दिल्ली दंगों की साजिश रचने के आरोपी उमर खालिद को जमानत न मिलने पर देश के पूर्व चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बार फिर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में उन्होंने बताया कि जजों के लिए फैसला लेना कितना मुश्किल होता है. जबकि सोशल मीडिया में कुछ लोगों के लिए ज्यूडिशरी की स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ सरकार के खिलाफ फैसला देना समझा जाता है. अगर फैसला सरकार के पक्ष में हो जाए, तो कहा जाता है कि जज स्वतंत्र नहीं है. डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके पहले भी समाज के खास वर्ग की ओर से नैरेटिव सेट किए जाने पर भी सवाल उठाए थे.
पूर्व सीजेआई ने एक बार फिर जजों का वह दर्द बयां किया है कि किस तरह उन्हें कठघरे में खड़ा तो कर दिया जाता है पर उनके पास सच्चाई सामने रखने का कोई जरिया नहीं होता है. पूर्व सीजेआई ने बताया कि किस तरह उन्हें बेल न देने वाले एक जज के रूप में ख्याति मिल गई जबकि कांग्रेस नेता पवन खेड़ा को तुरंत जमानत मिलने की बात कभी नहीं होती है. इसी तरह उमर खालिद की बेल याचिका बार-बार स्थगित होने के पीछे क्या कारण है इस पर कभी चर्चा नहीं होती है. उन्होंने इंडिया टुडे से बात करते हुए अपने तमाम आलोचकों को आड़े हाथ लिया.
क्या जमानत वाले सारे मामले जस्टिस बेला को भेजते थे?
जमानत न देने के लिए मशहूर होने पर सफाई देते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि मुझ पर आरोप लगा कि मैं अधिकांश जमानत याचिकाएं जस्टिस बेला को भेजता था. जो जमानत न देने के लिए चर्चित हैं. उमर खालिद को जमानत न मिलना इसका उदाहरण है. चंद्रचूड़ ने कहा कि यह बहुत आसान है कि इस तरह के साधारण और बिना सबूत वाले आरोप लगा दिए जाएं. जबकि तथ्य इसके उलट हैं. उन्होंने कहा कि जब मैं भारत का मुख्य न्यायाधीश था और मैंने कहा था कि हम जमानत को प्राथमिकता देंगे, और हमने ये करके भी दिखाया.
पूर्व सीजेआई ने कहा कि हमने 21,000 मामलों में ज़मानत दी. और जब आप कहते हैं कि, किसी ख़ास व्यक्ति को ज़मानत नहीं मिली तो उसका कारण भी आपको समझना होगा. मैं बता चुका हूं कि मेरी अदालत में A से Z तक सभी को जमानत मिली. हर वह व्यक्ति जिसे जमानत मिलनी चाहिए थी, उसे जमानत मिली.
जहां तक जस्टिस बेला की बात है, तो जमानत से जुड़े मामले सुप्रीम कोर्ट की हर बेंच देखती है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में आने वाले सबसे ज़्यादा मामले आपराधिक होते हैं. तो सुप्रीम कोर्ट का हर जज आपराधिक मामलों को देखता है, जो कंप्यूटर से रैंडम तरीके से आवंटित होते हैं. इसलिए जस्टिस बेला को लेकर लगाया गया आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है.
पवन खेड़ा को कैसे बचाया गिरफ्तारी से, कैसे मिली तत्काल बेल
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने पर कांग्रेस प्रवक्ता पर दर्ज केस के बाद उनकी गिरफ्तारी की नौबत आ गई थी. असम में फ्लाइट पकड़ते समय गिरफ़्तार करने की कोशिश की गई. जस्टिस चंद्रचूड़ बताते हैं कि उनके वकील सुप्रीम कोर्ट आए और लंच टाइम पर बोले कि मेरा मुवक्किल गिरफ़्तार किया जा रहा है. क्योंकि उसने कुछ आपत्तिजनक बातें कहीं हैं. इसमें कोई शक नहीं कि पवन ने जो कहा वह आपत्तिजनक था. पवन खेड़ा के वकील डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी ने खुद कहा कि मैं अपने मुवक्किल के बयान से सहमत नहीं हूं. लेकिन मुद्दा यह था कि यह गिरफ़्तारी का मामला नहीं था. फिर किसने उनकी रक्षा की? सुप्रीम कोर्ट ने. ऐसे में यह सिलेक्टिव नहीं हो सकता कि एक मामले में जमानत न मिलने पर आप कहें की सुप्रीम कोर्ट जमानत देता ही नहीं.
जमानत का नियम है, लेकिन इसकी शर्तें भी हैं
पूर्व सीजेआई कहते हैं कि आख़िरी बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि भारत में निर्दोष मानने की धारणा ज्यादा मजबूत है. यानी व्यक्ति तब तक निर्दोष है जब तक अपराध साबित न हो. इसका मतलब है कि सामान्यतः जमानत मिल जाना चाहिए, जबकि जेल अपवाद की तरह ही होना चाहिए. पर एक जज को यह देखना पड़ता है कि क्या यह व्यक्ति जमानत मिलने पर सबूतों से छेड़छाड़ करेगा? दूसरा क्या वह न्याय से भाग सकता है? कहने का मतलब है कि जज का काम आसान नहीं है. क्योंकि हर केस में संतुलन बैठाना होता है. क्योंकि, कुछ खास केस को पूरा समाज देख रहा होता है. हो सकता है किसी केस में संतुलन ठीक बैठा हो या न बैठा हो. लेकिन बिना सबूत पूरे सिस्टम को दोषी ठहराना गलत है.
उमर खालिद के वकील जमानत पर बहस टालते रहे
कुछ दिन पहले चंद्रचूड़ ने उमर खालिद के वकीलों की तारीख पे तारीख लेने और उमर खालिद की जमानत याचिका पर उसके वकीलों की ओर से बार-बार सुनवाई को रोके जाने की अपील को लेकर बहुत बड़ा खुलासा किया था. पूर्व सीजेआई ने इस इंटरव्यू में कहा था कि मैं केस की मेरिट पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन मैं आपको एक चीज जरूर बताऊंगा, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता.
पूर्व सीजेआई इस मामले में हैरान करने वाली जानकारी देते हैं. चंद्रचूड़ बताते हैं कि ज्यादा नहीं तो कम से कम सात बार उमर खालिद की ओर से पेश होने वाले वकीलों ने आगे की तारीखें मांगी थीं और फिर आखिरकार जमानत याचिका वापस ले ली गई.
संयम श्रीवास्तव