उत्तर प्रदेश की जनता बिजली कटौती से त्रस्त है. प्रदेश में पर्याप्त बिजली होने के बावजूद ढंग से अगर सप्लाई नहीं हो पा रही है तो साफ है कि प्रशासनिक लापरवाही हो रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश में दूसरी बार सरकार बनने में बिजली व्यवस्था में सुधार का बहुत बड़ा योगदान था. अखिलेश यादव और मायावती की सरकारों में कटौती से तंग लोगों का 2022 में कहना था कि योगी सरकार में कटौती पुराने जमाने की बात हो गई . बीजेपी को अगर 2027 में फिर वापसी करनी है तो जाहिर है कि बिजली व्यवस्था को लाइन पर लाना होगा. लेकिन उत्तर प्रदेश के बिजली मंत्रालय में जो अंतर्कलह मची हुई है, उसे बिजली मंत्री एके शर्मा के एक ट्वीट से समझा जा सकता है. शर्मा का ऑफिस एक्स पर लिख रहा है कि बिजली विभाग ने उन्हें बदनाम करने की सुपारी ले ली है. मंत्री शर्मा पिछले 2 हफ्तों से लगातार यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि बिजली विभाग में नौकरशाही हावी है.
1-पीएम मोदी के खास हैं पर अधिकारी सुनते ही नहीं हैं इनकी
उत्तर प्रदेश के ऊर्जा और शहरी विकास मंत्री अरविंद कुमार शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी रह चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ खास अफसरों में वे शामिल रहे हैं. शर्मा की ईमानदारी और कार्यकुशलता से प्रभावित हो कर पीएम ने उन्हें 2021 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल कराया. हालांकि उन्हें पार्टी में शामिल होने के बाद मंत्री बनने में काफी वक्त लगा. इस बीच कई तरह की अफवाहें भी उड़ीं. कई बार ये कहा गया कि शर्मा को मंत्री बनाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार में मतभेद चल रहा है. फिलहाल शर्मा ने धीरे-धीरे काम संभाल लिया और बिजली विभाग में कई सुधार करने का प्रयत्न किया. जाहिर है कि सुधार होने से कई लोगों के हित प्रभावित होते हैं. यही कारण है हर सुधार के फैसले विवादों के केंद्र में आ जाते हैं.
उनके द्वारा बिजली विभाग की कार्यशैली पर की गई टिप्पणियों, विशेष रूप से यह कहना कि बिजली विभाग ने उन्हें बदनाम करने की सुपारी ले ली है ने लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रखी है. यह बयान उनके द्वारा एक समीक्षा बैठक में और सोशल मीडिया पर साझा किए गए पोस्ट में सामने आया, जहां उन्होंने विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार पर सवाल उठाए.
2-बिजली विभाग की स्थिति और एके शर्मा का रुख
एके शर्मा ने कई मौकों पर बिजली आपूर्ति में सुधार और विभागीय भ्रष्टाचार को कम करने की दिशा में काम करने का दावा किया है. उदाहरण के लिए, उन्होंने 2024 में रोस्टर व्यवस्था को समाप्त करने की घोषणा की, जिसके तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया. इसके अलावा बिजली उत्पादन बढ़ाने का भी उन्होंने प्रयास किया.
हालांकि, उनके कार्यकाल में कई चुनौतियां उनके सामने आईं. बिजली कटौती, गलत बिलिंग, ट्रांसफार्मर खराब होने, और अधिकारियों की लापरवाही की शिकायतें आम रही हैं. इन समस्याओं के लिए एके शर्मा ने बार-बार अपने विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है. पिछले हफ्ते लखनऊ में आयोजित एक समीक्षा बैठक में, उन्होंने अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि बिजली विभाग कोई बनिया की दुकान नहीं है, यह जनसेवा है. उन्होंने इस बैठक में अधिकारियों को अपरोक्ष रूप से धमकाया भी और निवेदन भी किया कि आप लोग काम में लग जाइये और जनता के बीच जाइये. फिर भी अधिकारी लाइन पर नहीं आ रहे हैं.
