मोदी सरकार ने क्‍या वाकई मनरेगा पर बुलडोजर चला दिया? सोनिया गांधी के तर्कों में कितना वजन

मनरेगा के नाम को बदलने का आरोप झेल रही मोदी सरकार पर सोनिया गांधी ने एक और आरोप लगा दिया है. सोनिया ने एक अंग्रेजी दैनिक में लेख लिखकर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने मनरेगा स्कीम को बुलडोज कर दिया. आइये देखते हैं कि उनके आरोपों में कितनी सच्चाई है.

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सोनिया गांधी और नरेंद्र मोदी सोनिया गांधी और नरेंद्र मोदी

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:47 AM IST

मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना रही है, जो 2005 में कांग्रेस सरकार के समय में लागू हुई थी. यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों का गारंटेड रोजगार प्रदान करती थी, जिससे गरीबों, किसानों और मजदूरों को आर्थिक सुरक्षा मिलती है.

कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने द हिंदू अखबार में एक लेख के माध्यम से मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उन्होंने मनरेगा को बुलडोज कर दिया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले 11 सालों में इसे कमजोर किया और अब VB-G RAM G (विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन - ग्रामीण) बिल से इसे पूरी तरह बदल दिया है, जो एक ब्लैक लॉ है.

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मनरेगा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सोनिया गांधी के आरोपों का सारांश

मनरेगा की स्थापना 2005 में हुई थी, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और 41 (रोजगार का अधिकार) पर आधारित है. सोनिया गांधी, जो उस समय नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (NAC) की चेयरपर्सन थीं, ने इसे ग्राम स्वराज की दिशा में एक कदम बताया था. योजना ने ग्रामीण गरीबों को कानूनी रूप से 100 दिनों का रोजगार दिया, माइग्रेशन रोका, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई और पंचायतों को मजबूत किया. कोविड-19 महामारी में यह लाइफलाइन साबित हुई, जहां 2020-21 में 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को काम मिला.

सोनिया गांधी के हालिया बयान में मुख्य आरोप यह है कि मोदी सरकार ने 2014 से मनरेगा को कमजोर करने की साजिश की उन्होंने कहा कि सरकार ने बजट कम किया, पेमेंट डिले की, आधार और मोबाइल लिंकिंग से लाखों वर्कर्स को बाहर किया, और अब VB-G RAM G बिल से इसे पूरी तरह खत्म कर दिया.

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बिल को उन्होंने काला कानून कहा, क्योंकि यह बिना बहस, स्टेट्स से कंसल्टेशन या अपोजिशन की सहमति के पास किया गया. उनके अनुसार, नया कानून सेंट्रल गवर्नमेंट को रोजगार तय करने का अधिकार देता है, जो ग्राउंड रियलिटी से दूर है. सोनिया ने इसे करोड़ों किसानों, मजदूरों और गरीबों के हितों पर हमला बताया, और कांग्रेस द्वारा इसका विरोध करने का वादा किया. उन्होंने मनरेगा को महात्मा गांधी के सर्वोदय (सभी का कल्याण) का प्रतीक बताया, और इसके डेमोलिशन को नैतिक फेलियर कहा, जो वर्षों तक आर्थिक और मानवीय नुकसान पहुंचाएगा.

इन तर्कों में प्रारंभिक दम दिखता है, क्योंकि मनरेगा की शुरुआत कांग्रेस की थी, और सोनिया गांधी इसमें व्यक्तिगत रूप से जुड़ी थीं. लेकिन क्या ये आरोप फैक्ट-बेस्ड हैं? आइए जांच करते हैं

पहला आरोप : बजट कट और फंडिंग पर तर्क की जांच

सोनिया गांधी का एक मुख्य तर्क है कि सरकार ने पिछले 11 सालों में मनरेगा को क्रॉनिकल अंडरफंडिंग से थ्रॉटल किया. मतलब सरकार द्वारा योजना को लगातार और जानबूझकर कम फंडिंग देना, जिससे वह धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाए और अपनी पूरी क्षमता से काम न कर पाए.  उन्होंने आरोप लगाया कि बजट की कमी से योजना की प्रभावशीलता, रोजगार सृजन और लाभार्थियों की संख्या पर नकारात्मक असर पड़ा है. उन्होंने कहा कि बजट हमेशा डिमांड से कम रहा, जिससे योजना कमजोर हुई.

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फैक्ट्स- 2024-25 के लिए मनरेगा का बजट 86,000 करोड़ है, जो अब तक का सबसे ज्यादा है. लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह डिमांड से कम है. अगस्त 2025 तक 60% बजट खर्च हो चुका था. 2024-25 में औसत वर्क डेज प्रति हाउसहोल्ड 44 तक गिर गया, जो 100 से काफी कम है. कांग्रेस का दावा है कि न्यूनतम मजदूरी 400 रुपया प्रति दिन होनी चाहिए, लेकिन वर्तमान में औसत 221 रुपये प्रतिदिन ही है.

