पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता... भारत के खिलाफ इस्लामी गठबंधन का ख्वाब फिर फेल!

पाकिस्तान फिर से मजहब के नाम पर भारत के खिलाफ गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहा है. अफगानिस्तान और बांग्लादेश को साथ लाने के उसके झूठे और फेल सपनों से ये साफ है कि वो अपने ही इतिहास से कुछ नहीं सीखा और अब खुद बिखरने की कगार पर है.

Advertisement
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

संदीपन शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 10 मई 2025,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

जो इतिहास से नहीं सीखते, वो उसी तरह की गलतियों को दोहराने के लिए मजबूर हो जाते हैं. लेकिन जो मिडिवल हिस्ट्री यानी मध्यकालीन इतिहास से नहीं सीखते, उनका हाल क्या होता है? तो दरअसल वो पाकिस्तान जैसे जिहादी मुल्क में बदल जाते हैं. एक ऐसा देश जो अब भी इस ख्वाब में जी रहा है कि एक बार फिर सब-कॉन्टिनेंट को मजहब के नाम पर बांटा जा सकता है.

Advertisement

शनिवार को दुनिया ने पाकिस्तान का वही पुराना सपना फिर से देखा - एक बंटे हुए भारत की कल्पना. इस बार नाम रखा गया 'बुनयान उल मर्सूस' - इंडिया पर मिलिट्री स्ट्राइक का एलान. इस ऑपरेशन की टाइमिंग, उसका नाम और इसके चारों तरफ खड़ा किया गया प्रॉपेगैंडा, ये सब एक बड़ी चाल का हिस्सा लगते हैं - इस्लाम का सहारा लेकर आतंक को बढ़ावा देना, लोगों को भड़काना और सब-कॉन्टिनेंट में अस्थिरता फैलाना. इस पूरी कहानी में एक अजीब सी पुरानी यादें ताजा होने वाली फीलिंग थी — लेकिन ये डेजा वू नहीं, बल्कि एक तरह का 'डेल्यूजनल वू' था. यानी, एक ऐसा भ्रम जो बार-बार दोहराया जा रहा है, बिना यह समझे कि इसका अंजाम क्या होगा.

पाकिस्तान की खतरनाक चाल

'बुनयान उल मर्सूस' एक अरबी शब्द है जो कुरान से लिया गया है. इसका मतलब होता है - एक मजबूत और एकजुट ढांचा. यानी ताकत और एकता की निशानी. पाकिस्तान की मीडिया के मुताबिक, ये ऑपरेशन सुबह की नमाज के ठीक बाद शुरू किया गया. लॉन्च के साथ ही पाकिस्तानी सैनिक “नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर” के नारे लगाते नजर आए - यानी उपर वाले की महानता का नारा.

Advertisement

दुनिया की कई आर्मी अपने सैनिकों को जोश दिलाने के लिए धार्मिक नारे और प्रतीक इस्तेमाल करती हैं. ऐसे में पाकिस्तान को भी इसका हक है कि वो अपने सैनिकों में जोश भरने के लिए धर्म का सहारा ले. लेकिन CNN की रिपोर्ट कुछ और ही कहानी बताती है. CNN के इंटरनेशनल डिप्लोमैटिक एडिटर, निक रॉबर्टसन के मुताबिक, पाकिस्तान की स्टेट मीडिया इस ऑपरेशन के साथ एक बड़ा जिहादी संदेश भी फैला रही थी - जिसमें भारत के मुसलमानों को भी इस लड़ाई में साथ आने की अपील की जा रही थी. सिर्फ भारत ही नहीं, बांग्लादेश और भारत के पूर्वी हिस्सों के मुसलमानों को भी उकसाने की कोशिश की गई.

पाकिस्तान की मीडिया ये सब अपने हुकूमत के जहरीले एजेंडे के इशारे पर कर रही थी. 'बुनयान उल मर्सूस' का एलान करने से कुछ घंटे पहले ही पाकिस्तान की मिलिट्री के स्पोक्सपर्सन ने दावा किया कि भारत ने अपने ही पंजाब के इलाकों पर और अफगानिस्तान में भी हमला किया है - जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं हुआ था. ये सिर्फ अफवाह थी, एक ऐसी चाल जिससे लोगों में भ्रम फैले और आपस में दरार पडे़.

