भारतीय राजनीति में 'बुलडोजर एक्शन' शब्द अब एक ऐसा प्रतीक बन चुका है जो कानून व्यवस्था की सख्ती का पर्याय माना जाने लगा है. यह अवैध निर्माण, अपराधियों के घरों और माफियाओं के साम्राज्य को ध्वस्त करने की तेजतर्रार और कारगर रणनीति है, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2017 से लोकप्रिय है. लेकिन अब यह मॉडल केवल भाजपा शासित राज्यों तक सीमित नहीं रहा. 11 दिसंबर 2025 को कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भी इसी हथियार पर भरोसा जताते हुए ड्रग तस्करों के खिलाफ बुलडोजर चलाने की चेतावनी जारी की. कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वरा ने स्पष्ट रूप से कहा कि ड्रग से जुड़े अपराधों में सरकार 'निर्णायक कार्रवाई' करेगी, जिसमें तस्करों के घरों को बुलडोजर से गिराना भी शामिल है.
यह घोषणा कर्नाटक में ड्रग मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए की गई है, जहां 2025 में 5,747 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 4,510 की जांच पूरी हो चुकी है. कांग्रेस जो हमेशा भाजपा के 'बुलडोजर जस्टिस' की आलोचना करती रही है, अब उसी राह चल पड़ी है. कांग्रेस ने बुलडोजर एक्शन को 'सांप्रदायिक पूर्वाग्रह' का हथियार भी कहा है. लेकिन अब खुद कांग्रेस शासित कर्नाटक में इसका सहारा लेना राजनीतिक विडंबना को दर्शाता है.
कैसे एक घटना ने बुलडोजर को कानून-व्यवस्था का नायक बना दिया
योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले तीन वर्षों में चर्चा एंटी-रोमियो स्क्वॉड और बढ़ते एनकाउंटर मॉडल की थी. लेकिन 2 जुलाई 2020 की एक रात ने प्रदेश की रणनीति, उसके सख़्त प्रशासनिक रुख और राजनीतिक छवि सबको बदल दिया. और बुलडोजर न्याय की नींव रखी गई.
कानपुर के बिकरू गाँव में गैंगस्टर विकास दुबे और उसके साथियों द्वारा 8 पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या ने पूरे प्रदेश को हिला दिया. यह घटना कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल थी. जवाबी कार्रवाई में विकास दुबे के कई शूटर एनकाउंटर में मारे गए, और ठीक उसी समय पहली बार बुलडोज़र प्रशासनिक कार्रवाई का चेहरा बनकर सामने आया.
तब के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार, तत्कालीन एसएसपी कानपुर दिनेश पी. और आईजी जे.एन. सिंह की मौजूदगी में बिकरू में विकास दुबे का घर ध्वस्त किया गया.और यहीं से बुलडोज़र एक्शन का नया युग शुरू हो गया. यह कार्रवाई इतनी सुर्खियों में रही कि सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि अपराध पर सरकार की “ज़ीरो टॉलरेंस” नीति का प्रतीक बन गई.
बिकरू कांड के बाद उत्तर प्रदेश सरकार का हौसला बढ़ गया. इसके बाद संगठित ढंग से अवैध संपत्तियों पर बुलडोज़र चलाना शुरू किया. अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बड़े माफिया की अवैध संपत्तियां गिराए जाने से यह मॉडल और लोकप्रिय हुआ. प्रयागराज के उमेश पाल हत्याकांड के बाद बुलडोज़र की कार्रवाई प्रदेश सरकार की लोकप्रियता बढ़ गई. देखते-देखते बुलडोज़र सिर्फ माफियाओं तक सीमित नहीं रहा. दंगे के आरोपियों के ठिकानों पर, अवैध कब्जों पर और विवादित निर्माण पर लगातार कार्रवाई होने लगी. हर कार्रवाई ने इसे और अधिक लोकप्रिय तथा विवादित दोनों एक साथ बना दिया.
अन्य राज्यों पर असर: यूपी मॉडल बना राष्ट्रीय संदर्भ
योगी सरकार की इस शैली ने देश के कई राज्यों को प्रेरित किया. एक तरह से बुलडोज़र अब एक राष्ट्रीय राजनीतिक प्रतीक बन चुका है. महाराष्ट्र में मालवण में क्रिकेट मैच के दौरान लगाए गए भारत-विरोधी नारों के बाद देवेंद्र फडणवीस सरकार ने एक स्क्रैप दुकान पर बुलडोज़र एक्शन किया. इससे पहले भी महाराष्ट्र में लगातार अवैध निर्माणों पर कार्रवाई होती रही है.
मध्य प्रदेश में भी मोहन यादव सरकार ने अवैध निर्माणों पर बड़े स्तर पर बुलडोज़र चलाया. भोपाल में 110 दुकानों को खाली करवाना हो या गुना में 60 बुलडोज़रों के साथ की गई कार्रवाई - हर घटना ने बहस को आगे बढ़ाया. राजस्थान, असम और उत्तराखंड में भी इसी शैली की कार्रवाई बार-बार सुर्खियों में रही.
पंजाब में ‘वार ऑन ड्रग्स’ ने बुलडोज़र को किसी गैर भाजपाई सरकार ने पहली बार इस्तेमाल किया. कर्नाटक का मामला इसी कड़ी का हिस्सा है, जहां ड्रग तस्करी को निशाना बनाया जा रहा है. मालिकों को चेतावनी दी गई है कि यदि वे ड्रग पेडलर्स को घर किराए पर देते हैं, तो उनके घरों पर भी बुलडोजर चलेगा.
भगवंत मान सरकार ने ड्रग माफियाओं पर नकेल कसने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया है. तलवंडी में कुख्यात ड्रग तस्कर सोनू की अवैध संपत्ति को जमींदोज़ करने की कार्रवाई ने पंजाब में इस मॉडल को मजबूती दी. सरकार इसे ड्रग्स के खिलाफ युद्ध का हिस्सा बताती है.
