'आवारा कुत्तों को पालना? मैंने तो ये कदम सात साल पहले ही उठाया था, जब ब्राउनी को घर लाई'

सात साल पहले मैंने अपने इंडी पालतू, ब्राउनी, को गोद लिया था. यह फैसला सिर्फ प्यार की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय विकल्पों की कमी के कारण भी लिया गया था. आपको मैं यहां इससे जुड़े अपने अनुभव को साझा कर रही हूं...

Advertisement
प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

श्रेया सिन्हा

  • नई दिल्ली ,
  • 13 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 8:52 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली की सड़कों से आवारा कुत्तों को स्थायी रूप से हटाने का निर्देश दिया है. आदेश के बाद सोशल मीडिया पर एक वाक्य खूब चल रहा है 'पसंद हैं तो घर ले जाओ.' लेकिन मैंने यह सात साल पहले ही कर लिया था. यहां मैं अपनी आपबीती साझा कर रही हूं 

साल 2018 में, पूर्वी दिल्ली के मेरे सोसाइटी परिसर में एक बेहद कमजोर, बीमार और कंकाल-सा दिखता एक कुत्ता आ गया. उसे देखते ही मैंने पानी और खाना देना शुरू किया. शुरुआती दिनों में पड़ोसियों की नाराज़ निगाहें नजरअंदाज कीं, लेकिन जल्द ही देखा कि उसके पानी के बर्तन उलट दिए जा रहे हैं और लोगों ने गार्ड को उसे डंडे से भगाने को कह दिया. मुझे समझ आ गया वो यहां ज़्यादा दिन सुरक्षित नहीं रहेगा.

Advertisement

मैंने उसे घर ले लिया. आज ब्राउनी मेरा परिवार है. हां, अकेले रहते हुए और अनिश्चित समय वाली नौकरी के साथ उसे पालना आसान नहीं था, लेकिन उसे सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देना और कठिन था. इससे पहले भी कोलकाता में मैंने दो इंडी (देसी नस्ल के) कुत्ते अपनाए थे- एलेक्स और कालू. दोनों को भी परिस्थितियों ने मजबूर होकर घर लाना पड़ा, क्योंकि न NGO के पास जगह थी, न सरकारी शेल्टर में भरोसा.

देसी बनाम विदेशी नस्ल का भेदभाव

कुत्तों के प्रेमी होने का दावा करने वालों में भी अक्सर नस्ल को लेकर भेदभाव दिखता है. कई लोग सड़कों पर इंडी पिल्लों को प्यार करते हैं, सोशल मीडिया पर वीडियो डालते हैं, लेकिन घर में गोल्डन रिट्रीवर या लैब्राडोर चाहते हैं. लेकिन सच यह है कि इंडी भी उतने ही समझदार, साफ-सुथरे और ट्रेन होने योग्य होते हैं. ब्राउनी को मैंने सड़क से लाने के बाद कभी घर में गंदगी करते नहीं देखा. वह जल्दी घरेलू माहौल में ढल गया और आज वह एक अनुशासित, समझदार साथी है.

Advertisement

प्यार बनाम हकीकत

अब मजाक छोड़कर सीधी बात करते हैं. सवाल ये है: क्या भारत इतना पेट-फ्रेंडली है कि हर किसी को कुत्ता अपनाने की नसीहत दी जाए? मेरा जवाब होगा-नहीं.

प्रॉब्लम 1.
घर ढूंढना: मैंने अपने कुत्ते की वजह से घर ढूंढने में खून-पसीना एक कर लिया. जब मैं 'इंडी' वाला बम फोड़ती हूं तो मकान मालिक साफ मुकर जाते हैं. आखिरकार मुझे अपने वेटनरी डॉक्टर के घर में एक मंजिल किराए पर मिली. पेट्स और खासकर इंडी कुत्तों के खिलाफ ये रवैया हकीकत है. लोगों को 'चलो, कुत्ता एडॉप्ट करो' कहने से पहले इस सच को समझना होगा.

प्रॉब्लम 2.
ट्रांसपोर्टेशन: छोटी दूरी की बात करें तो भी पेट टैक्सी सामान्य टैक्सी से कम से कम पांच गुना महंगी होती है जो ज्यादातर लोगों के लिए महंगा सौदा है. और सामान्य टैक्सी वाले? पेट का नाम सुनते ही मना कर देते हैं, खासकर अगर इंडी हो. लेकिन ड्राइवर्स को दोष नहीं दे सकती. अगला पैसेंजर कुत्ते का एक बाल देखकर भी बुरा रिव्यू दे देगा. मैंने ब्राउनी के साथ हर बार मुसीबत झेली जब पेट टैक्सी नहीं मिली और सामान्य टैक्सी वालों ने मना कर दिया. अगर आपके पास अपनी गाड़ी नहीं है तो ये जंग जीतने जैसा है.

प्रॉब्लम 3.
लंबी दूरी का सफर: मैं दो साल से कोलकाता अपने घर नहीं गई क्योंकि मैं ब्राउनी को शेल्टर में नहीं छोड़ना चाहती. क्यों, वो अगले पॉइंट में बताऊंगी. फ्लाइट्स में पेट्स के लिए टिकट महंगा है और पेट्स की लापरवाही से मौत की खबरें सुनकर मैं वो रास्ता नहीं चुन सकती. और ट्रेन? हाय राम! अगर आप अपने पेट के साथ ट्रेन में बिना टेंशन के चढ़ पाएं तो नारियल फोड़कर प्रार्थना करें, भले ही आप नास्तिक हों. पहले तो आपको फर्स्ट क्लास का टिकट बुक करना पड़ता है, वो भी दो महीने पहले.

Advertisement

फिर ये सुनिश्चित करना पड़ता है कि वो टू-बर्थ फर्स्ट क्लास कूपे हो, न कि फोर-बर्थ. फिर आपको रेलवे ऑफिस जाकर अपने पेट का वैक्सिनेशन प्रूफ, आईडी कार्ड, और एक लेटर जमा करना पड़ता है. अगर किस्मत अच्छी हुई, तो सफर बढ़िया. वरना, आपका कूपे गया और अब किस्मत को कोसिए.

प्रॉब्लम 4.
अच्छे शेल्टर्स की कमी: सोशल मीडिया पर शेल्टर्स चमकते हैं लेकिन हकीकत में वो 'गोल्ड स्टैंडर्ड' से कोसों दूर हैं. कई फैंसी शेल्टर्स इंडी कुत्तों को लेते ही नहीं. मैंने कई शेल्टर्स आजमाए और हार मान ली. एक बार मैंने ब्राउनी को एक ठीक-ठाक शेल्टर में छोड़ा और घर गई. लौटी तो वो टिक फीवर से बीमार था. अगला एक महीना इलाज और रोज ड्रिप्स में बीता. मैं तो अब ड्राइविंग सीखने की सोच रही हूं, सिर्फ इसलिए कि मेरे पास पेट है.

सुप्रीम कोर्ट ने पब्लिक सेफ्टी को देखते हुए आदेश दिए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत और संसाधनों की कमी पर भी सवाल उठते हैं. इंडी कुत्तों को आप पसंद करें या न करें, लेकिन उनके लिए थोड़ी संवेदना रखना जरूरी है. एक दिन वे सड़कों से गायब हो गए, तो क्या आप उन्हें सिर्फ 'रैबीज़ फैलाने वाले' के तौर पर याद करेंगे? शायद नहीं. सोचकर देख‍िएगा.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement