मुर्शिदाबाद प्रयोगशाला : जानिये प्रबल हिंदुत्व की धरती पर कैसे फैला इस्लामी कट्टरवाद

मुर्शिदाबाद में जो कुछ हो रहा है, यह नया नहीं है. दरअसल मुर्शिदाबाद की धरती नफरती कट्टरवाद का प्रयोगशाला रही है. पूर्वी भारत में कोलकता और ढाका से पहले मुस्लिम शासन का गढ़ मुर्शिदाबाद ही रहा है.

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पश्चिम बंगाल का कर्नसुवर्णा मुर्शिदाबाद के रूप में मुस्लिम कट्टरवाद का प्रयोगशाला रहा है. पश्चिम बंगाल का कर्नसुवर्णा मुर्शिदाबाद के रूप में मुस्लिम कट्टरवाद का प्रयोगशाला रहा है.

शरत कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 17 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 4:28 PM IST

भारत के सबसे कट्टर हिंदुत्व की धरती पश्चिम बंगाल का कर्नसुवर्णा मुर्शिदाबाद के रूप में मुस्लिम कट्टरवाद की प्रयोगशाला रहा है. जो कुछ मुर्शिदाबाद में हो रहा है यह नया नहीं है. दरअसल मुर्शिदाबाद की धरती नफरती कट्टरवाद का प्रयोगशाला रही है. पूर्वी भारत में कोलकता और ढाका से पहले मुस्लिम शासन का गढ़ मुर्शिदाबाद ही रहा है. जिसने औरंगजेब का शासन आते-आते धार्मिक अत्याचार की पराकाष्ठा देखी है. दिलचस्प है कि यह जमीन हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के कट्टरवाद की जननी रही. पहले पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश के रूप में भारत का विभाजन इसी की देन रही है. मगर हिंदुओं को यह जानकर हैरानी होगी कि इस्लामी कट्टरपंथ की स्थापना इस धरती पर कोई बाहरी मुस्लिम शासक ने नहीं, बल्कि हिंदू शख्स सूर्य नारायण मिश्रा उर्फ मोहम्मद हादी उर्फ कुली खान ने की थी.

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1. कैसे बना मुर्शिदाबाद

मुर्शिदाबाद में इस्लामी कट्टरता कोई नया नही है. दरअसल बंगाल में इस्लाम को मजबूत करने से लेकर कालांतर में बांग्लादेश बनने तक के पीछे मुर्शिदाबाद का इस्लामी कट्टरवाद रहा है. मगर हैरत की बात है कि भारतवर्ष में हिंदुत्व की सबसे मजबूत धरा को इस्लामी कट्टरवाद का गढ़ बनाने वाला शख़्स हिंदू ही था जिसने हिंदू धर्म छोड़कर इस्‍लाम धर्म अपनाया. ये बंगाल का पहला नवाब सूर्यनारायण मिश्रा उर्फ़ मुर्शिद कुली ख़ान था. कहते हैं कि पर्शिया (इरान) से आने वाला मुगलों के दरबार का धर्मगुरू हाजी साफ़ी ने 1670 में जन्मे सूर्यनारायण मिश्रा नाम के 10 साल के लड़के को उसकी कुशाग्र बुद्धि-विवेक को देखकर ख़रीदा था, जिसे उसने मोहम्मद हादी के रूप में धर्म परिवर्तन कर इस्लामिक रीति रिवाज से पाला पोसा.

उसका नाम कुली ख़ान इसलिए पड़ा क्योंकि वह हाजी साफ़ी के कुली का काम करता था. हाजी के साथ कुली खान पर्शिया चला गया था मगर हाजी साफ़ी की मौत के बाद कुली ख़ान विदर्भ के दीवान के यहां काम करने लगा. विदर्भ जैसे सूखे इलाक़े में उसने इतना ज़्यादा लगान वसूल कर औरंगज़ेब को दिया कि औरंगज़ेब ने उसे मुग़ल शासन के सबसे समृद्ध सूबे बंगाल का दीवाना बना दिया.

