कर्नाटक सरकार का संकट सुलझाने में जुटी कांग्रेस का इतिहास बताता है कि जब भी ऐसा कोई मौका आया है पलड़ा हमेशा बुजुर्गों की ओर झुका है. अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व को हमेशा से पेशेंस रखने की सलाह दी जाती रही है. यही कारण रहा है कि कांग्रेस पार्टी में महत्वाकांक्षी युवा नेताओं के साथ अन्याय हो जाता रहा है. ज्योतिरादित्य सिंधिया (जिन्होंने 2020 में मध्य प्रदेश में असंतोष के बाद बीजेपी का दामन थाम लिया) और सचिन पायलट (जिन्होंने 2020 में राजस्थान में विद्रोह किया लेकिन पार्टी में ही बने रहे) दोनों ही कांग्रेस हाईकमान के वादों और आंतरिक कलह के शिकार हुए.
अब, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार (डीकेएस) की स्थिति भी इसी तरह की लग रही है. उनके सामने दो विकल्प हैं या तो सचिन पायलट की तरह धीरज रखें और इस उम्मीद में जिंदगी लगा दें कि उन्हें भी कभी बुजुर्ग होने का माइलेज मिलेगा. या तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर जाएं, फिर जो होगा उसे देखा जाएगा की तर्ज पर.
डीकेएस का संघर्ष और सीएम बनाने का वादा
कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने डीकेएस को आश्वासन दिया था कि वे सीएम सिद्धारमैया के साथ 2.5 साल की पावर-शेयरिंग फॉर्मूला अपनाएंगे. सिद्धारमैया (77 वर्ष) को पहले आधा कार्यकाल मिला, और नवंबर 2025 में 2.5 साल पूरे होने पर डीकेएस (63 वर्ष) को सीएम बनना था.
कांग्रेस के सामने संकट यह है कि सिद्धारमैया ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है. बताया जा रहा है कि राहुल गांधी और हाईकमान सिद्धारमैया के पक्ष में हैं, जो डीकेएस के समर्थकों को धोखा लग रहा है. अभी तक राहुल गांधी और डीकेएस की मुलाकात नहीं हो सकी है. गुरुवार को डीकेएस ने कुछ क्रिप्टिक पोस्ट शेयर की थी. जिसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि पार्टी ने जो वादा किया था उसे निभाना चाहिए. शायद डीके अपनी पोस्ट में यह कहना चाहते हैं कि किसी को जुबान देने की अहमियत होती है. डीकेएस के समर्थक दिल्ली में डेरा डाले हैं, और पार्टी में फूट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.
डीकेएस कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और पार्टी को 2023 में सत्ता में लाने वाले हीरो माने जाते हैं. वे दक्षिण भारत में कांग्रेस के क्राइसिस मैनेजर भी हैं. तेलंगाना से लेकर कर्नाटक तक. लेकिन हाईकमान की अनदेखी से वे पीड़ित महसूस कर रहे हैं. जाहिर है कि इस बार शायद ही शिवकुमार कांग्रेस हाईकमान की पेशेंस रखने की बात को स्वीकार करें. डीकेएस को पता है कि अगली बार राज्य में कांग्रेस की सरकार आने वाली नहीं है. अगर सरकार आ गई तो फिर उन्हें कुर्सी मिलने वाली नहीं है. क्योंकि फिर चुनाव जिताने का श्रेय मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ले जाएंगे. इसलिए डीकेएस के पास करो या मरो जैसी स्थिति है.
क्या सचिन पायलट की तरह हाशिये पर धकेल दिए जाएंगे डीकेएस?
राजस्थान कांग्रेस की कहानी कर्नाटक कांग्रेस में दोहराई जा सकती है. 2013 में कांग्रेस को राजस्थान में बुरी हार मिली थी. इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनावों में सचिन पायलट कांग्रेस की वापसी के नायक बनकर उभरे. पर कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत पर उसी तरह भरोसा जताया जैसे कर्नाटक में सिद्धारमैया पर भरोसा जताया गया. संभवतया सचिन पायलट को भी वही घुट्टी पिलाई गई कि ढाई साल बाद आपकी ताजोपशी कर दी जाएगी . पर ऐसा संभव नहीं हुआ. 2020 में सचिन पायलट बागी हो गए.
12 जुलाई 2020 को हुई जब पायलट समेत 19 विधायक ने सरकार के खिलाफ बगावत कर दी और मानेसर स्थित रिजॉर्ट में चले गए. इसके बाद तत्कालीन सरकार के अल्पमत में होने का दावा किया जाने लगा. बाद मे रणदीप सुरजेवाला जयपुर पहुंचे. उन्होंने सचिन पायलट पर बीजेपी के साथ मिलकर कर सरकार गिराने का साजिश रचने का आरोप लगाते हुए सचिन को राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष पद से ही नहीं हटाया बल्कि डिप्टी सीएम पद भी ले लिया गया. पायलट के दो खास मंत्रियों को भी पद से हटाया गया. जाहिर है तब से राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट हाशिये पर ही हैं.
इस घटनाक्रम के 2 साल बाद एक बार फिर बगावत हुई. पार्टी हाईकमान राजस्थान में गहलोत के उत्तराधिकारी की तलाश में था. जिसके बाद खड़गे और माकन को पर्यवेक्षक बनाकर जयपुर भेजा गया था. वहां सीएम आवास में विधायक दल की बैठक होनी थी. जिसमें एक लाइन का प्रस्ताव पास कराए जाने की तैयारी थी. गहलोत खेमे के विधायकों का अंदरखाने कहना था कि पर्यवेक्षक अजय माकन एजेंडे के साथ जयपुर आए हैं. वे सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं. बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पारित करवाना चाहते हैं. हालांकि, पर्यवेक्षकों ने दावे को खारिज किया था. कांग्रेस हाईकमान की कोशिश के बाद भी अशोक गहलोत ने सचिन पायलट की ताजपोशी नहीं होने दी. 2023 में चुनाव हुआ जाहिर है कांग्रेस सरकार से ही बाहर हो गई. सचिन पायलट का सपना सपना ही रह गया.
ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह अपने समर्थक विधायकों का रिजाइन करवाना
डीके शिवकुमार के पास एक ऑप्शन ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी है. मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व हुए. कांग्रेस ने 15 सालों के बाद सत्ता में वापसी की. ज्योतिरादित्य सिंधिया का मध्य प्रदेश का सीएम बनना करीब करीब तय था. लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने कमलनाथ की ताजपोशी कर दी. जाहिर है कि यह सिंधिया के लिए बहुत बड़ा झटका था.
ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस ने 2019 में गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से टिकट दिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से चुनाव हार गए.हार के बाद सिंधिया के राज्यसभा भेज जाने की अटकलें लगने लगीं लेकिन कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को प्राथिमकता दी. मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा फैसला लिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस फैसले का उनके समर्थक विधायकों ने भी भरपूर साथ दिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक सभी विधायकों ने कांग्रेस और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. जिस कारण राज्य में कमलनाथ की सरकार गिर गई. कांग्रेस 15 महीने तक ही सत्ता में रह पाई. कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर से मध्य प्रदेश के सीएम बने. बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेजा और वह पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री बने.
कर्नाटक की राजनीति में डीके शिवकुमार के लिए वहीं परिस्थितियां हैं जो सिंधिया के लिए थीं. क्योंकि डीके शिवकुमार को सीएम पद के लिए जितने विधायकों का समर्थन चाहिए वह जुटाना आसान नहीं है. क्योंकि कर्नाटक में बीजेपी की सीट कांग्रेस से बहुत ही कम है. शिवकुमार को तोड़फोड़ के लिए विधायकों की बड़ी संख्या चाहिए जो हासिल करना मुश्किल तो नहीं पर जटिल जरूर है.
कर्नाटक में 224 कुल विधायकों की संख्या है. यानि कि कम से कम 113 विधायकों का समर्थन चाहिए. एनडीए के पास 82 विधायक हैं. यानि कि कम से कम 31 विधायक और चाहिए. पर चूंकि कांग्रेस के पास 137 विधायक हैं इसलिए पार्टी तोड़ने के लिए कम से कम 2/3 विधायकों की जरूरत होगी. ये डीके लिए असंभव ही दिख रहा है.
इसलिए डीके के लिए आसान रास्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया वाला ही रहेगा. यानि कि अपने समर्थक विधायकों को इस्तीफा करवाना. इसके लिए भी कम से कम 25 विधायकों को रिजाइन देने के लिए तैयार करना होगा. ये असंभव नहीं है पर मुश्किल जरूर है. पर डीके की ताकत को जो जानते हैं उन्हें पता है कि डीके अगर अपने पर आ जाएं तो कुछ भी कर सकते हैं.
संयम श्रीवास्तव