मध्य प्रदेश सरकार के प्रस्तावित लैंड पूलिंग एक्ट 2025 के खिलाफ उज्जैन में किसान आक्रोशित हैं. सिंहस्थ मेला क्षेत्र की 4 हजार हेक्टेयर जमीन के स्थायी अधिग्रहण के डर से किसान सड़कों पर हैं. आंदोलन को हवा दे रही जनहित पार्टी का दावा है कि यह कानून सिंहस्थ मेला क्षेत्र को सिकोड़कर नाशिक और हरिद्वार जैसे औपचारिक मेले में बदल देगा, जिससे किसानों की आजीविका और धार्मिक परंपरा खतरे में पड़ जाएगी. जानिए क्या है पूरा विवाद...
विधानसभा में पारित मध्य प्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश (संशोधन) अधिनियम-2025 लैंड पूलिंग स्कीम को लागू करता है. इसके तहत सरकार नगरीय निकायों, उद्योगों या शासकीय परियोजनाओं के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहण करेगी, वो भी बिना मुआवजा दिए. बदले में, अधिग्रहीत जमीन का 50% हिस्सा विकसित करके किसानों को लौटाया जाएगा.
सरकार का दावा है कि यह नीति आर्थिक समृद्धि लाएगी और भू-स्वामियों को लाभ पहुंचाएगी. हालांकि, किसानों का कहना है कि यह उनकी सहमति के बिना जमीन छीनने की साजिश है, जिसमें मुआवजा नहीं मिलेगा और विकसित जमीन कब और कहां मिलेगी, यह अस्पष्ट है.
उज्जैन में यह कानून सिंहस्थ मेला क्षेत्र के 17 गांवों की 4 हजार हेक्टेयर (10 हजार एकड़) जमीन को प्रभावित करेगा, जो हर 12 साल में साधु-संतों के लिए अस्थायी डेरे बनाने के लिए ली जाती है. किसानों को लगता है कि स्थायी निर्माण पर प्रतिबंध के बावजूद इस एक्ट से जमीनें निजी कंपनियों और भू-माफियाओं के हाथों में जाने का खतरा है, जिससे मेला क्षेत्र सिकुड़ सकता है.
विधानसभा में भी उठा मुद्दा
लैंड पूलिंग एक्ट का विरोध विधानसभा में भी गूंजा. उज्जैन की आलोट सीट से भाजपा विधायक चिंतामणि मालवीय ने 18 मार्च को बजट सत्र में इस बिल का विरोध किया. उन्होंने कहा, "सिंहस्थ के लिए पहले किसानों की जमीन 3-6 महीने के लिए ली जाती थी, लेकिन अब स्थायी अधिग्रहण का नोटिस दिया गया है." इसके बाद भाजपा ने मालवीय को कारण बताओ नोटिस जारी किया. कांग्रेस विधायक महेश परमार ने भी बिल का विरोध करते हुए कहा, "किसानों को जबरन जमीन देने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए."
विपक्ष ने भी सरकार को घेरा
कांग्रेस ने किसानों के आंदोलन को समर्थन दिया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पाटवारी ने कहा, "लैंड पूलिंग एक्ट किसानों से जमीन छीनने की सरकारी साजिश है."
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी सरकार से किसानों को उचित मुआवजा देने की मांग की. कांग्रेस कार्यालय में 27 मार्च को किसानों और पार्टी नेताओं की बैठक हुई, जिसमें स्थायी अधिग्रहण को रोकने का संकल्प लिया गया.
सरकार का पक्ष
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा, ''मैं और मेरी सरकार किसानों के साथ हैं. मैं खुद एक किसान का बेटा हूं, इसलिए हम हाल में राज्य का विकास और किसानों की जिंदगी बेहतर से बेहतर करना चाहेंगे.''
सरकार की ओर से दावा किया कि लैंड पूलिंग स्कीम गुजरात मॉडल से प्रेरित है और किसानों व उद्योगों के लिए लाभकारी होगी. सरकार का कहना है कि विकसित जमीन का व्यावसायिक उपयोग भू-स्वामियों को आर्थिक लाभ देगा. हालांकि, उज्जैन के किसानों का कहना है कि यह नीति भू-माफियाओं को फायदा पहुंचाएगी.
किसानों की चिंता
उज्जैन जिले के किसान आशुतोष उपाध्याय ने कहा, "सरकार दो हजार करोड़ रुपए की आध्यात्मिक सिटी बनाने की योजना बना रही है, जिसमें कंक्रीट के रोड और स्थायी निर्माण होंगे. यह किसानों की खेती को नष्ट करेगा. सरकार को किसानों की मर्जी के बिना ऐसा नहीं करना चाहिए." किसान संघर्ष समिति के प्रवक्ता ने इसे 'किसान विरोधी, सनातन विरोधी और सिंहस्थ विरोधी' कदम बताया.
'जमीन स्थायी रूप से देने को तैयार नहीं'
एक अन्य किसान ने बताया, मंगलनाथपुर में हमारी जमीन है. हम सिंहस्थ मेला के लिए हर बार जमीन देते हैं, लेकिन इस नए लैंड पूलिंग सिस्टम के खिलाफ हैं. हम जमीन स्थायी रूप से देने को तैयार नहीं हैं. हर बार की तरह सिंहस्थ के लिए जमीन ले सकते हैं, लेकिन अगर आप किसान की जमीन लेते हैं और उस पर होटल या अन्य निर्माण करते हैं, तो किसान क्या करेगा? आप सड़क बनाएंगे, नवीनीकरण करेंगे, तो वह स्थायी हो जाएगा. अगर नवीनीकरण हो गया, तो किसान खेती कहां करेगा? खेती नहीं करेगा, तो वह अपने बच्चों और परिवार का पालन-पोषण कैसे करेगा? जमीन के अलावा हमारे पास व्यापार या रोजगार का कोई साधन नहीं है। अगर जमीन भी छिन जाएगी, तो हम बेरोजगार हो जाएंगे.
जनहित पार्टी ने किया विरोध
जनहित पार्टी का दावा है कि इस एक्ट के लागू होते ही जमीन अधिग्रहण करने से पहले किसानों की सहमति नहीं ली जाएगी. कोई मुआवजा नहीं मिलेगा. विकसित जमीन का आधा हिस्सा कब और कहां मिलेगा, यह स्पष्ट नहीं. परियोजना पूरी होने तक किसान आर्थिक संकट झेलेंगे. 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ मेला लगेगा, देश के चार प्रमुख कुंभ मेलों में से एक है.
'उज्जैन में नाशिक और हरिद्वार जैसा मेला रह जाएगा'
जनहित पार्टी का दावा है कि लैंड पूलिंग से मेला क्षेत्र सिकुड़कर नाशिक और हरिद्वार जैसे औपचारिक मेले जैसा रह जाएगा. 4000 हेक्टेयर जमीन पर स्थायी निर्माण से साधु-संतों के डेरे और धार्मिक आयोजनों के लिए जगह कम हो जाएगी, जिससे मेला की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता खतरे में पड़ सकती है.
10 दिन चला आंदोलन
प्रस्तावित एमपी लैंड पूलिंग एक्ट 2025 के विरोध में जनहित पार्टी ने 17 अप्रैल को इंदौर कलेक्ट्रेट पर धरना दिया. इसके बाद उज्जैन के अलग-अलग गांवों में जाकर एक्ट के खिलाफ पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं ने जागरूकता अभियान चलाया. 21 अप्रैल को पुलिस ने पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया.
22 अप्रैल को किसान चार धाम मंदिर पर एकत्र हुए और भारी पुलिस बल की मौजूदगी के बावजूद बाबा महाकाल तक पहुंचकर ज्ञापन सौंपा. उसी दिन, प्रदेश भर से जुटे कार्यकर्ताओं ने उज्जैन में प्रदर्शन शुरू किया. दबाव में पुलिस ने बिना शर्त कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया.
27 अप्रैल को एक बार फिर जनहित पार्टी के नेता अभय जैन, मनीष काले, अरविंद भदौरिया को हिरासत में लिया गया था. हालांकि, बाद में फिर उन्हें छोड़ दिया गया. किसान संघर्ष समिति और जनहित पार्टी ने चेतावनी दी है कि अगर एक्ट रद्द नहीं हुआ, तो उज्जैन में बड़े पैमाने पर आंदोलन होगा.
नीरज चौधरी