बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर कथित उत्पीड़न का मुद्दा 2024 के बाद 2025 में भी भारत की राजनीति में एक संवेदनशील विषय बना हुआ है. शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों की रिपोर्ट्स बढ़ी हैं, और भारत में यह मुद्दा हिंदुत्व की राजनीति से जुड़कर चर्चा में आया है. अब एक बार फिर बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न चर्चा में है. जहां भाजपा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती ने भी इस मुद्दे पर बयान दिए, जो अप्रत्याशित ही लगते हैं.
बुधवार को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी को ललकारते हुए कहा कि बांग्लादेश में एक हिंदू की लिंचिंग हुई पर विपक्ष कुछ बोल नहीं रहा है. गाजा में मुसलमानों के साथ यही अत्याचार होता है तो विपक्ष उस पर मुखर हो जाता है. योगी ने कहा कि याद रखिए जो लोग अभी बांग्लादेश के अत्याचार पर नहीं बोल रहे हैं कल को जब यूपी सरकार रोहिंग्या और बांग्लादेशियों पर एक्शन लेगी तो इन लोगों को बोलने का अधिकार नहीं होगा. योगी के इस बयान के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की ओर से तो हिंदुओं के उत्पीड़न पर कोई बयान नहीं आया पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने जरूर एक्स पर एक पोस्ट करके अपनी चिंता जताई है.
मायावती ने पिछले साल भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों की कड़ी निंदा की थी. सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने इस उत्पीड़न को केवल दलितों तक ही सीमित नहीं रखा है बल्कि समस्त हिंदू समाज की बात कर रही हैं.
बांग्लादेश मुद्दे पर विपक्ष की तटस्थता, क्या एक रणनीति है
भारत का विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी, बांग्लादेश में हिंदुओं पर उत्पीड़न के मुद्दे पर ज्यादातर तटस्थ दिख रहा है. बीजेपी का इसका मुख्य कारण मुस्लिम वोट बैंक को बता रही है.
उदाहरण के लिए, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर संसद में कोई बड़ा बयान नहीं दिया, बल्कि संभल हिंसा जैसे घरेलू मुद्दों पर फोकस किया, जहां मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया.
SP नेता अखिलेश यादव ने भी बांग्लादेश मुद्दे को भाजपा की डायवर्सन टैक्टिस बताया और इसे भारत-बांग्लादेश संबंधों का डिप्लोमैटिक मामला करार दिया था.
विपक्षी दलों का मानना है कि इस मुद्दे पर बोलने से हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा, जो भाजपा को फायदा पहुंचाएगा. बीजेपी समर्थक कहते हैं कि गाजा जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष ने मुस्लिम समुदाय के पक्ष में आवाज उठाई है, इसलिए बांग्लादेश पर चुप्पी न साधकर कम से कम दिखावे के लिए ही बैलेंसिंग एक्ट करना चाहिए.
यह तटस्थता उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में और भी स्पष्ट है, जहां करीब 19% मुस्लिम वोटर हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में SP-कांग्रेस गठबंधन ने मुस्लिम-दलित-ओबीसी वोटों पर फोकस किया, और बांग्लादेश मुद्दा उठाने से मुस्लिम वोटर्स में असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है. कुल मिलाकर, विपक्ष इस मुद्दे को भाजपा का पोलराइजेशन टूल मानकर उससे दूरी बनाता रहा है.
मायावती ने क्यों उठाया यह मुद्दा
मायावती ने बांग्लादेश मुद्दे पर कई बयान दिए हैं. वैसे बांग्लादेश में पीडि़त हिंदुओं को लेकर आवाज उठाना सहज मानवीयता भी है. लेकिन 25 दिंसबर को एक्स पर मायावती का लिखा हुआ ऐसा लगता है जैसे उन्होंने बीजेपी की बात दोहरा दी हो. मायावती यूपी की राजनीति की चतुर खिलाड़ी रही हैं और एक बार फिर से पूरी तैयारी के साथ राज्य में छा जाने के लिए प्रयासरत हैं. जाहिर है कि इस तरह का बयान उन्होंने कुछ सोच-समझकर ही दिया होगा.
उन्होंने पिछले साल कहा था कि कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों, खासकर दलितों, पर अत्याचार हो रहे हैं, और कांग्रेस-SP जैसे विपक्षी दल इस पर चुप हैं क्योंकि वे मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि सिर्फ कांग्रेस और सपा के नेताओं को सिर्फ संभल की फिक्र रहती है.
उन्होंने कांग्रेस को विभाजन के दौरान गलती का जिम्मेदार ठहराया, जिससे दलित बांग्लादेश में फंस गए और अब पीड़ित हैं. मायावती ने केंद्र से दलित हिंदुओं को भारत वापस लाने और सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की.
मायावती के लिए यह स्टैंड नुकसानदायक होने की बजाय फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन कुछ रिस्क भी हैं. दलितों का बड़ा हिस्सा हिंदू है, और बांग्लादेश मुद्दा उन्हें भावनात्मक रूप से अपील करता है. इससे BSP का आधार मजबूत हो सकता है, खासकर पूर्वांचल में जहां बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा पुराना है. SP-कांग्रेस पर हमला करके मायावती BSP को असली दलित पार्टी के रूप में एक बार फिर से स्थापति कर रही हैं. मुस्लिम वोट BSP से पहले ही दूर हो चुके हैं (2024 में मुस्लिम सपोर्ट SP की तरफ शिफ्ट हुआ), इसलिए मायावती को नुकसान कम फायदा अधिक दिख रहा है.
संयम श्रीवास्तव