तृणमूल कांग्रेस में ताजा बदलाव पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के मकसद से किए जा रहे व्यापक बंदोबस्त का ही हिस्सा है. पांच साल पहले मिले सबक से सतर्क ममता बनर्जी पहले से ही पश्चिम बंगाल की राजनीतिक किलेबंदी में जुटी हुई हैं - ताकि टीएमसी की सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी को अव्वल तो कोई चाल चलने का मौका ही न मिले, अगर मिल भी जाए तो फटाफट स्थिति को संभाला जा सके.
बंगाल की चुनावी राजनीति में कांग्रेस को पहले ही आगाह कर चुकीं ममता बनर्जी के लिए टेंशन बढ़ाने वाली सिर्फ बीजेपी या लेफ्ट पार्टियां ही नहीं हैं, पार्टी के भीतर भी ऐसे तत्व मौजूद हैं जिनको वक्त रहते मैनेज करना निहायत ही जरूरी है. ममता बनर्जी का भाषा आंदोलन तो बीजेपी के खिलाफ है ही, बंगाली समुदाय को साथ बनाये रखने का भी कारगर उपाय है - लेकिन सबसे जरूरी हो गया था, टीएमसी नेताओं को काबू में रखना.
महुआ मोइत्रा और कल्याण बनर्जी का सार्वजनिक झगड़ा तो चुनावी रैलियों से पहले रंगारंग कार्यक्रम पेश करने वाले कलाकारों के मनोरंजन जैसा उपाय लगता है. असली लड़ाई तो पार्टी के भीतर मची हुई थी, जो तृणमूल कांग्रेस की 12 मिनट वाली वर्चुअल मीटिंग में देखी गई है - और जिसके बाद कल्याण बनर्जी और सुदीप बंद्योपाध्याय का पत्ता काट दिया गया है.
करीब पांच साल पहले टीएमसी का महासचिव बनाये जाने के बाद अभिषेक बनर्जी को बड़ा प्रमोशन मिला है. अभिषेक बनर्जी को अब सुदीप बंद्योपाध्याय की जगह टीएमसी के संसदीय दल की कमान सौंप दी गई है - लेकिन, ये काम भी ममता बनर्जी की राजनीतिक रणनीति का बेहतरीन नमूना लगता है.
तृणमूल कांग्रेस में ताजा बदलाव और उसका मकसद
खबर है कि जैसे ही कल्याण बनर्जी की भूमिका पर सवाल उठा, और काकोली घोष दस्तीदार को नई जिम्मेदारी देने की बात आई, कल्याण बनर्जी भड़क गये. कल्याण बनर्जी ने चीफ व्हिप के पद से इस्तीफा दे दिया है, और सार्वजनिक रूप से खूब भड़ास निकाली है. कल्याण बनर्जी का कहना है कि ममता दीदी ने जिन लोगों को सांसद बनाया है, उनमें से ज्यादातर लोकसभा पहुंच ही नहीं पाते. पूछ रहे हैं, मैं क्या कर सकता हूं? मेरी क्या गलती है? लेकिन हर चीज के लिए मुझे ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
अक्सर ही विवादों में रहने वाले कल्याण बनर्जी के खिलाफ कार्रवाई के पीछे महुआ मोइत्रा के साथ साथ कीर्ति आजाद के साथ हुई सार्वजनिक बहस को भी एक वजह माना जा रहा है. कल्याण बनर्जी ने अपने इस्तीफे के पीछे टीएमसी नेताओं के मतभेद और सांसदों के बीच समन्वय की कमी को बताया है.
कल्याण बनर्जी की जगह काकोली घोष दस्तीदार को टीएमसी का नया चीफ व्हिप और शताब्दी रॉय को तत्काल प्रभाव से लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस का उपनेदता बनाया गया है. जाहिर है, ये सब अभिषेक बनर्जी के मनमाफिक हुआ है, और अब तो वो संसदीय दल के नेता भी बना दिये गये हैं.
