रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मजहबी कट्टरपंथ और आतंकवाद के खिलाफ एक ऐसी लड़ाई जीती है, जिसकी दुनिया में कहीं और मिसाल नहीं मिलती. ट्रंप समेत दुनिया के कई राजनेताओं ने जहां 'radical Islamic terrorism' बोल-बोलकर राजनीति की, वहीं पुतिन प्रधानमंत्री मोदी की तरह इस जुमले का इस्तेमाल कभी नहीं करते. कट्टरपंथ और मजहब को अलग-अलग देखने की उनकी नीति वैसी ही कुछ है, जैसी भारत की. पुतिन आतंकवादियों को लेकर बेहद सख्त हैं, लेकिन इस्लाम पर बोलते हुए उतने ही सावधान.
पुतिन ने तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कहा कि 'मैं चाहूंगा कि इस्लाम का नाम आतंकवाद के साथ बेवजह न जोड़ा जाए.' यानी उनके हिसाब से दुश्मन इस्लाम नहीं, बल्कि ऐसे लोग हैं जो मजहब का गलत इस्तेमाल करके हिंसा फैलाते हैं.
2015 में मॉस्को की एक बड़ी मस्जिद का उद्घाटन हुआ. वहां भी पुतिन ने बिल्कुल यही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि 'आतंकवादी चतुराई से मजहबी भावनाओं का इस्तेमाल अपने रानीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए करते आए हैं.' इसके बाद उन्होंने इस्लामिक स्टेट का जिक्र करते हुए अपनी बात को और साफ किया कि 'इनकी विचारधारा झूठ और इस्लाम को तोड़-मरोड़कर बनाए गए डिजाइन पर टिकी है.'
फिर वे यह भी कहना नहीं भूले कि 'मुस्लिम नेता बहादुरी से इस कट्टरपंथी प्रोपेगेंडा का मुकाबला कर रहे हैं.' सोचने वाली बात यह है कि पुतिन जैसा सख्त नेता, जो अपने दुश्मन को दुनिया में कहीं भी मार सकता है, वो धर्म की इज्जत बचाने की बात क्यों कर रहा है?
इसका जवाब रूस के नक्शे में ही छिपा है. रूस में दो से ढाई करोड़ मुसलमान रहते हैं. जो वहां की आबादी का करीब 15 फीसदी हैं. जो कॉकस इलाके में चेचन्या, दागिस्तान जैसे रिपब्लिक में रहते हैं. ये इलाके सेंट्रल एशिया के कई देशों से जुड़े हैं. जिनमें मुस्लिम आबादी बहुल कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान शामिल हैं. अगर पुतिन इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ते, तो देश के भीतर ही नहीं, पड़ोसी देशों के करोड़ों मुसलमानों को अपने ही खिलाफ खड़ा कर देते. खुराफात करने का मौका दे देते. इसलिए पुतिन की रणनीति साफ रही- आतंकवाद से लड़ाई करो, लेकिन मुसलमानों को दुश्मन मत बनाओ.
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक पुतिन को अपनी खुफिया एजेंसियों पर बहुत भरोसा है. इसलिए वे आतंकवाद से निपटने के लिए बयानबाजी करने पर बहुत विश्वास नहीं करते. काउंटर टेररिज्म को लेकर उनका नजरिया पश्चिमी देशों से बिल्कुल उलट हैं. जहां, आतंकवाद की परिभाषा को लेकर अब भी भ्रम की स्थिति है. और इसी के चलते ध्रुवीकरण होता है. जहां एक पक्ष इस्लाम और मुसलमानों को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार मानता है, वहीं दूसरा पक्ष इस विचार के विरोध में रहता है.
पुतिन की चेचन्या में रही सबसे कामयाब चाल
पुतिन को अपनी नीतियों के चलते सबसे बड़ी कामयाबी चेचन्या में मिली. जहां कभी रूस के खिलाफ दुश्मनी थी. कई आतंकी हमले हुए. पुतिन ने अपनी लड़ाई को दो हिस्से में बांटा. आतंकियों और मुसलमानों को अलग-अलग किया. पुतिन ने सारा भरोसा सेना पर नहीं रखा, बल्कि स्थानीय मुस्लिम नेतृत्व के साथ गठजोड़ किया. चेचन्या की लड़ाई में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब इस इलाके के इमाम अख्मद कादिरोव रूस के साथ मिल गए.
