हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी तक ठीक, चंपई सोरेन का इंतजार BJP को भारी न पड़ जाए

अगर 43 लोगों के समर्थन की लिस्ट और सबूत के तौर पर विडियो फुटेज चंपई सोरेन दे रहे हैं तो उन्हें सरकार बनाने के लिए राज्यपाल को आमंत्रित किया जाना चाहिए. सरकार बुलानें में देर का मलतब है सीधे-सीधे पार्टी में तोड़-फोड़ को प्रोत्साहन देना.

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क्या चंपई सोरेन बन सकेंगे झारखंड के अगले मुख्यमंत्री क्या चंपई सोरेन बन सकेंगे झारखंड के अगले मुख्यमंत्री

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 01 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:30 PM IST

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और त्यागपत्र के साथ झारखंड के महागठबंधन ने राज्‍यपाल के समक्ष 43 विधायकों की सूची पेश की और साथ ही चंपई सोरेन के नेतृत्‍व में सरकार बनाने का दावा पेश किया. लेकिन, इतना होने के बावजूद नई सरकार को शपथ के लिए न्‍योता नहीं दिया जा रहा है. झारखंड में ऑपरेशन लोटस की बात चल रही है, लेकिन एक जनजाति बहुल राज्‍य में ऐसा करना भाजपा के लिए क्या खतरनाक नहीं हो सकता है? आखिर 22 घंटे बाद तक झामुमो को सरकार बनाने का न्योता क्यों नहीं दिया गया? खबर लिखे जाने तक चंपई सोरेन प्रदेश के राज्यपाल से मिलकर 43 विधायकों को साथ होने का विडियो भी पेश कर चुके हैं. इसके बाद भी अभी राज्य में सरकार बनाने का बुलावा चंपई सोरेन को नहीं मिल सका है. तो क्या मान लिया जाए बीजेपी आग से खेल रही है?

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1-पार्टी या घर में कलह के आधार पर चंपई को रोकना अनुचित
  
भाजपा सांसद निशिकांत दूबे एक्स पर लिखते हैं कि रांची सर्किट हाउस में हैदराबाद जाने वाले केवल 35 विधायक हैं . सरफराज अहमद विधायक नहीं है व हेमंत सोरेन जी जेल में हैं . अभी सभी विधायक राजभवन जाऐंगे,वहाँ से वे एयरपोर्ट गाय ,बकरी की तरह ठूंस के ले जाए जा रहे हैं . झामुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन जी के अनुपस्थिति में यह निर्णय विधायक दल के नेता का कौन लेगा? सूचना अनुसार शिबू सोरेन जी मुख्यमंत्री बसंत सोरेन जी को बनाना चाहते हैं.

निशिकांत दूबे के इस ट्वीट के 2 मतलब निकलते हैं. पहला यह है कि झामुमो के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है. 81 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए कम से कम 41 विधायकों का सपोर्ट होना चाहिए. पर सर्किट हाउस में केवल 34 विधायक मौजूद हैं. दूबे के ट्वीट का एक और आशय निकलता है कि सोरेन परिवार में सीएम बनाने के नाम पर जबरदस्त अंतर्कलह चल रही है.हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन भी सीएम बनना चाहते हैं. यह भी कहा जा रहा है कि शिबू सोरेन के बड़े बेटे स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन भी सीएम बनने की महत्वाकांक्षा रखती है.

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इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि परिवार में अंतर्कलह है सीएम बनने को लेकर. ये बात तो पार्टी भी स्वीकार कर चुकी है कि बुधवार को हुई पार्टी की बैठक में सीता सोरेन और बसंत सोरेन अनुपस्थित रहे. पर ये सब पार्टी का अंदरूनी मामला है.कोई पार्टी इसे कैसे भी डील करे ये उसके विवेक पर निर्भर है. अगर राज्यपाल को 43 लोगों  की लिस्ट और विडियो फुटेज चंपई सोरेन दे रहे हैं तो उन्हें सरकार बनाने के लिए राज्यपाल को आमंत्रित किया जाना चाहिए. सरकार बुलानें में देर का मलतब है सीधे-सीधे पार्टी में तोड़-फोड़ को प्रोत्साहन देना.

2-तो क्या मान लिया जाए कि बीजेपी खेला करने की कोशिश में है

राजनीतिक विश्वेषकों को ऐसा क्यों लग रहा है कि बीजेपी राज्य में ऑपरेशन लोटस की तैयारी में है. क्या बीजेपी नहीं समझ रही है कि अब झारखंड में तोड़ फोड़ करके अगर सरकार बना भी लेते हैं तो कितने दिन सरकार काम कर सकेगी. झारखंड विधानसभा में झामुमो के 29 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के 17 और आरजेडी के एक विधायक हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो महागठबंधन के पास 47 विधायक हैं. हालांकि चंपई सोरेन ने 43 विधायकों के समर्थन की ही लिस्ट दी है. वाम दल विधायक विनोद सिंह का भी झामुमो को समर्थन प्राप्त है.सरकार बनाने के लिए हालांकि केवल 41 विधायक चाहिए. वहीं बीजेपी के पास कुल 26 विधायक हैं, जबकि आजसू के पास 3 विधायक हैं, वहीं एनसीपी के पास भी एक विधायक है. इस तरह से एनडीए के पास कुल 30 विधायक हैं. निर्दलीयों को मिला लिया जाए तो भी बहुमत के आंकड़े से बीजेपी काफी दूर है.

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दूसरी और चंपई के साथ अगर कोई धोखा न हो तो वो सरकार बनाने के सबसे करीब हैं. बीजेपी को ऑपरेशन लोटस सफल बनाने के लिए काफी बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ करनी होगी जो एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए होगी. आदिवासी समाज बहुत संवेदनशील होता है. अगर समुदाय ने इसे दिल पर ले लिया तो पार्टी को लोकसभा चुनावों में ही लेने के देने पड़ सकते हैं.

3-राज्य में ऑपरेशन लोटस के लिए 3 परिस्थितियां और तीनों टेढ़ी खीर 

राज्य में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए तीन रास्ते हैं और तीनों इतने कठिन हैं कि उसे असंभव ही माना जा सकता है. पर राजनीति के खेल में कुछ भी असंभव नहीं है. पहला रास्ता यह है कि कांग्रेस पार्टी टूट जाए जैसा कि मंध्यप्रदेश में हुआ था. दलबदल कानून के तहत कम से कम कांग्रेस के 12 विधायक चाहेंगे तभी यह संभव हो सकेगा. क्योंकि किसी भी पार्ट में दलबदल के लिए दो तिहाई विधायकों का समर्थन जरूरी होता है. कांग्रेस के कुल 17 विधायक हैं. अगर 12 विधायक कांग्रेस के बीजेपी को सपोर्ट दे देते हैं एनडीए विधायकों की कुल संख्या 44 हो जाएगी.

-राज्य में ऑपरेशन लोटस के लिए दूसरी परिस्थिति यह हो सकती है कि झामुमो टूट जाए. झामुमो के पास 29 विधायक हैं इसलिए जरूरी हैं कि कम से कम 20 विधायक इसके लिए सामने आएं.

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-राजनीतिक विश्वेषकों का मानना है कि एक और कंडीशन हो सकती है झारखंड में बीजेपी सरकार के लिए. यदि  इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को तोड़ना संभव नहीं हुआ तो 4 झामुमो के विधायक रिजाइन कर दें तो भी बीजेपी का काम बन सकता है. इस तरह बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी.इस कंडीशन में राज्यपाल बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता दे सकते हैं. बाद में राज्यपाल सरकार को इतना टाइम दे सकते हैं कि एनडीए अपने लिए बहुमत जुटा ले.

पर उपरोक्त तीनों सेचुएशन बहुत मुश्किल है.दूसरे ये सेचुएशन मुश्किल होने के साथ-साथ बहुत अलोकप्रिय फैसले होंगे. इसे विपक्ष लोकतंत्र की हत्या बताएगा.जिसका ताप केवल झारखंड में ही नहीं आसपास के राज्यों तक जाएगा.यही नहीं बीजेपी के खिलाफ आदिवासियों में माहौल बनने का अंदेशा रहेगा.

4- अगर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश होती है तो भी बीजेपी के लिए गलत संदेश जाएगा

एक संभावना यह भी है कि राज्यपाल कुछ दिनों सरकार बनाने के लिए आमंत्रित ही न करें. फिर तोड़ फोड़ की स्थिति का हवाला देकर या राज्य में किसी के पास बहुमत न होने के आधार पर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दें.अगर सरकार प्रदेश में इस तरह का कोई फैसला लेती है या विधानसभा भंग करने की बात होती है तो भी यह भारतीय जनता पार्टी के लिए अलोकप्रिय फैसला होगा. ऐन लोकसभा चुनावो के मौके पर उम्मीद है कि सरकार ऐसा कुछ नहीं करना चाहेगी. 

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