मध्यकालीन भूत

ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने इस्लामी प्रतीकों का इस्तेमाल किया हो. 1947 में पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' चलाया था, जिसकी कमान 'जनरल तारिक' ने संभाली थी - असली नाम था ब्रिगेडियर अकबर खान. इस ऑपरेशन का नाम उस उम्मैयद जनरल तारिक इब्न जियाद से लिया गया था, जिसने 711 ईस्वी में स्पेन पर जीत हासिल की थी.

Advertisement

1965 में पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' शुरू किया. इसमें पाकिस्तान ने रजाकारों और अपने सैनिकों को गुरिल्ला ट्रेनिंग देकर 9-10 ग्रुप्स में कश्मीर भेजा. हर ग्रुप को किसी न किसी मध्यकालीन फौजी यूनिट के नाम पर रखा गया था. ये नाम भी उसी 8वीं सदी की उम्मैयद चढ़ाई से जुड़ा था जब स्पेन पर हमला हुआ था.

इन दोनों कारनामों में एक चीज कॉमन थी - पाकिस्तान को उम्मीद थी कि कश्मीर के लोग इंडिया के खिलाफ खड़े हो जाएंगे और पाकिस्तान की मदद करेंगे. लेकिन जो असल में हुआ, उसने पाकिस्तान को हिला कर रख दिया. कश्मीर के लोगों ने इन घुसपैठियों की खबर तुरंत प्रशासन को दी और इंडियन आर्मी के साथ मिलकर उन्हें वापस पाकिस्तान की सीमा में खदेड़ दिया.

भारत के शेर

पाकिस्तान को भारत के मुसलमानों और सिखों के बारे में क्या पता है? आज की सच्चाई देख लें, तो जवाब होगा - कुछ भी नहीं. भारत के सिख और मुस्लिम देशभक्तों की बहादुरी पर किताबें लिखी जा सकती हैं. लेकिन पाकिस्तान की जिहादी याददाश्त को थोड़ा ताजा करने के लिए कुछ उदाहरण काफी हैं.

1947 में जब पाकिस्तानी हमलावर कश्मीर में घुसे, उस वक्त जम्मू-कश्मीर में इंडियन आर्मी की कमान संभाल रहे थे मेजर जनरल कुलवंत सिंह. और उस समय की 1 सिख रेजिमेंट, जिसने हमलावरों की पहली लहर को रोका, उसकी अगुवाई कर रहे थे कर्नल हरबख्श सिंह. और नाऊशेरा के शेर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को भला कौन भूल सकता है?

Advertisement

दिसंबर 1947 में जब पाकिस्तानियों ने झांगर पर कब्जा कर लिया - जो मीरपुर-राजौरी रूट पर इंडियन आर्मी का बेस था - तो ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खाई थी कि जब तक झांगर को वापस नहीं लेते, तब तक वो कश्मीर की ठंड में जमीन पर ही सोएंगे.

फरवरी 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा पर पाकिस्तानियों के बड़े हमले को नाकाम कर दिया. दुश्मन की संख्या ज्यादा थी, लेकिन उसके बावजूद उन्होंने उन्हें पीछे धकेल दिया. कुछ दिन बाद, लड़ाई से ठीक पहले, ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने जवानों को एक खत लिखा - जो आज भी भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में दर्ज है:

'दुनिया की निगाहें हम पर हैं. हमारे देशवासियों की उम्मीदें हमारे कंधों पर हैं.
हमें लड़खड़ाना नहीं है - हमें उन्हें निराश नहीं करना है.
हर इंसान को एक न एक दिन मरना ही है,
तो उससे बेहतर मौत क्या होगी,
जब हम खड़े हों दुश्मन के सामने,
अपने बाप-दादाओं की राख और अपने भगवानों के मंदिरों की हिफाज़त में.
तो चलो साथियों, बेखौफ चलो झांगर की तरफ. भारत को हर सैनिक से उसकी पूरी जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद है.'

कुछ दिन बाद जब झांगर को वापस ले लिया गया, तो आखिरकार ब्रिगेडियर उस्मान के लिए एक चारपाई बिछाई गई. और उनका नाम सदा के लिए भारत के इतिहास में अमर हो गया - नौशेरा के शेर के तौर पर.

Advertisement

पाकिस्तान का भ्रम

अगर पाकिस्तान अब भी ये सोच रहा है कि भारत को मजहब के नाम पर बांटा जा सकता है, तो वो हकीकत से बहुत दूर है. कई बार कोशिश कर लेने के बाद भी अगर इस्लामाबाद को अब भी ये उम्मीद है कि भारतीय देशभक्त धर्म के आधार पर टूट जाएंगे, तो वो एक हसीन धोखे में जी रहा है.

