MP News: पीथमपुर में एक प्लांट में भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े जहरीले कचरे को जलाने के 5 महीने बाद भी इस प्रोसेस में बनी करीब 900 टन राख अभी भी बिना डिस्पोजल के पड़ी है.
सरकार के अधिकारियों ने बताया कि कचरे को एक साइंटिफिक प्रोसेस का इस्तेमाल करके एक इंसिनरेटर में जलाया गया, जिसमें चूना और दूसरी चीजें मिलाई गईं, जिससे लगभग 900 टन राख बनी.
राज्य सरकार ने बनी राख को धार जिले में लगभग 20 हजार की आबादी वाले गांव तारपुरा के पास पीथमपुर प्लांट के कैंपस में बन रहे एक लैंडफिल सेल में दबाने का प्लान बनाया था.
लेकिन करीब दो महीने पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को राख को ठिकाने लगाने के लिए कोई दूसरी जगह ढूंढने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इंसानी बस्तियों के पास राख को ठिकाने लगाना मंजूर नहीं है. राख को अभी प्लांट के लीक-प्रूफ स्टोरेज शेड में सुरक्षित रखा गया है.
2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की पेस्टिसाइड फैक्ट्री से बहुत जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक होने से कम से कम 5 हजार 479 लोग मारे गए थे और हजारों लोग घायल हो गए थे. यह दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक बन गई.
इस साल 8 अक्टूबर को हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने पीथमपुर प्लांट की जगह पर बन रहे लैंडफिल सेल में जहरीले कचरे की राख को दबाने के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह जगह इंसानी बस्तियों के बहुत करीब है.
हाई कोर्ट ने कहा, "जहरीली राख को इंसानों की बस्तियों के पास रखने की मौजूदा जगह इस कोर्ट को मंजूर नहीं है." अपने ऑर्डर में कोर्ट ने एक इंटरवेनर की फाइल की गई अंतरिम एप्लीकेशन का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि टेस्ट में जहरीली राख में मरकरी का लेवल तय सीमा से ज्यादा पाया गया था.
हाईकोर्ट ने कहा कि यह एप्लीकेशन इंटरवेनर ने फाइल की है, जिसमें बताया गया है कि जहरीली राख पर किए गए टेस्ट में अभी भी मरकरी की मौजूदगी का पता चला है, जो मध्य प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 12 अगस्त 2025 की रिपोर्ट में बताई गई तय लिमिट से ज्यादा है.
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को राख के निपटान के लिए दूसरी जगहों का जिक्र करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने ग्लोबल टेंडर निकालने की संभावना पर भी रिपोर्ट मांगी, ताकि सर्वश्रेष्ठ टेक्निकल एक्सपर्टीज वाली कंपनी यह काम करे. सरकारी अधिकारियों ने डिस्पोजल प्लान पर कमेंट करने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है.
हालांकि, नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि यूनियन कार्बाइड के कचरे के डिस्पोजल के लिए एक प्राइवेट कंपनी को दिए गए कॉन्ट्रैक्ट में राख को पीथमपुर प्लांट परिसर के अंदर एक खास लैंडफिल सेल में दबाना शामिल है और इस कंस्ट्रक्शन के दौरान सभी सेफ्टी स्टैंडर्ड का पालन किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस लैंडफिल सेल का कंस्ट्रक्शन अपने आखिरी स्टेज में है.
इंदौर से करीब 30 km दूर पीथमपुर राज्य का एक बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया है. इस इंडस्ट्रियल एरिया में करीब 1250 यूनिट हैं, जिनमें देश भर के अलग-अलग राज्यों से आए प्रवासी मजदूरों समेत हजारों मजदूर काम करते हैं.
पीथमपुर में सोशल एक्टिविस्ट राख को इंसानों की बस्ती के पास बने वेस्ट डिस्पोज़ल यूनिट में लैंडफिल सेल में दबाने के पक्ष में नहीं हैं.
स्थानीय संगठन 'पीथमपुर बचाओ कमेटी' के हेड हेमंत कुमार हिरोले ने कहा कि जहरीली राख को किसी सुनसान जगह पर डिस्पोज़ किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी दुर्घटना की स्थिति में लैंडफिल सेल में खराबी से इंसानों और पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है.
हिरोले की पिटीशन उन पांच पिटीशन में से एक है, जिन पर HC यूनियन कार्बाइड वेस्ट के बारे में एक साथ सुनवाई कर रहा है. उन्होंने कहा कि अभी हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि राज्य सरकार ने जहरीली राख के डिस्पोजल के लिए कोई दूसरी जगह चुनी है या नहीं. राज्य सरकार को जल्द ही स्टेटस साफ करना चाहिए.
पिछले चार दशकों में भारत और विदेश में प्लांट्स में ज़हरीले कचरे के डिस्पोजल के लिए कई प्लान बनाए गए और विरोध के बीच उन्हें कैंसिल कर दिया गया. हालांकि, इस साल पीथमपुर में एक प्राइवेट कंपनी के वेस्ट डिस्पोजल प्लांट में इसे आखिरकार जलाकर राख कर दिया गया.
स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों ने दावा किया कि फैक्ट्री के कचरे को जलाने के दौरान पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ-साथ मरकरी, कैडमियम और दूसरे हेवी मेटल्स का एमिशन स्टैंडर्ड लिमिट के अंदर पाया गया.
उन्होंने यह भी कहा कि पीथमपुर प्लांट में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के कचरे को जलाने से प्लांट के कर्मचारियों या आस-पास के इलाकों में रहने वालों की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा.
कचरा इस साल 2 जनवरी को भोपाल से करीब 250 km दूर पीथमपुर प्लांट ले जाया गया था. इसके कारण पीथमपुर में कई विरोध प्रदर्शन हुए. प्रदर्शनकारियों ने इस कचरे के निपटान से इंसानों और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में चिंता जताई, जिसे राज्य सरकार ने साफ तौर पर खारिज कर दिया.
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