आखिर कोई कितने दिन में मैच्योर हो सकता है? और राजनीतिक परिपक्वता आने में कितना समय लगता है?
केस स्टडी के लिए आकाश आनंद बिलकुल उपयुक्त हैं. आकाश आनंद को बीएसपी नेता मायावती ने फिर से पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया है - और लगे हाथ, अपना एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी भी फिर से घोषित कर दिया है.
महज इसी एक वाकये से मायावती की राजनीति को भी फिर से समझने की कोशिश की जा सकती है, खासकर मौजूदा दौर में उनकी राजनीति, और राजनीतिक मजबूरियों के बारे में भी.
बमुश्किल डेढ़ महीने पहले ही मायावती ने आकाश आनंद को ये कहते हुए बीएसपी के नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया था कि वो अभी परिपक्व यानी मैच्योर नहीं हो पाये हैं. मायावती ने ये भी संकेत दिया था कि पूरी तरह मैच्योर होने तक आकाश आनंद को इंतजार करना होगा.
लेकिन तब मायावती की बातों से ऐसा बिलकुल नहीं लगा था कि आकाश आनंद डेढ़ महीने में ही इतने मैच्योर हो जाएंगे कि कामकाज संभालने लायक समझे जाने लगेंगे. अगर मायावती ने तब भी चौंकाया था, तो एक बार फिर वैसे ही चौंकाया है - और इसकी खास वजह लगती है.
और इसीलिए कुछ सवाल खड़े होते हैं. ये सवाल स्वाभाविक रूप से मायावती के मन में जरूर उभर रहे होंगे. जब से मायावती ने राजनीति में कदम रखा तभी से वो दलित राजनीति की सबसे बड़ी नेता बनी हुई हैं. उनसे पहले से भी कई दलित नेता मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय थे, लेकिन कांशीराम ने ऐसा दांव चला कि मायावती सब पर भारी पड़ीं. गुजरते वक्त के साथ मायावती की जमीन खिसकती चली गई - और एक बार फिर वो शून्य के करीब पहुंच गई हैं.
लोकसभा में बीएसपी का 2014 की तरह फिर से जीरो बैलेंस हो गया है. 2019 में अखिलेश यादव से हाथ मिलाकर मायावती ने यूपी की 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. यूपी विधानसभा में मायावती के पास कांग्रेस से भी कम सिर्फ एक विधायक है, जिसकी जीत में बीएसपी के मुकाबले उस विधायक का अपना योगदान कहीं ज्यादा है.
क्या मायावती को नगीना लोकसभा सीट से आजाद समाज पार्टी के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे भीम आर्मी चंद्रशेखर आजाद के संभावित राजनीतिक उभार की अभी से फिक्र होने लगी है? क्या मायावती को समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की PDA पॉलिटिक्स की उत्तर प्रदेश में मिली कामयाबी भी डराने लगी है?
ये तो सबसे तेज मैच्योर होने का रिकॉर्ड है
2019 में मायावती ने आकाश आनंद को बीएसपी का नेशनल कोॉर्डिनेटर बनाया था - और दिसंबर, 2023 में अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था.
आकाश आनंद भी जिम्मेदारी मिलते ही एक्टिव हो गये थे. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में तो कई जगह मायावती का प्रतिनिधित्व करते देखे गये थे, 2024 के आम चुनाव में भी बीएसपी के चुनाव कैंपेन की शुरुआत भी आकाश आनंद ने ही की थी - और ध्यान देने वाली बात ये रही कि कैंपेन की शुरुआत नगीना संसदीय क्षेत्र से हुई थी.
नगीना लोकसभा सीट से भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद चुनाव मैदान में थे, और आकाश आनंद के निशाने पर भी. नगीना में आकाश आनंद ने चंद्रशेखर आजाद का नाम तो नहीं लिया, लेकिन हर तरह से घेरने की हर संभव कोशिश की.
आकाश आनंद ने कहा था, वो सड़क पर हमारे लोगों को उतारकर लड़ाई लड़ने की बात करते हैं, लेकिन अपना मुकद्दर बनाने के बाद लोगों को छोड़कर चले जाते हैं... वो लोगों को गुमराह कर रहे थे... वो इंडिया ब्लॉक में घुसना चाहते थे... ताकि अपनी एक सीट निकाल सकें... लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब है कि अलायंस के बाद भी वो बेघर घूम रहे हैं.
लेकिन नगीना के लोग अपना मन पहले ही बना चुके थे. वे आकाश आनंद को सुनने जरूर आये थे, लेकिन संसद चंद्रशेखर आजाद को ही भेजा है.
आकाश आनंद लोगों का मन भांप चुके थे, और सोच समझ कर बड़ी ही संजीदगी से अपने राजनीतिक विरोधियों पर चोट कर रहे थे - लेकिन ये बात मायावती को बहुत देर से समझ में आई है. तभी तो फटाफट भूल सुधार भी कर लिया है. मायावती को हारे हुए बीएसपी उम्मीदवारों से बातचीत में ऐसी फीडबैक भी मिली है कि आकाश आनंद को हटाया नहीं गया होता तो पार्टी को हुआ नुकसान कम होता.