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ख़ुद औरंगज़ेब के बेटे और पोते इस फ़ैसले को पचा नहीं पाए और कुली ख़ान के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया. मगर औरंगज़ेब के फतवा ए आलमगीरी में दर्ज है कि कुली ख़ान ने हिंदुओं पर जजिया कर को इतनी कठोरता से वसूला कि उसने बंगाल में अब तक का सबसे ज़्यादा कर वसूलकर औरंगज़ेब को दिया. जिस पर औरंगज़ेब ने उसे मुर्शिद की उपाधि दे दी.

ढाका में वह ख़ुद को अपने आपको असुरक्षित पा रहा था इसलिए बिहार और ओडिशा और बंगाल के मध्य में हुगली के तट पर उसने मुकसुदाबाद को अपना दफ़्तर बनाया और फिर 1703 में अपने नाम के ऊपर  इस शहर का नाम मुर्शिदाबाद रखा. 1717 में मुर्शिद कुली ख़ान बंगाल का पहला नवाब बन गया. कुली ख़ान ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ साथ फ्रैंच ईस्ट इंडिया कम्पनी और यूरोप के एक दर्जन दूसरे  देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए और मुर्शिदाबाद को एक महानगर बना दिया.

मगर वह इस्लामी कट्टरता से बंगाल पर राज करता था. कुली ख़ान के 27 साल का बंगाल पर शासन, जिसमें पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, बिहार और ओडिशा शामिल था, हिन्दुओं पर अत्याचार का शासन रहा. कुली खान ने पूरे बंगाल प्रांत में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब के जन्मदिन को सबसे बड़ा त्योहार घोषित किया था. मुहम्मद साहब का जन्मदिन बंगाल का सबसे बड़ा जश्न होता था जिसमें हिस्सा लेने के लिए दुनिया भर से इस्लामी शासक आते थे. पहले पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश के रूप में भारत का विभाजन इसी की देन थी.

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2. कैसे जगत सेठ ने मुर्शिदाबाद से मुस्लिम शासन का अंत किया

कर्णसुवर्णा की इसी धरा ने मुर्शिदाबाद की धरती पर भारत में मुस्लिम शासन का अंत भी लिखा. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और बंगाल के नवाब के बीच, जिसके साथ फ़्रेंच ईस्ट इंडिया कम्पनी भी थी, पलासी का युद्ध लड़ा गया. कहते हैं मुर्शिदाबाद के सबसे बड़े हिंदू नगर सेठ जगत सेठ ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना के प्रमुख लार्ड क्लाइव के साथ मिलकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के सबसे बड़े सेनापति  मीरजाफर को ख़रीद लिया था.

जगत सेठ की चतुराई से महज ग्यारह घंटे में पलाशी का युद्ध ख़त्म हो गया और 11 घंटे में ही मुग़ल सम्राज्य समेत देश के दूसरे हिस्सों में मुस्लिम शासन की अंत की कहानी लिखी गई. और फिर ब्रिटिश  सेना ने यहां से मुड़कर पीछे नहीं देखा. पूरा हिन्दुस्तान उनके पास आ गया. कहते हैं उसके बाद लंबे समय तक बंगाल की राजनीति को जगत सेठ ने ही चलाया.

3. मुर्शिदाबाद से हेक्वार्टर कलकत्ता और फिर दिल्ली हुआ 

पहले गवर्नर जनरल के रूप में वारेन हेस्टिंग्स ने ब्रिटिश सम्राज्य की बुनियाद बंगाल में रखी और फिर मुर्शिदाबाद से हेडक्वार्टर कोलकाता ले गया. बाद में ब्रिटिश साम्राज्य का हेडक्वार्टर कोलकाता से  दिल्ली आ गया और तब से बंगाल दिल्ली की राजनीति से दूर ही रहा. और इस तरह से मुर्शिदाबाद नाम का इस्लामी शासन का केंद्र धीरे धीरे नेपथ्य में चला गया. देश के बंटवारे के समय मुर्शिदाबाद करीब-करीब बंग्लादेश में जा चुका था. विभाजन के समय भी यहां के मुस्लिम पूर्वी पाकिस्तान में जाना चाहते थे मगर रेड क्लिफ आयोग ने 17 अगस्त 1947 को अपनी आखिरी बैठक में बंगाल के हिंदू नेताओं की मांग पर हुगली नदी को पूरी तरह से भारत में रखने के नाम पर इसे भारत में रखने की सिफारिश कर दी.

