह 'फेस-ऑफ' बिहार की राजनीति को हाईलाइट करने वाला था. जनसुराज को 'तीसरा विकल्प' बनाने के लिए यह परफेक्ट था. लेकिन 15 अक्टूबर को किशोर मुकर गए. किशोर ने ऐलान किया कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, पार्टी को मजबूत करने पर खुद को फोकस करूंगा.
संयम श्रीवास्तव