चुनाव कैंपेन के दौरान आकाश आनंद बीजेपी के खिलाफ बेहद आक्रामक हुए जा रहे थे, और एक दिन बीजेपी की सरकार को 'आतंकवादियों की सरकार' तक बता डाला, जिसे लेकर उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा दी गई थी.
ऐन आम चुनाव के बीचोबीच मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपरिपक्व बताकर बीएसपी के नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से तो हटाया ही, पूरी तरह परिपक्व होने तक अपना उत्तराधिकारी मानने से भी इनकार कर दिया था. बीजेपी सरकार वाले बयान के तत्काल बाद आकाश आनंद के कार्यक्रम तो रद्द कर ही दिये गये थे, FIR दर्ज होने और मायावती के एक्शन के बाद तो वो सीन से गायब ही हो गये थे.
हाल ही में वो तब चर्चा में फिर से आये जब स्टार प्रचारकों की लिस्ट में उनका नाम शामिल किया गया. 23 जून, 2024 को मायावती ने सीनियर बीएसपी नेताओं के साथ समीक्षा बैठक की थी, जिसमें आकाश आनंद भी मौजूद थे.
समीक्षा बैठक में आकाश आनंद ने अपनी बुआ मायावती का पैर छूकर आशीर्वाद लिया. मायावती ने भी आकाश आनंद के सिर पर हाथ रख कर प्यार-दुलार किया, पीठ भी थपथपाई - और उम्मीद जताई कि आगे से वो पूरी परिपक्वता के साथ काम करेंगे. साथ ही, मायावती ने बीएसपी नेताओं से कहा है कि वे आकाश आनंद को पहले के मुकाबले ज्यादा सम्मान दें.
दलित राजनीति में चंद्रशेखर का दबदबा
सितंबर, 2018 में जेल से छूटने के बाद जब चंद्रशेखर से मायावती के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, 'वो मेरे परिवार की सदस्य हैं... मेरी बुआ हैं... मैं उनका भतीजा हूं... हमारा उनका पारिवारिक रिश्ता है.'
दो दिन बाद ही मायावती ने खासतौर पर चंद्रशेखर के दावों पर अपनी बात कहने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और बोलीं, 'कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ में... तो कुछ लोग अपने बचाव, और कुछ लोग अपनेआप को नौजवान दिखाने के लिए मेरे साथ कभी भाई-बहन का... तो कभी बुआ-भतीजे का रिश्ता बता रहे हैं... मेरा ऐसे लोगों से कोई रिश्ता नहीं है.'
मायावती ने ऐसा इसलिए कहा था कि कहीं किसी को ऐसा न लगे कि भीम आर्मी और बीएसपी के बीच कोई राजनीतिक समझौता होने जा रहा है. सहारनपुर हिंसा के बाद जरूर मायावती ने ये कहते हुए अपनी तरफ से ऑफर दिया था कि ऐसे युवा अगर बीएसपी के साथ आ जाते हैं, तो पार्टी उनको राजनीतिक संरक्षण देगी. तब चंद्रशेखर अलग ही जोश से लबालब थे, मायावती की बातों की तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया. मायावती की याद तब आई जब वो 16 महीने बाद जेल से छूट कर आये.
मायावती हमेशा ही अपने वोटर को चंद्रशेखर जैसे लोगों से बच कर रहने के लिए आगाह करती रही हैं. जब जब चंद्रशेखर ने आंदोलन किया, मायावती का बयान जरूर आ जाता रहा है. और मायावती अपने मिशन में कामयाब भी रही हैं, लेकिन अब चंद्रशेखर की चुनावी जीत ने उनकी राजनीति पर मुहर लगा दी है.
2019 के चुनाव में भी बुआ भतीजे की जोड़ी खास तौर पर चर्चा में रही, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद ही मायावती ने अखिलेश यादव के साथ भी चंद्रशेखर वाले अंदाज में ही एक झटके में अपना रिश्ता साफ कर दिया - समय का चक्र देखिये कि पांच साल बाद वही चंद्रशेखर और वही अखिलेश यादव नये सिरे से मायावती की राजनीति को चैलेंज करने लगे हैं.
अखिलेश यादव जहां यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें जीत कर नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे हैं, चंद्रशेखर ने भी संसद पहुंच कर मुख्यधारा की राजनीति में जोरदार दस्तक दे डाली है. इस बार अखिलेश यादव का पीडीए प्रयोग वैसे ही सफल हुआ है, जैसे 2007 में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की तारीफ हो रही थी, जब वो अकेले दम पर यूपी में बीएसपी की सरकार बनाने में सफल हुई थीं.
अखिलेश यादव ने यूपी की 37 लोकसभा सीटें जीतकर दिल्ली का रुख कर लिया है, और चंद्रशेखर आजाद ने नगीना सीट पर 51.19 फीसदी वोट के साथ जीत दर्ज कर, बीएसपी उम्मीदवार को 1.33 फीसदी वोटों पर समेट कर अपना इरादा जाहिर कर दिया है.
मायावती के लिए अब इससे बड़ी मुश्किल क्या होगी कि संसद से लेकर सड़क तक पूरे देश में घूम घूम कर चंद्रशेखर दलितों के लिए आवाज उठाएंगे, और बीएसपी की तरफ से मायावती के मन की बात करने वाला ऐसा कोई नहीं होगा. ब्रेक के बाद आकाश आनंद को भी स्पीड पकड़ने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही.
मृगांक शेखर