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4. मुर्शिदाबाद से पहले का कर्नसुवर्णा

हिन्दू धर्म के इतिहास में प्रतापी और शूरवीर राजा तो बहुत सारे हुए हैं मगर मिलिटेंट हिंदू राजा तो बंगाल की धरती पर कर्नसुवर्णा का राजा महाराजाधिराज शशांक ही हुए हैं. सवाल उठता है कि हिंदुत्व के सबसे कट्टर राजा शशांक की विरासत कर्णसुवर्णा से बंगाल के पहले नवाब सूर्य नारायण मिश्रा उर्फ़ मुर्शिद कुली ख़ान का मुर्शिदाबाद कैसे बना. सातवीं सदी के प्रबल हिंदुत्व राज की राजधानी कर्णसुवर्णा की धरा पर हीं सूर्य नारायण मिश्रा से कुली खान बने बंगाल के पहले नवाब ने औरंगजेब से मुर्शिद की पदवी पाकर मुर्शिदाबाद बसाया था. ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर ब्रितानी साम्राज्य तक का शासन भी यहीं से शुरू हुआ.भारत का सबसे कट्टर हिंदू राजा शशांक ऐसे राजा हुए जिनकी ज़िंदगी हिंदुत्व के विस्तार के लिए युद्ध के मैदान में बीती और उस वक्त के हिंदुत्व का सबसे बड़ा दुश्मन बौद्ध धर्म से नफ़रत में बीता.

सातवीं सदी के पूर्वार्द्ध से लेकर उतरार्द्ध में बौद्ध धर्म एक बार फिर से अपने उठान पर था. कहते हैं 590 ईस्वी में शशांक ने गौड़ राज्य की बुनियाद ताकतवर हिंदू राष्ट्र के रूप में रखी. शशांक को कुछ लोग गुप्त  वंश के महाशेनगु्प्त का वारिस बताते हैं तो कुछ गु्प्तों यामगध के मुखारियों का महासामंत बताते हैं. मगर 625 ईस्वी तक के अपने राज में उसने कर्णसुवर्णा को हिंदू राष्ट्र का मस्तक बनाकर रखा.

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कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उसका नाम नरेंद्र था मगर वहां इतना बड़ शिवभक्त था कि अपना नाम शिव के नाम पर शशांक रखलिया. शशांक ने जब राज संभाला तो उत्तर में वर्धन राजा राज्यवर्धन का राज था जिसने बौद्ध धर्म अपना लिया था. पूर्वी बंगाल का इलाक़ा बंग से लेकर आसाम का इलाक़ा कामरूप और उड़िसा का इलाक़ा भुवेश तक में हिंदुत्व ख़तरे में था. मगध के मुखारियों के शासन काल में भी बौद्ध  हावी थे.शशांक ने इसे हीं बहुमत की आबादी हिंदुओं के दिल में बसने का हथियार बनाया और कट्टर हिंदुत्व के नाम पर इसके पास बड़ी सेना हो गई. कहते हैं शशांक ने अपने पहला हमला कामरूप पर किया जो  आसाम और भूटान को मिलाकर उससमय कामरूप था.वहां के वर्मन राजा बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने वाले थानेसर के राजा राज्यवर्धन के प्रभाव में थे और चीनी तांग साम्राज्य से संबंध स्थापित किए हुए थे.

शशांक ने दूसरे हमले के लिए मालवा के राजा देवगुप्त के साथ दोस्ती की और दूसरे हिंदू राजाओं के साथ सेना तैयार कर देवगुप्त सेहीं कान्यकुब्ज (कन्नौज) के मुखारियों पर हमला करा कान्यकुब्ज के राजा  को मार वहां की रानी उत्तर भारत के सबसे बड़े राजाराज्यवर्द्धन की बहन राज्यश्री को क़ैद कर लिया. नाराज़ राज्यवर्द्धन सबसे बड़ी सेना लेकर मालवा पर हमला कर देवगुप्त को मार डाला.

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लौटते वक्त शशांक की सेना से मुठभेड़ हुई मगर चीनी यात्री हुएनसांग और बाणभट्ट के अनुसार मगध के राजा कीमदद से संधि करनेके नाम पर शशांक ने धोखे से राज्यवर्द्धन को मार डाला. शशांक ने अपने  बुद्धिकौशल के दम पर तमाम छोटे राज्यों और सामंतों कोअपने यहां मिला लिया था. हालांकि वह राज्यवर्द्धन के छोटे भाई हर्षवर्धन से ज़्यादा नहीं उलझा क्योंकि हर्षवर्धन की मदद के लिएचीनी तांग सम्राज्य आ  सकती थी.

