तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक (AIADMK) से भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन समाप्त होने के बाद से साऊथ की राजनीति पर चर्चा बढ़ गईं है. तमिलनाडु में बीजेपी का यह आत्मविश्वास यूं ही नहीं है कि अब दक्षिण के इस राज्य में वह छोटे भाई की भूमिका में राजनीति नहीं करना चाहती है. तमिलनाडु विधानसभा में अभी पार्टी के केवल 4 विधायक हैं पर हौसलों का उड़ान 140 वाला दिख रहा है.
तमिलनाडु की राजनीति अब तक अन्नादुरई के आसपास ही होती रही है. कांग्रेस के कमजोर होने के बाद द्रविड़ पार्टियों के इतर यहां राजनीति मुश्किल समझा जाता रहा है.पर अब लगता है कि बीजेपी इस परंपरा को तोड़ रही है. बीजेपी के इस कॉन्फिडेंस के क्या कारण हैं? आइए समझने की कोशिश करते हैं.
1- जातिगत समीकरण में अन्नामलाई फिट बैठते हैं
तमिलनाडु के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई और एआईएडीएमके नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी दोनों एक ही जाति के हैं. ये दोनों गौंडर जाति से हैं जो पिछड़ों में राजनीतिक रूप से मजबूत हैं जैसे उत्तर भारत में यादव-कुर्मी आदि. तमिलनाडु में बीजेपी के दो विधायक इसी समुदाय से आते हैं. अन्नामलाई को सीएम कैंडिडेट बनाकर बीजेपी उत्तर भारत में जिस तरह ओबीसी पार्टी की पहचान बनाई है वैसे ही तमिलनाडु में करना चाहती है. जयललिता मंत्रिमंडल में पूर्व मंत्री नैनार नागेंद्रन को विधायक दल का नेता बनाकर भाजपा ने शक्तिशाली थेवर समुदाय को भी लुभाया है. सात उपजातियों का एक समूह वेल्लार है जो अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर निकलकर ओबीसी बनना चाहता है. उनका कहना है कि वो किसान हैं और उन्हें ओबीसी आरक्षण चाहिए न कि अनुसूचित जाति का. बीजेपी को इनका फुल सपोर्ट है.बीजेपी की रणनीति है कि अगर उनके साथ पिछड़े, ब्राह्णण और नाडार आ जाएं तो काम बन सकता है. ब्राह्रणों का वोट अभी फिलहाल एआईएडीएम को मिलता रहा है. उम्मीद की जा रही है कि जिस तरह अन्नामलाई ने तमिलनाडु में बीजेपी के पक्ष में बज क्रिएट किया है उसका सीधा लाभ इन जातियों के सपोर्ट के रूप में मिलेगा.
2- बीजेपी की रणनीतिक चाल
अब तक जिस पार्टी का साथ केंद्र सरकार को हर मौके पर मिलता रहा है बिना किसी ठोस वजह से उस पार्टी से अलग होना इतना आसान नहीं रहा होगा. राज्य सभा मे कई कानूनों को पास कराना सरकार के लिए टोढ़ी खीर साबित होता रहा है. ऐसे मौके पर एक समर्थक पार्टी को खुद से अलग करने के पीछे कुछ तो राज होंगे. क्योंकि आमतौर पर जब दो पार्टियां अलग होती हैं तो दूसरी पार्टी के बड़े नेता से मिलने नहीं जाता कोई भी दल. पर यहां बिल्कुल अलग तरीके से हुआ है. अन्नाद्रमुक के नेता बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात करते हैं उसके बाद दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट जाता है. यही कारण इसे संदेह की नजर से देखा जा रहा है. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि जिस तरह ओवैसी की पार्टी से उत्तर भारत के चुनावों में बीजेपी प्रत्याशियों को लाभ मिलता रहा है उसी तरह तमिलनाडु में भी हो सकता है. अगर तमिलनाडु के चुनाव द्रविड़ बनाम सनातन हो जाए तो एआईडीएमके और डीएमके कई जगहों पर लड़ेंगे जिसमें बीजेपी के बाजी मारने के चांस बढ़ जाएंगे. हालांकि राजनीति मे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता. बीजेपी का यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है.राजनीतिक विश्लेषकों के शंका का कारण एनडीए गठबंधन से अलग होने की घोषणा बेजीपी और एआईएडीएमके और बीजेपी के नेताओं की मीटिंग के बाद होना है.
3-अन्नादुरई मामले पर माफी न मांगने का मतलब हिंदुत्व एजेंडा जारी रखना है
हाल ही में अन्नामलाई पर तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री अन्नादुरई के बारे में कुछ ऐसा कहा जिसके प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां उनसे माफी मांगने की डिमांड करने लगीं. पर अन्ना ने माफी मांगने से इनकार कर दिया.अन्नामलाई कहते हैं अन्नादुरई ने हिंदू धर्म का अपमान किया था. उनका दावा यही तक नहीं है. वो कहते हैं कि हिंदू धर्म का अपमान करने पर अन्ना दुरई को मदुरै में छिपना पड़ा था और माफी मांगने के बाद ही वो बाहर आ सके थे.यह ठीक वैसा ही है जैसे डीएमके नेता उदयनिधि ने सनातन को खत्म करने तक चैन से न बैठने की बात कही थी. मतलब साफ है कि बीजेपी को हिंदुत्व के एजेंडे पर अडिग रहना है.
4-मिस्टर क्लीन की छवि फायदा देगी
राजनीति में धनबल के विरोधी अन्नामलाई की छवि बेदाग है. उन्हें कर्नाटक कैडर में आईपीएस की नौकरी के दौरान उनकी इमानदारी के चलते ही उन्हें सिंघम नाम से बुलाया जाता था. राजनीति में आने के बाद उन्होंने 'डीएमके फाइल्स' नाम से द्रमुक सरकार पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए. तमिलनाडु के चुनावों मे पैसे के बल पर किस तरह की राजनीति होती है उसका जिक्र वे जनसभाओं में जरूर करते हैं.वो कहते हैं कि इस तरह की राजनीति से मैं तंग आ चुका हूं. अपने विधानसभा चुनाव लड़ने के अनुभवों का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी नौ साल की पूरी सेविंग्स गंवा दी और कर्ज में डूब गए. अन्नामलाई ने 'स्टेपिंग बियॉन्ड खाकी' नाम की एक किताब भी लिखी है.अन्नामलाई अपने भाषणों और अपने आधुनिक विचारों के चलते सोशल मीडिया पर जबरदस्त लोकप्रिय हैं. उन्होंने उन जिलों में विस्तृत जमीनी कार्य किया है जहां बीजेपी कमजोर है.
5-वंशवाद पर हमला बोलते रहेंगे अन्नामलाई
तमिलनाडु में 2 ही पार्टियों का वर्चस्व हाल फिलहाल में रहा है. द्रमुक की हालत कुछ वैसी ही है जैसे कुछ समय पहले समाजवादी पार्टी का यूपी में होती थी . यूपी में उस समय एक ही परिवार के लोग एमपी, एमलए से लेकर संगठन में तक में होते थे. अब यही हाल करुणानिधि परिवार का है. इस परिवार के लोग तमिलनाडु सरकार से लेकर संगठन तक में है. अब द्रमुक करुणानिधि परिवार की तीसरी पीढ़ी को तैयार कर रही है. उदयनिधि को तमिलनाडु की राजनीति के लिए तैयार किया जा रहा है. बीजेपी वंशवाद के खिलाफ पूरे देश में अभियान चलाती रही है. एआईडीएमके कमजोर पड़ चुकी है. द्रमुक के परिवारवाद को सीधे चुनौती देने के लिए अन्नामलाई से बेहतर कोई हो नहीं सकता. अन्नामलाई सेल्फ मेड शख्स हैं. उन्होंने आईपीएस क्लालिफाई करके पहले नौकरी की फिर राजनीति में आए हैं. बीजेपी जनता के बीच जाकर कहेगी कि आप उदयनिधि और अन्नामलाई में किसे चुनना चाहेंगे?
संयम श्रीवास्तव