चलन भले पुराना हो, लेकिन बात फिर से दोहराने लायक है - बंटवारे के बाद ज्यादा मुसलमानों ने भारत में ही रहने का फैसला किया था. और उनमें से कई ने पाकिस्तान को जंगों में वो सबक सिखाया है जो वो कभी नहीं भूल सकता.

याद है न, परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद? वही हीरो जिसने आसल उत्ताड़ की जंग में सिर्फ एक गन से पाकिस्तान के आठ पैटन टैंक तबाह कर दिए थे?

'दो-राष्ट्र सिद्धांत' नाम की मजाक

इतिहास के खेल ने पाकिस्तान को दो तोहफे थाली में सजाकर दे दिए थे - एक था पूर्वी पाकिस्तान, जो बंटवारे की वजह से मिला, और दूसरा था अफगानिस्तान, जो 'कोल्ड वॉर' की देन था. लेकिन अपनी ही गलतियों से पाकिस्तान ने अपना पूरब खो दिया. नस्ल और भाषा के आधार पर वहां के बंगालियों पर इतना जुल्म किया कि पूरा इलाका कब्रिस्तान बन गया. 1971 में पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन सर्चलाइट' शुरू किया - जिसमें बंगाली नेताओं, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, यहां तक कि उनके अपने ही सिक्योरिटी पर्सनल को बेरहमी से मारा गया.

Advertisement

इस नरसंहार के बाद पूरे उपमहाद्वीप में 1947 के बाद का सबसे बड़ा मानव संकट खड़ा हो गया. लाखों लोग बेघर हो गए, हजारों मारे गए - सब पाकिस्तान की 'एथनिक क्लीनजिंग' की नीति की वजह से. इस कत्लेआम ने भारत को गुस्से से भर दिया, और नतीजा हुआ - 1971 की जंग में पाकिस्तान की शर्मनाक हार, आत्मसमर्पण और देश का दो टुकड़ों में बंट जाना.

अब वही पाकिस्तान, जिसे बांग्लादेश को मिटाना था, उसी बांग्लादेश को भारत के खिलाफ जंग के लिए न्योता दे रहा है. क्या पाकिस्तान को जरा भी अहसास है कि ये कितना अजीब ही नहीं, बल्कि एक मजाक भी है? ऐसा मजाक जो सिर्फ एक ऐसे देश को शोभा देता है, जो अपनी ही याददाश्त खो बैठा है.

यही हाल उसका अफगानिस्तान को लेकर भी है. भारत पर हमले के फर्जी किस्से फैलाकर पाकिस्तान अफगानों को भड़काना चाहता है. लेकिन दुनिया के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा देश हो, जिसने अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान जितनी गद्दारी की हो.

पहले तो पाकिस्तान ने अमेरिका का साथ देकर सोवियत कब्जे के खिलाफ अफगान जंग लड़ी. फिर 9/11 के बाद ऐसा दोहरा खेल खेला कि पूरी दुनिया में मजाक बन गया - अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी, और उन्हीं आतंकियों को अपने यहां छिपाया भी.

Advertisement

अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की इतनी दोगली चाल रही है कि आज काबुल उसे दुश्मन मानता है. ये इस्लामाबाद के उस ख्वाब को करारा जवाब है, जिसमें वो भारत के खिलाफ एक इस्लामी गठबंधन बनाने की सोच रहा है.

आज पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान एक फेल हो चुका देश है, जो खुद अपने भारत-विरोधी जुनून और जिहादी सपनों में डूबकर आत्महत्या की कगार पर पहुंच गया है. हर कुछ महीने में वो दुनिया से भीख मांगता फिरता है. अगर चीन का सहारा न हो, तो पाकिस्तान की गलत नीतियों और टूटी अर्थव्यवस्था की वजह से वो कब का अंतरराष्ट्रीय मंच से अलग-थलग पड़ चुका होता. 

आज उसके दो प्रांत पाकिस्तान से अलग होने की लड़ाई लड़ रहे हैं, क्योंकि लाहौर-लॉबी का एकाधिकार उन्हें बर्दाश्त नहीं. ऐसे में अगर पाकिस्तान ये सोच रहा है कि बाकी देश उसके साथ मिलकर भारत से लड़ेंगे, तो वो पूरी तरह से हकीकत से कट चुका है. और जो देश अपने ही अतीत से कुछ नहीं सीखते, उनका हाल भी पाकिस्तान जैसा ही होता है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement