चंपाई सोरेन का BJP में शामिल होना बड़ी भूल है, JMM को कितना नुकसान पहुंचाएंगे?

चंपाई सोरेन अगर समझते हैं कि बीजेपी उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बना देगी तो जाहिर है कि वो भूल कर रहे हैं. दूसरी बात यह देखने वाली होगी कि भारतीय जनता पार्टी उनको पार्टी में शामिल करके क्या हासिल करती है?

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चंपई सोरेन मिलने पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह से चंपई सोरेन मिलने पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह से

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 7:08 PM IST

भारतीय जनता पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों को जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त के बाद पार्टी एक भी चुनाव में हार बर्दाश्त की स्थिति में नहीं है. झारखंड में विधानसभा चुनावों की घोषणा जल्द ही होने की संभावना है. 2019 में बीजेपी का वोट प्रतिशत अधिक होने के बाद भी सीटों की संख्या कम हो गई थी. शायद यही कारण है कि झारखंड में बीजेपी लगातार आदिवासी नेताओं को अपने पक्ष में करती जा रही है. पहले सोरेन परिवार की बहू सीता सोरेन को पार्टी में लाया गया अब पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को लाने की तैयारी की जा रही है. पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी बीजेपी में आ चुकी हैं. कहा जा रहा है कि चंपाई सोरेन 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.

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पर सवाल यह उठता है कि भारतीय जनता पार्टी में आकर चंपाई सोरेन क्या हासिल कर लेंगे? अगर उन्हें यह लगता है कि बीजेपी उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बना देगी तो जाहिर है कि वो भूल कर रहे हैं. दूसरी बात यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी उनको पार्टी में शामिल करके क्या हासिल कर लेगी. अभी तक की जो राजनीतिक परिस्थितियां झारखंड में दिख रही हैं उससे तो यही लगता है कि दोनों ही पक्षों को लाभ नहीं होने वाला है. आइये देखते हैं कैसे?

1-सीता सोरेन और बाबूलाल मरांडी को क्या मिला

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन जेएमएम छोड़कर बीजेपी में शामिल तो हो रहे हैं, पर बीजेपी से क्या मिल सकता है यह भी उन्हें सोचना चाहिए. जेएमएम में तो कम से कम शिक्षा मंत्री का पद मिला हुआ ही था. इससे अधिक पाने की चाह अगर उन्हें बीजेपी में है तो यह उनका भ्रम है. उन्हें बीजेपी में बाबू लाल मरांडी, सीता सोरेन जैसे नेताओं से सीख लेनी चाहिए थी. हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भी जेएमएम छोड़कर बीजेपी में लोकसभा चुनावों के ऐन पहले आईं थीं. बीजेपी ने लोकसभा टिकट भी दिया पर वो चुनाव नहीं जीत सकीं.

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चंपाई सोरेन कोल्हन के टाइगर कहे जाते हैं. अगर कोल्हन में वे बीजेपी के काम नहीं आते हैं तो उनके साथ पार्टी में जो बर्ताव होगा उसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा. और अगर कोल्हन क्षेत्र की 17 सीटें यानि कि इस क्षेत्र की कुल सीटें भी चंपाई दिला देते हैं तो भी उन्हें मुख्यमंत्री तो बीजेपी बनाएगी नहीं. बहुत हुआ तो वो डिप्टी सीएम बन सकते हैं. इतना तो वो जेएमएम में भी सौदा करते तो मिल गया होता.दूसरी बात यह है कि जनता के मन में राजा के प्रति बड़ी हमदर्दी होती है. पहले शिबू सोरेन और फिर हेमंत सोरेन के सीएम बनने से झारखंड में सोरेन परिवार गांधी परिवार की तरह हो गया है. झारखंड में आम लोगों को अगर यह लग गया कि राज परिवार के साथ चंपाई ने गद्दारी की है तो संभव है कि कोल्हन का यह टाइगर बीजेपी के लिए फुस्स हो जाएगा.

2-अपनी पार्टी बनाते तो ज्यादा फायदे में रहते

झारखंड में चंपाई सोरेन अगर अपनी अलग पार्टी बनाते तो यह उनके लिए बहुत स्मार्ट मूव होता. हालांकि बाबू लाल मरांडी का उदाहरण सामने है. मरांडी ने अलग पार्टी बनाई और उन्हें अच्छी सीटें भी मिल गईं पर सत्ता नहीं हासिल हो सकी. बाद में उन्हें अपनी घर वापसी करनी पड़ी. अब वो अपने पुराने घर भारतीय जनता पार्टी में हैं. दरअसल जेएमएम की रणनीति बीजेपी विरोधी वोटों की रही है. पहले हेमंत सोरेन के जेल जाने से और चंपाई के बीजेपी में जाने से स्थानीय आदिवासियों को ये लग सकता है कि चंपाई ने हेमंत को धोखा दिया है. जबकि अगर चंपाई अलग पार्टी बनाते तो जनता उन्हें शहीद के तौर पर लेती. दूसरी बात यह भी होती कि त्रिशंकु विधानसभा बनने पर उनके पास मोल-भाव करने की पावर रहती. चंपाई कम सीट होने के बावजूद सीधे सीएम पद की डिमांड कर सकते थे. जिस तरह महाराष्ट्र में कम सीट होने के बावजूद उद्धव ठाकरे सीएम बनने में सफल हुए थे. मान लीजिए मुख्यमंत्री नहीं तो कम से कम डिप्टी सीएम का पद तो उन्हें मिलता ही मिलता. पर बीजेपी में रहते हुए अगर वो 10 सीटों से अधिक पार्टी को जितवाने में सक्षम भी होते हैं तो उसका बेनिफिट उठा पाएंगे इसमें संदेह ही है.

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3-कोल्हन में बिगाड़ सकते हैं झामुमो का खेल

चंपाई सोरेन सात बार विधायक रह चुके हैं और उन्हें कोल्हान का टाइगर भी कहा जाता है. उनकी वरिष्ठता को देखते हुए ही हेमंत सोरेन ने उन्हें गद्दी सौंपी थी. राज्य की राजनीतिक व्यवस्था में उनका महत्व इस बात में निहित है कि संथाल बहुल 17 विधानसभा सीटों में से 12 पर लोगों ने सत्तारूढ़ झामुमो को चुना है. दरअसल चंपाई संथाल जनजाति के हैं और वे इस जनजाति के लोगों को सख्त संदेश दे सकते हैं. सोरेन जब अपने वोटर्स के बीच कहेंगे कि उन्हें JMM में अपमानित किया गया है जाहिर है उनकी बातें सुनी जाएंगी. पर दुर्भाग्य से उनके पास वक्त बहुत कम है. जब तक अपने वो समर्थकों को समझाएंगे तब तक चुनाव खत्म हो चुके होंगे. 

दरअसल, कोल्हान डिवीजन में 14 विधानसभा क्षेत्र हैं. 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने इस डिवीजन में भाजपा को करारी शिकस्त दी थी. भगवा पार्टी कोल्हान में अपना खाता खोलने में विफल रही और तत्कालीन सीएम रघुबर दास को भाजपा के बागी सरयू राय के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. आदिवासी बहुल इलाके कोल्हान की वजह से ही JMM ने 2019 के विधानसभा चुनावों में अपनी जीत पक्की की थी. मोदी लहर और राम मंदिर लहर के बावजूद, हेमंत सोरेन की JMM ने 14 विधानसभा क्षेत्रों में से 11 पर जीत हासिल की और दो पर कांग्रेस ने कब्जा किया था.

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4-राज्य में अन्य पार्टियों की क्या है ताकत

झारखंड विधानसभा में कुल 82 सीट हैं. 2019 के चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने सबसे अधिक वोट शेयर (33.37 परसेंट) हासिल करके भी सत्ता से वंचित रह गई. क्योंकि जेएमएम ने कम वोट शेयर (18.72 प्रतिशत) पाकर भी बीजेपी से अधिक सीटें हासिल कर ली. नतीजा यह हुआ कि जेएमएम-कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन ने राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बना लिया. 2014 के चुनाव के मुकाबले 2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने वोट शेयर के मामले में तो बढ़िया प्रदर्शन करते हुए अपने वोट करीब तीन प्रतिशत बढ़ा लिया. इस तरह बीजेपी ने 25, जेएमएम को 30, कांग्रेस को 16, आरजेडी -1, जेवीएम-3 ,आजसू ने 2 सीट हासिल करने में सफलता पाई.

बीजेपी के लिए कोल्हन क्षेत्र में ही मुश्किल है. जहां प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ही चुनाव हार गए. कोल्हन में कुल  17 सीटें हैं. कहा जा रहा है कि अगर हर सीट पर चंपाई सोरेन 4 से 5 हजार वोटों को भी प्रभावित करने में सफल हुए तो बीजेपी का काम बन जाएगा. क्योंकि बीजेपी को 2019 के विधानसभा चुनाव हों या 2024 के लोकसभा चुनाव, दोनों ही बार पार्टी को स्थानीय लोगों ने खारिज नहीं किया है. शायद यही कारण है कि स्थानीय बीजेपी नेताओं के विरोध के बावजूद भी बीजेपी चंपाई सोरेन को पार्टी में शामिल करने को उत्सुक है.

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