शशांक के पास अब पूरा उत्तर पूर्व से लेकर भूटान समेत पूर्वोत्तर और उड़िसा था. शशांक ने अपने राज्य में मगध और कान्यकुब्ज सेबुलाकर सकलदीपी ब्राह्मणों को ज़मीन देकर बसाना शुरू किया और  राज-काज में उनकी दखल बढाई. आयुर्वेद से लेकरवास्तुशास्त्र तक शासन व्यवस्था के हिस्सा बनाया. सिक्कोंपर बैलों पर बैठे शिव और कमल पर बैठी लक्ष्मी का चित्र छपवाया गया.कहा जाता है कि शशांक ने  हीं हिंदू बंगाली कैलेंडर लागू किया जो आज भी बांग्लादेश में चलता है. हिंदुत्व को लेकर शशांक इतनाकट्टर था कि उसने मगध पर क़ब्ज़ा करते हीं न केवल बोधगया के महाबोधि मंदिर को तोड़ा बल्कि महाबोधि  वृक्ष को भी कटवा दियाथा. पूरे राज्य में मंदिर बनाने को बड़ा अभियान चलया.कहते हैं कि भुवनेश में बनाए गए उसके शिव मंदिर थिरूभुवनेश्वर के नाम परही शहर का नाम भुवनेश्वर पड़ा था.

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आज भी भुवनेश्वर 700 मंदिरों के साथ मंदिरों का शहर हीं कहा जाता है. हालांकि शशांक की पूरी ज़िंदगी युद्ध मैदान में बीता फिरभी उसने जनता के कल्याण के लिए बड़े -बड़ेकाम किए. नंदीग्राम में ममता  बनर्जी के ख़िलाफ़ शुभेन्दु हिंदुत्व की तलाश कर रहे हैं तोयह समझते हैं कि मिदनापुर में शशांक की आत्मा बसी हुई है. मिदनापुर में तो उसने पानी के लिए इतनी बड़ी झील बनायी जिसमें180 फ़ुटबॉल के  मैदान बन सकते हैं.

कहते हैं शशांक की मां धार्मिक यात्रा पर जा रही थीं. रास्ते में एक गांव में पड़ाव डाला. वहां जनता ने पानी की समस्या बतायी तो मांके आदेश पर शशांक ने इतना बड़ा तालाब बना दिया. कहा जाता है कि  उस वक़्त हिंदुत्व की राजधानी कर्णसुवर्णा आज के मुर्शिदाबाद से लेकर मालदा तक फैली हुई थी. इस बीच यह 625 ईस्वी में शशांक की मृत्यु हो गई.हालांकि शशांक के मज़बूत साम्राज्य को उऩका बेटा मानव  आठ महीने भी नहीं ढो पाया था. वजह थी कि शशांक के बौद्ध दुश्मन उससे बुरी तरह से नफ़रत करते थे. उन्होने कर्नसुवर्णा को चारों तरफ से घेरकर खत्म कर दिया.

शशांक ने जो हिंदू शासन की बुनियाद 35 सालों के अपने शासन में रखी थी वह महज आठ महीने में ख़त्म हो गया और मानव को मारकर मगध से लेकर हर्षवर्धन और कामरूप के राजाओं ने कर्णसुवर्णा को  बांट लिया. और इस तरह से बंगाल में हिंदू राजा और हिंदुत्व का अंत हो गया. उसके बाद भारत वर्ष में कई सुल्तान आए और फिर लंबा समय मुग़ल वंश का भी रहा. मगर हिंदुत्व की धरा कर्णसुवर्णा का  इतिहास एक हज़ार साल बाद फिर से लिखा गया. और फिर उसके बाद कई बार लिखा गया.

क्या बंगाल में उभरता नवहिंदुत्व का ज्वार कभी मुर्शिदाबाद से मालदा तक फैले कर्नसुवर्णा के गौरव को हासिल कर पाएगा या इस धरती का रक्तरंजित इतिहास इसे ऐसे हीं लहूलुहान करता रहेगा.

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