इसके पहले राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के समय जयपुर में अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाया गया था. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के समय भी छिटपुट ढंग से बुलडोजर एक्शन हुआ था. तेलंगाना में भी कांग्रेस सरकार ने हैदराबाद में ड्रग माफिया के घर ध्वस्त किए. महाराष्ट्र (महा विकास अघाड़ी, 2022-24) सरकार के समय भी मुंबई में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला था. इन उदाहरणों से साफ है कि विपक्षी सरकारें भी बुलडोजर एक्शन को अपराध नियंत्रण के लिए अपना रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बुलडोजर एक्शन पर
'सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन को लेकर कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जो इसकी वैधता और सीमाओं को परिभाषित करता है. सबसे बड़ा मोड़ नवंबर 2024 में आया, जब कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 'बिना नोटिस के संपत्ति ध्वस्त करना असंवैधानिक है.'
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि वह अपराधी है. 'बुलडोजर जस्टिस' को विधि के शासन (रूल ऑफ लॉ) के खिलाफ बताया गया. इसके बावजूद भी बुलडोजर का इस्तेमाल राज्य सरकारें अपने सुविधानुसार करती रही हैं.
कोर्ट ने 15-सूत्री दिशानिर्देश जारी किए, जो हर राज्य के लिए बाध्यकारी हैं. इनमें प्रमुख हैं -
-नोटिस की अनिवार्यता: ध्वस्त करने से कम से कम 15 दिन पहले लिखित नोटिस देना होगा, जिसमें कारण और अपील का अधिकार स्पष्ट हो.
-सुनवाई का मौका: प्रभावित व्यक्ति को अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा. बिना सुनवाई के कार्रवाई अमान्य होगी.
-समय सीमा: नोटिस के 24 घंटे के अंदर बुलडोजर नहीं चला सकते. मार्च, 2025 में कोर्ट ने यूपी सरकार को इसी कारण फटकार लगाई, जब बरेली में 24 घंटे के नोटिस पर कार्रवाई हुई.
-हर्जाना: यदि कार्रवाई गैरकानूनी साबित हो, तो प्रभावित को मुआवजा देना होगा. अप्रैल, 2025 में यूपी सरकार को दो मामलों में 10-10 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया गया.
-पुनर्निर्माण: यदि संपत्ति कानूनी रूप से सही बनी थी, तो सरकार को दोबारा बनवाना होगा. कोर्ट ने ये आदेश मार्च, 2025 मे दिया था.
-2025 में भी कोर्ट सक्रिय रहा. दिसंबर, 2025 में, यूपी के सीतापुर में एक मदरसे पर बुलडोजर कार्रवाई पर सुनवाई हुई, जहां कोर्ट ने अंतरिम राहत दी. मार्च, 2025 में, कोर्ट ने भाजपा की 'बुलडोजर जस्टिस' को 'रूल ऑफ लॉ पर हमला' बताया.
इन फैसलों ने स्पष्ट किया कि बुलडोजर कानूनी प्रक्रिया का विकल्प नहीं, बल्कि इसका पूरक है. फिर भी, राज्य सरकारें इन दिशानिर्देशों का पालन करते हुए भी इसका राजनीतिक उपयोग कर रही हैं. उदाहरणस्वरूप, कर्नाटक सरकार ने अपनी चेतावनी में नोटिस का जिक्र किया, जो कोर्ट के फैसले का सम्मान दर्शाता है.
सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों ने बुलडोजर एक्शन को एक 'नियमबद्ध हथियार' बना दिया. लेकिन विवाद बरकरार है कि क्या यह गरीबों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाता है? कोर्ट ने कहा है कि कार्रवाई 'सभी के खिलाफ समान' होनी चाहिए, न कि चयनात्मक. फिर भी, आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 2024-25 में 10,000 से अधिक संपत्तियां ध्वस्त हुईं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम बहुल इलाकों में थी.
राज्य सरकारों का सबसे बड़ा हथियार क्यों?
-'त्वरित न्याय' का प्रतीक है
पारंपरिक अदालती प्रक्रिया वर्षों का समय लेती है, लेकिन बुलडोजर एक दिन में माफिया के साम्राज्य को नेस्तनाबूद कर देता है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने इसे 'माफिया विरोधी अभियान' के रूप में पेश किया, जिससे अपराध दर 20% घटी है.
2025 में, यूपी में लखनऊ नगर निगम ने 12 करोड़ की सरकारी जमीन मुक्त कराई.
-राजनीतिक लाभ
यह कार्रवााई 'शक्तिशाली सरकार' की छवि बनाती है. बिहार में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के नेतृत्व में 'बुलडोजर एक्शन 2.0' चला, जो अतिक्रमण हटाने के नाम पर माफियाओं को निशाना बनाता है. जाहिर है कि राज्य में अपने समकक्ष नेताओं के मुकाबले उन्हें एज मिलना तय है. ठीक यही हाल कर्नाटक मे सिद्धारमैया सरकार के साथ है. यह जनता को संदेश देता है कि सरकार कमजोर नहीं है.
-मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव
बुलडोजर एक्शन का वीडियो वायरल होता है, और ये सरकारों की लोकप्रियता बढ़ाने वाला होता है. उत्तर प्रदेश में योगी की लोकप्रियता का यही राज था. यूपी में जब योगी ने कहा, माफियाओं पर चुन-चुनकर बुलडोजर चलेगा तो उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती ही गई.अब बिहार में सम्राट चौधरी इस अभियान से हड़कंप मचा कर लोकप्रिय होना चाहते हैं.
संयम श्रीवास्तव