मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा में कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने RSS की तारीफ करके बवाल मोल ले लिया है. पूरी कांग्रेस उनके पीछे पड़ी हुई है. जबकि दिग्विजय जीवन भर आरएसएस के खिलाफ अपने बयानबाजियों के लिए जाने जाते थे. उनके अचानक उन्हें कांग्रेस में कठघरे में खड़ा कर दिया है. अब उन्हें अपनी सफाई में क्या क्या नहीं कहना पड़ रहा है. जबकि कांग्रेस में आरएसएस की तारीफ करने वाले वे अकेले नहीं है. इसके पहले कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं ने मौके-बेमौके आरएसएस की तारीफ में बहुत कुछ कहा है. पर आज की कांग्रेस इस गुनाह पर दिग्विजय सिंह को बख्शने के मूड में नहीं है.सोशल मीडिया पर तमाम कांग्रेस समर्थक उनके पीछे पड़ गए हैं . कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं के निशाने पर भी वो हैं.
दरअसल 27 दिसंबर 2025 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक से ठीक पहले दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया पर एक पुरानी तस्वीर शेयर की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को युवावस्था में लालकृष्ण आडवाणी के पैरों के पास जमीन पर बैठे दिखाया गया था. पोस्ट में उन्होंने लिखा कि यह प्रभावशाली चित्र है, जो RSS-BJP की संगठनात्मक शक्ति को दर्शाता है. कैसे एक साधारण कार्यकर्ता (ग्रासरूट स्वयंसेवक) मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री बन सकता है. उन्होंने इसे संगठन की ताकत बताया और कांग्रेस को भी इससे सीखने की सलाह दी.
आरएसएस के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं दिग्विजय
दिग्विजय सिंह ने आरएसएस के खिलाफ जितनी बयानबाजी की है शायद कांग्रेस में और कोई नहीं होगा. वे बार-बार RSS को नफरत, फेक न्यूज और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है. दिग्विजय सिंह कहते रहे हैं कि RSS की विचारधारा हिंदुत्व है, जो सनातन धर्म से अलग है और सांप्रदायिक तनाव पैदा करती है.
उन्होंने कई बार RSS, VHP और बजरंग दल पर बम ब्लास्ट की साजिश का आरोप लगाया, जिसमें मुसलमानों को निशाना बनाया गया ताकि BJP को राजनीतिक फायदा मिल सके. वो कहते रहे हैं कि RSS स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नहीं हुआ, 50 साल तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने में अग्रणी रहा है.
दिग्विजय सिंह ने 26/11 मुंबई हमलों (2008) के पीछे RSS की साजिश का आरोप लगाया था. 2010 में उन्होंने अजीज बर्नी की किताब 26/11 RSS की साजिश? का लोकार्पण किया और कहा कि ATS प्रमुख हेमंत करकरे को हमले से दो घंटे पहले हिंदू चरमपंथियों (RSS से जुड़े) से धमकी मिल रही थी. उन्होंने इसे मेजॉरिटी टेररिज्म का हिस्सा बताया था.
दिग्विजय सिंह के बयान पर क्यों बवाल थम नहीं रहा
जाहिर है कि आरएसएस की तारीफ करके उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिसे गुनहा किया जा सके.पर चूंकि RSS कांग्रेस की नजर में विचारधारा स्तर पर विरोधी है. पार्टी ने गांधी-नेहरू की विरासत से RSS को नफरत फैलाने वाला और विभाजनकारी माना है. कई कांग्रेस नेताओं ने इसे आंतरिक विद्रोह और विचारधारा से समझौता करार दिया.पवन खेड़ा ने कहा, RSS से क्या सीखना? गांधी की पार्टी से Godse की पार्टी क्या सीखेगी?
मणिक्कम टैगोर ने RSS की तुलना अल-कायदा से की, कहा कि दोनों नफरत फैलाते हैं. पार्टी के कई कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया पर दिग्विजय ने RSS को सफेद झंडा दिखा दिया जैसी टिप्पणियां हुईं.
दिग्विजय ने तुरंत स्पष्ट किया कि वे RSS की विचारधारा के कट्टर विरोधी हैं और केवल संगठन की ताकत की तारीफ की है. उन्होंने कहा कि मैंने सिर्फ संगठन की सराहना की, RSS और मोदी की नीतियों का विरोध करता हूं.
लेकिन सफाई के बावजूद विवाद थमा नहीं.क्यों इतना बवाल? दिग्विजय सिंह पहले भी RSS की संगठन क्षमता की बात कर चुके हैं, लेकिन इस बार पोस्ट में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और खड़गे को टैग करके इसे नसीहत जैसा बना दिया. यह उनकी पिछली चिट्ठी (19 दिसंबर) से जुड़ा था, जिसमें उन्होंने कांग्रेस में विकेंद्रीकरण और सुधार की मांग की थी. कई नेता इसे राहुल पर अप्रत्यक्ष हमला मानते हैं.
तस्वीर का दूसरा पहलू भी है
दिग्विजय पहले नहीं आरएसएस की तारीफ करने वाले
दिग्विजय सिंह कोई पहले व्यक्ति नहीं है जिन्होंने आरएसएस की तारीफ की है.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं ने विभिन्न अवसरों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की संगठनात्मक क्षमता, अनुशासन, सामाजिक कार्य या देशभक्ति की भावना की तारीफ की है. ये उदाहरण ऐतिहासिक घटनाओं, भाषणों और पत्रों से लिए गए हैं, जो दिखाते हैं कि RSS और कांग्रेस के बीच संबंध हमेशा विरोधी नहीं रहे हैं. नेहरू, गांधी, पटेल, आंबेडकर, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, करण सिंह, जयप्रकाश नारायण, प्रणब मुखर्जी आदि ने भी आरएसएस की तारीफ समय समय पर की है.
महात्मा गांधी
गांधी जी ने RSS की स्थापना के शुरुआती दिनों में उसके अनुशासन और सामाजिक समानता की सराहना की थी. 1934 में उन्होंने वर्धा में RSS के एक कैंप का दौरा किया और बाद में 16 सितंबर 1947 को दिल्ली में RSS कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने कई साल पहले RSS कैंप का दौरा किया था, जब संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे. मैं आपके अनुशासन, अस्पृश्यता की पूर्ण अनुपस्थिति और कठोर सादगी से बहुत प्रभावित हुआ था. तब से संघ बढ़ा है. मुझे विश्वास है कि सेवा और आत्म-बलिदान के उच्च आदर्श से प्रेरित कोई भी संगठन मजबूत होगा.
जवाहरलाल नेहरू
नेहरू ने RSS पर 1948 में गांधी हत्या के बाद प्रतिबंध लगाया था, लेकिन बाद में उनके रुख में नरमी आई. 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान RSS के स्वयंसेवकों ने राहत कार्यों में योगदान दिया, जिसकी नेहरू ने सराहना की. 1963 में उन्होंने RSS को गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, जहां 3,000 RSS स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया. नेहरू ने RSS की देशभक्ति और संगठन की ताकत को मान्यता दी, हालांकि उन्होंने इसे राजनीतिक रूप से अलग रखने की सलाह दी.
सरदार वल्लभभाई पटेल
पटेल ने 1948 में RSS पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन 1949 में इसे हटा दिया. उन्होंने RSS प्रमुख एमएस गोलवलकर को पत्र लिखकर कहा कि RSS के सदस्य देशभक्त हैं और उनके संगठन में देश के प्रति समर्पण है.पटेल ने RSS को सलाह दी कि वे राजनीति से दूर रहें और सामाजिक कार्यों पर फोकस करें. यह तारीफ प्रतिबंध हटाने के संदर्भ में आई, जहां पटेल ने RSS की क्षमता को सकारात्मक रूप से देखा.
डॉ. भीमराव आंबेडकर
आंबेडकर ने 1939 में पुणे में RSS के प्रशिक्षण शिविर संघ शिक्षा वर्ग का दौरा किया था. डॉ. आंबेडकर ने डॉ. हेडगेवार से पूछा कि क्या शिविर में कोई अस्पृश्य है, तो संघ संस्थापक ने उत्तर दिया कि वहां न स्पृश्य हैं न अस्पृश्य, बल्कि केवल हिंदू हैं.
आंबेडकर ने कहा, कि मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि स्वयंसेवक पूर्ण समानता और भाईचारे के साथ बिना एक-दूसरे की जाति जाने आपस में घुल-मिल रहे हैं. 1950 के दशक में डॉ. आंबेडकर और RSS प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी ने क़रीबी रूप से साथ काम किया और लगातार संपर्क में रहे.
इंदिरा गांधी:
1970 में उन्होंने कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल (RSS के मार्गदर्शन में बना) का दौरा किया और कहा कि यह एक भावुक अनुभव है कि स्वामी विवेकानंद के संदेश में हजारों की आस्था ने इस स्मारक को संभव बनाया. यह सभी आगंतुकों को प्रेरित करे और स्वामी जी की शिक्षाओं पर जीने की हिम्मत दे. यही नहीं इंदिरा गांधी के आरएसएस के नेताओं से अच्छे संबंध थे.
पत्रकार नीरजा चौधरी (Neerja Chowdhury) ने अपनी किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड' (How Prime Ministers Decide) में लिखा है कि इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीति का 'हिंदूकरण' करने और 1980 के चुनाव में जीत के लिए आरएसएस से गुप्त समर्थन लिया था. वह आपातकाल के दौरान भी संघ का समर्थन पाने में सफल रहीं और आरएसएस नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध थे. हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से हमेशा दूरी बनाए रखी और संघ ने भी उन्हें एक संभावित हिंदू नेता के रूप में देखा था.
लाल बहादुर शास्त्री
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने RSS सरसंघचालक एमएस गोलवलकर को सर्वदलीय बैठक में आमंत्रित किया, जो RSS के गैर-राजनीतिक होने के बावजूद था. शास्त्री ने RSS की देशभक्ति और सहयोग की सराहना की.
करण सिंह
1980 के दशक में इंदिरा गांधी कैबिनेट के सदस्य रहते हुए उन्होंने 'विराट हिंदू समाज' के अध्यक्ष के रूप में RSS प्रचारक अशोक सिंघल के साथ काम किया. उन्होंने RSS के साथ मिलकर एंटी-कन्वर्जन कैंपेन चलाया और दिल्ली में 5 लाख लोगों की रैली आयोजित की.
1980 के दशक में ‘विराट हिंदू समाज’ नामक एक संगठन की स्थापना तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में बड़ी संख्या में दलितों के इस्लाम धर्मांतरण के बाद, धर्मांतरण-विरोधी अभियान चलाने के लिए की गई. इस संगठन के अध्यक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल के पूर्व सदस्य डॉ. करण सिंह थे, जबकि इसके महासचिव RSS के दिल्ली प्रांत प्रचारक अशोक सिंघल थे.
इस संगठन ने नई दिल्ली में हिंदुओं का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें लगभग पाँच लाख लोग शामिल हुए। इसके अलावा, देशभर में सैकड़ों छोटे-बड़े सम्मेलन भी आयोजित किए गए. बाद में अशोक सिंघल ने विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा चलाए गए राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जयप्रकाश नारायण (जेपी):
जयप्रकाश नारायण इमरजेंसी के समय RSS से जुड़े, लेकिन 1977 में पटना के RSS कैंप में उन्होंने कहा कि संघ एक क्रांतिकारी संगठन है. यह समाज को बदल सकता है, जातिवाद खत्म कर सकता है और गरीबों के आंसू पोछ सकता है. मुझें इस क्रांतिकारी संगठन से बड़ी उम्मीदें हैं. जेपी कांग्रेस से जुड़े रहे थे, लेकिन बाद में विपक्षी नेता बन गए.
प्रणब मुखर्जी
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब मुखर्जी ने 2018 में RSS मुख्यालय नागपुर में भाषण दिया, जहां उन्होंने RSS संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को मातृभूमि का महान पुत्र कहा. उन्होंने RSS की स्थापना को भारतीय इतिहास का हिस्सा बताया और कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद में है, लेकिन साथ ही RSS की संगठनात्मक शक्ति की सराहना की. यह भाषण विवादास्पद रहा, लेकिन कांग्रेस ने इसे RSS को सच्चाई का आईना दिखाने के रूप में सराहा.
संयम श्रीवास्तव