दिल्ली में डेप्युटेशन पर अभिषेक बनर्जी
बीच में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बीच मतभेद की भी खबरें आई थीं, लेकिन अब सब ठीक बताया जा रहा है. ऐसी खबरें आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप और हत्याकांड के बाद कुछ दिनों तक आई थीं. वैसे भी जिसे ममता बनर्जी ने राजनीतिक विरासत संभालने के लिए चुना है, उसकी नाराजगी किस हद तक मोल ली जा सकती है. वैसे भी ममता बनर्जी और मायावती की राजनीतिक स्टाइल तो काफी अलग है.
ममता बनर्जी ने काफी सोच समझकर अभिषेक बनर्जी को टास्क दिया है. नई जिम्मेदारी बताती है कि अभिषेक बनर्जी को अब दिल्ली की राजनीति पर फोकस करना है. और स्वाभाविक है, ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की राजनीति अपने बाकी करीबी और भरोसेमंद नेताओं के सहयोग से संभालेंगी - और सबसे बड़ा फायदा होगा कि अभिषेक बनर्जी की कार्यशैली को पसंद नहीं करने वाले नेता भी बेरोक-टोक अपना काम कर सकेंगे.
माना जा रहा है कि अभिषेक बनर्जी के जिम्मे राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल कांग्रेस का दखल बढ़ाने, पश्चिम बंगाल से बाहर राज्यों में पार्टी के विस्तार और जनाधार बढ़ाने की कोशिश -और INDIA ब्लॉक के सहयोगी दलों से कोऑर्डिनेशन जैसे टास्क होंगे.
तो क्या ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक को लीड करने का मामला फिलहाल टाल दिया है? वर्चस्व की लड़ाई तो उपराष्ट्रपति चुनाव में आनी ही है, लेकिन लगता है ममता बनर्जी पूरी तरह पश्चिम बंगाल पर फोकस करना चाहती हैं - और सूबे की सियासत में सिर्फ और सिर्फ अपने मन की करना चाहती हैं.
तो क्या अभिषेक बनर्जी को विधानसभा चुनाव तक पश्चिम बंगाल में पार्टी की अंदरूनी सियासत से बेदखल माना जा सकता है? बेशक, कुछ हद तक तो ऐसा ही लगता है.
ऐसा समझा गया था कि शुभेंदु अधिकारी को टीएमसी से जुदा करने के लिए अकेले बीजेपी ही जिम्मेदार नहीं थी. और सिर्फ शुभेंदु अधिकारी ही नहीं, कई सीनियर नेता अभिषेक बनर्जी के अनावश्यक हस्तक्षेप से परेशान थे. कई नेताओं ने तो दबी जबान में अपने मन की बात मीडिया को भी बताई थी.
फिर तो, ममता बनर्जी मानकर चल रही होंगी कि आने वाले चुनाव में भी टकराव का माहौल बना रहेगा, इसलिए पहले से ही जरूरी इंतजाम कर दिया है. बहुत ज्यादा न सही, लेकिन शुभेंदु अधिकारी जैसे वाकये तो टाले ही जा सकते हैं - और यही वजह है कि ममता बनर्जी ने अभिषेक बनर्जी को कल्याण बनर्जी और सुदीप बंद्योपाध्याय जैसे नेताओं से मिलने और बातचीत कर नाराजगी दूर करने को कहा गया है.
अभिषेक बनर्जी को दिल्ली पर फोकस करने को बोलकर ममता बनर्जी ने उनके कामकाज से नाराज रहने वाले नेताओं को भी मैसेज दे दिया है - क्योंकि, ममता बनर्जी के कुछ भी करने से साथी नेताओं को दिक्कत नहीं होती, लेकिन अभिषेक बनर्जी को वे स्वीकार की नहीं कर पाते.
मृगांक शेखर