3-कौन दे सकता है बिजली मंत्री की सुपारी
शर्मा को लगता है कि उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने या उनके प्रयासों को विफल करने की साजिश रची जा रही है. शर्मा बार-बार अपने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर लापरवाही, भ्रष्टाचार, और उनकी बात न मानने का आरोप लगा रहे हैं. उदाहरण के लिए, बस्ती जिले में एक अधीक्षण अभियंता से एक बिजली उपभोक्ता की बातचीत का ऑडियो उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया. अभियंता ने उपभोक्ता की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया और खुद को सांसद रामजी लाल सुमन, बेबी रानी मौर्या और राज बब्बर का रिश्तेदार बताने लगा.अभियंता को सस्पेंड कर दिया गया . पर इस बातचीत को सार्वजनिक करने का मकसद यह बताना था कि बिजली विभाग के अधिकारी मनमौजी हो गए हैं और मंत्री की बात की परवाह नहीं करते हैं. देखा जाए तो किसी भी मंत्री को यह शोभा नहीं देता कि वह साबित करने का प्रयास करे कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं.
शर्मा को यह भी शिकायती है कि कुछ कर्मचारी निजीकरण के विरोध में हड़ताल कर रहे हैं और उनके खिलाफ अभद्र भाषा का उपयोग कर रहे हैं. यह संभव है कि कुछ कर्मचारी, जो निजीकरण या सख्त प्रशासनिक सुधारों से असंतुष्ट हैं, शर्मा के खिलाफ असहयोग या बदनाम करने की रणनीति अपना रहे हों. पर मंत्री का काम ही यही होता है कि वह तमाम तरह के असंतोष को दरकिनार करके सरकार के कार्यों को एक्जिक्यूट कर सके.
हो सकता है कि शर्मा यह न कर पा रहे हों. इसलिए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि शर्मा अपनी विफलताओं का ठीकरा कर्मचारियों पर फोड़ रहे हों. क्यों कि प्रदेश का विपक्षी दल भी शर्मा पर बिजली आपूर्ति में विफलता का आरोप लगा रहा है. सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद कहते हैं कि शर्मा से ऊर्जा विभाग नहीं संभल रहा और बीजेपी सरकार ने पिछले आठ वर्षों में कोई नया पावर स्टेशन नहीं बनाया है. विपक्ष शर्मा से इस्तीफे की मांग कर रहा है.
शर्मा अपने ट्वीट में कुछ बाहरी और अराजक तत्वों का जिक्र करते हैं. उनका इशारा है कि कुछ बाहरी तत्व, जैसे ठेकेदार, बिजली चोरी में शामिल लोग या निजीकरण विरोधी समूह, शर्मा की नीतियों को नाकाम करने की कोशिश कर रहे हैं. शर्मा ने विजिलेंस छापों में भ्रष्टाचार और गलत जगहों पर छापेमारी की शिकायत की है, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि कुछ लोग जानबूझकर गलत नीतियों को बढ़ावा दे रहे हैं.
हालांकि इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी के भीतर की आंतरिक गुटबाजी का प्रभाव बिजली मंत्रालय में शर्मा के खिलाफ काम कर रहा हो. तेजतर्रार छवि वाले कुछ नेताओं को यह असहज लग सकता है शर्मा की निकटता प्रधानमंत्री कार्यालय है.
4-साजिश है या प्रशासनिक विफलता?
शर्मा का यह कहना कि अधिकारी सुनते नहीं हैं, से इनकार नहीं किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में नौकरशाही हावी है. एक बाबू से काम करवाने में आम जनता ही नहीं विधायकों के भी पसीने छूट जाते है. बिहार के एक पंचायत सचिव का विडियो वायरल हो रहा है जिसमें वो अपने क्षेत्र के विधायक को जानता तक नहीं है . और उस पर धमकी का भी कोई असर नहीं है. कहता है कि जाइये मेरा ट्रांसफर करा दीजिएगा. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि शर्मा के खिलाफ कोई साजिश हो रही है या संगठित तरीके से उन्हें बदनाम करने की कोशिश हो रही है.
दरअसल एके शर्मा का सुपारी वाला बयान उनके गुस्से और निराशा को दर्शाता है. उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है, जून 2025 में यह 32,000 मेगावाट तक पहुंच गई है. जाहिर है कि पुराने बुनियादी ढांचे, जैसे ट्रांसफार्मर और केबल, और कर्मचारियों की कमी ने समस्याओं को पहाड़ बना दिया है.
शर्मा की इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि स्थानीय स्तर पर फॉल्ट के चलते बिजली कटौती होती है. फॉल्ड को ठीक करने में हफ्तों लग जाते हैं. यह भी सही है कि कर्मचारी संगठन उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन जब कर्मचारियों के खिलाफ सख्ती की जाएगी तो इस तरह की बातें तो होंगी ही. यही तो लीडरशिप कौशल है कि सख्ती भी किया जाए और आवाज भी न उठे.
संयम श्रीवास्तव