सरकार समर्थकों के तर्क- बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कहा कि बजटिंग अब नॉर्म-बेस्ड है, जो सभी स्कीम्स की तरह है. 2024-25 में एलोकेशन डिमांड से मैच करता है, और महिलाओं की भागीदारी 48% से 56.74% बढ़ी.

आधार-सीडेड वर्कर्स 76 लाख से 12.11 करोड़ हो गए, और ई-पेमेंट 37% से 99.99% हो चुका है. X पोस्ट्स में बीजेपी सपोर्टर्स ने कहा कि सोनिया झूठ बोल रही हैं, क्योंकि गारंटेड डेज 100 से 125 बढ़े, और एग्रीकल्चर सीजन में 60 डेज एक्स्ट्रा से टोटल 185 डेज का पोटेंशियल है.

सोनिया के तर्क में कितना दम- 

बजट हाइएस्ट है, लेकिन डिमांड से कम है. जैसे ओडिशा, तमिलनाडु, राजस्थान में वर्क डेज 7.1% गिरे. लेकिन क्रॉनिकल अंडरफंडिंग की बात ओवरस्टेटेड लगता है, क्योंकि मोदी सरकार ने कोविड में एक्स्ट्रा फंड्स दिए. कुल मिलाकर बजट इश्यू रियल है, लेकिन खत्म करने का नहीं, बल्कि मैनेजमेंट का है.

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दूसरा आरोप : पेमेंट डिले और वर्कर एक्सक्लूजन पर जांच

सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि सरकार ने पेमेंट डिले से योजना को कमजोर किया, और आधार-मोबाइल लिंकिंग से लाखों वर्कर्स बाहर हुए. उन्होंने कहा कि मनरेगा कोविड में लाइफलाइन थी, लेकिन अब गरीबों के हितों पर हमला है.

फैक्ट्स- 2024-25 में स्टेज-1 डिले पेमेंट 949 करोड़ रुपये है . जो राज्यों की ओर से डिले हुए हैं. लुधियाना जैसे जिलों में डिले से वर्क्स रुके. 2023-25 में कॉन्ट्रैक्टर्स को पेमेंट डिले से फाइनेंशियल स्ट्रेन पैदा हुआ . कांग्रेस का कहना है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी (NMMS ऐप) से एक्सक्लूजन बढ़ा, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट/स्मार्टफोन नहीं है.

हालांकि इंटरनेट और स्मार्टफोन वाले तर्क में दम नहीं लगता . मनरेगा में बड़े पैमाने पर हो रही धांधली को रोकने के लिए यह जरूरी है कि तकनीक का सहारा लिया जाए. डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम भी तभी कारगर हो सकती है. अगर कुछ परसेंट लोगों को दिक्कत हुई हो तो इसके लिए पूरी योजना को दांव पर नहीं लगाया जा सकता है.

सरकार का काउंटर- रूरल डेवलपमेंट मिनिस्टर शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बिल टाइमली पेमेंट सुनिश्चित करता है, और जॉब गारंटी स्ट्रॉन्ग करता है. एम्प्लॉयमेंट जेनरेशन 82% बढ़ा, आधार-लिंक्ड पेमेंट 100% करीब हो रहा है. मालवीय कहते हैं कि सोनिया गांधी सिस्टम की विफलताओं को सुविधाजनक रूप से नज़रअंदाज़ करती हैं, जिन्होंने वर्षों तक मनरेगा को परेशान किया. 2024–25 में ही 193.67 करोड़ रुपये का दुरुपयोग हुआ, जिसमें से मात्र 5.32% की वसूली; काग़ज़ों पर मौजूद फर्जी कार्य; श्रम के स्थान पर मशीनों का इस्तेमाल; और 23 राज्यों में डिजिटल उपस्थिति प्रणालियों की अवहेलना. ये छोटी चूक नहीं, बल्कि गहरे संरचनात्मक दोष हैं.

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सोनिया के तर्क में कितना दम

डिले पेमेंट रियल इश्यू है, जो गरीबों को प्रभावित करता है. लेकिन एक्सक्लूजन पर डेटा मिक्स्ड है. आधार से ट्रांसपेरेंसी बढ़ी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. लेकिन थोड़ी बहुत ग्रामीण चैलेंजेस हैं. कोविड में मनरेगा की भूमिका निर्विवाद है, लेकिन सरकार ने इसे जारी रखा.

तीसरा आरोप - VB-G RAM G बिल और सेंट्रलाइजेशन का आरोप

सोनिया गांधी ने VB-G RAM G बिल को ब्लैक लॉ कहा, जो मनरेगा को रिप्लेस करता है. उन्होंने कहा कि बिल बिना बहस पास किया गया, सेंट्रल गवर्नमेंट डिसाइड करेगी, पंचायतें कमजोर होंगी, और 60-डे वर्क रेस्ट्रिक्शन से ईयर-राउंड एम्प्लॉयमेंट खत्म.

फैक्ट्स- बिल 18 दिसंबर 2025 को पास हुआ, जो गारंटेड डेज 100 से 125 दिन तक बढ़ाता है. लेकिन फंडिंग 60:40 (सेंटर:स्टेट) हो गया, जो पहले 90:10 था. 60-डे रेस्ट्रिक्शन एग्रीकल्चर सीजन के लिए है, फ्लेक्सिबल.अपोजिशन ने कहा कि कोई डिबेट नहीं हुआ. अमित मालवीय लिखते हैं कि व्यवहार में मनरेगा कभी 90% केंद्र-प्रायोजित नहीं रहा. राज्यों ने पहले से ही सामग्री लागत का 25%, अधिकांश प्रशासनिक खर्च, और बेरोजगारी भत्ता का 100% वहन किया.अक्सर बिना पारदर्शिता के. नया मॉडल केवल फंडिंग को औपचारिक और तार्किक बनाता है, जिससे राज्य शीर्ष-से-नीचे आदेशों के निष्क्रिय क्रियान्वयनकर्ता नहीं, बल्कि समान भागीदार बनते हैं.

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सरकार का काउंटर- यह रिन्यूअल है, न कि डेमोलिशन. स्टेट्स पार्टनर बनेंगी, ग्राम सभाएं प्लान अप्रूव करेंगी. उनकी यह चिंता भी निराधार है कि पंचायतों और ग्राम सभाओं को कमजोर किया जा रहा है. अमित मालवीय लिखते हैं कि VB–G RAM G Act के तहत सभी कार्य विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं से निकलते हैं, जिन्हें ग्राम सभाओं से स्वीकृति मिलती है। जो समाप्त किया जा रहा है, वह बिखराव और अपारदर्शिता हैविकेंद्रीकरण नहीं.

मालवीय उल्टे आरोप लगाते हैं कि मनरेगा पर व्यापक विमर्श नहीं हुआ. वह लिखते हैं कि मनरेगा की उत्पत्ति को व्यापक परामर्श का परिणाम बताकर उसका रोमानीकरण करती हैं. यह सच से कोसों दूर है. मनरेगा की परिकल्पना और संचालन नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (NAC) ने किया था. यह एक गैर-निर्वाचित निकाय, जो व्यवहार में एक सुपर-कैबिनेट की तरह काम करता था. इसकी भूमिका इतनी प्रभावशाली थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अक्सर सोनिया गांधी की NAC के अधीन सुपर कैबिनेट सेक्रेटरी कहा जाता था. आज इस प्रक्रिया को सहभागी लोकतंत्र बताना इतिहास को फिर से लिखने जैसा है.

चौथा आरोप: ग्रामीण मजदूरी नहीं बढ़ पाएगी

सोनिया गांधी यह भी तर्क देती हैं कि मनरेगा आज भी ग्रामीण जीवन-यापन का केंद्रीय स्तंभ है और नया कानून ग्रामीण मजदूरी वृद्धि को दबा देगा.

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सरकार का पक्ष- मालवीय लिखते हैं कि यह इस बात की अनदेखी है कि ग्रामीण भारत बदल चुका है. मनरेगा ने संकट के समय राहत दी, लेकिन वह आज की ग्रामीण वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं रहा. नाबार्ड और MPCE आँकड़ों के अनुसार, 80% ग्रामीण परिवारों की खपत बढ़ी है, 42.2% की आय में वृद्धि हुई है, और 58.3% अब पूरी तरह औपचारिक ऋण पर निर्भर हैं. आज मनरेगा एक फॉलबैक सेफ्टी नेट है, न कि ग्रामीण आजीविका की परिभाषा.

यह दावा भी भ्रामक है कि पुराने ढांचे में बदलाव से सबसे गरीब तबके को छोड़ दिया जाएगा. ग्रामीण गरीबी में तेज गिरावट आई है- 25.7% से घटकर 4.86%. 2014 के बाद से MSME ऋण तीन गुना हो चुका है, जिससे स्वरोजगार और गैर-कृषि आजीविकाओं को बल मिला है. सार्वजनिक नीति को 2005 की परिस्थितियों में जकड़कर नहीं रखा जा सकता, जब भारत स्पष्ट रूप से आगे बढ़ चुका है.

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