यह चाल इतनी सफल हुई कि कभी रूस का सबसे बड़ा सिरदर्द रहा चेचन्या आज पूरी तरह शांत है. और अख्मद कादिरोव के बेटे रमजान कादिरोव वहां के सबसे ताकतवर नेता हैं. और रूसी झंडा उठाए खड़े हैं.
‘अच्छी’ और ‘खतरनाक’ मजहबी आइडियालॉजी को अलग-अलग किया
पुतिन ने सिर्फ नेताओं से गठजोड़ नहीं किया, उन्होंने इस्लामिक परंपरा के भीतर भी फर्क पैदा किया. सूफी इस्लाम को उन्होंने खुलकर समर्थन दिया. जिसे रूसी मुसलमानों का पारंपरिक धर्म माना जाता है. वहीं दूसरी ओर कट्टरपंथी मानी जाने वाली वहाबी विचारधारा को उन्होंने डगिस्तान जैसे इलाकों में पूरी तरह बैन कर दिया.
कुलमिलाकर, पुतिन ने आतंकवाद को 'इस्लाम' नहीं कहा. बल्कि 'इस्लाम के भीतर की कट्टरपंथी धारा' को टारगेट किया. बिना इधर-उधर की बात किए. यह कदम कई बार आलोचना का कारण भी बना, पर पुतिन का टारगेट साफ था- 'कट्टरपंथ को पकड़ो, मुसलमानों को नहीं.'
मीडिया पर भी कानूनी लगाम, इस्लाम को बदनाम नहीं होने दिया
पुतिन के रूस में मीडिया को यह कानूनी आदेश है कि 'इस्लामिक स्टेट' का नाम लेते समय ये जरूर लिखें कि यह एक 'प्रतिबंधित आतंकी संगठन' है. इसका उद्देश्य यह था कि कहीं लोग यह न सोच लें कि सरकार इस्लाम के खिलाफ बोल रही है. यानी रूस में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ बंदूक से नहीं, बल्कि शब्दों से भी लड़ी गई.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी वही लाइन- मजहब का नाम लिए बिना कहा 'इंटरनेशनल टेररिज्म'
जब ट्रंप और पुतिन फोन पर सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की बात कर रहे थे, तो अमेरिका इसे 'इस्लामी आतंकवाद' के खिलाफ लड़ाई मान रहा था. लेकिन क्रेमलिन ने बयान जारी किया कि वे सबसे बड़े खतरें 'अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद' से लड़ाई कर रहे हैं. मजहब का जिक्र तक नहीं. पूरी कहानी से जो बात साफ निकलकर आती है, वह यह है कि पुतिन ने आतंकवाद को धर्म से अलग रखा. यह सिर्फ भाषण नहीं था. कानून, नीतियों और उनकी रणनीति में भी साफ दिखता है. उन्होंने मॉडरेट मुस्लिम नेताओं के साथ गठबंधन किया, ताकि आतंकवाद को अंदर से कमजोर किया जा सके.
पुतिन की रणनीति सरल नहीं थी. एक तरफ बम और गोलियों से आतंकवादियों को खत्म करना, दूसरी तरफ मुसलमानों को सम्मान देकर अपने साथ रखना. उन्होंने समझा कि रूस जैसा विशाल और कई धर्मावलंबियों वाला देश किसी एक मजहब को दुश्मन बनाकर नहीं चल सकता. इसलिए उन्होंने आतंकवाद को निशाना बनाया, इस्लाम को नहीं. पुतिन ने आतंकवाद से लड़ाई बंदूकों से भी लड़ी, और दिमाग से भी. उन्होंने इस्लाम, मुसलमान और आतंकवाद के बीच एक स्पष्ट भेद स्थापित किया. जो कारगर भी रहा.
धीरेंद्र राय