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स्मार्टफोन पर चिपके रहने वाले रहें अलर्ट, नोमोफोबिया के होते हैं ये 5 खतरे

सुमित कुमार/aajtak.in
  • 14 जून 2019,
  • अपडेटेड 9:48 AM IST
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डिजिटलाइजेशन के कारण दुनिया तरक्की तो कर रही है, लेकिन स्मार्ट गैजेट की वजह से लोग नोमोफोबिया जैसी बीमारी का भी शिकार हो रहे हैं. लगभग तीन वयस्क उपभोक्ता लगातार एक साथ एक से ज्यादा उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं. मौजूदा दौर में इंसान अपने 90 प्रतिशत काम गैजेट की मदद से ही कर रहे है, जिस वजह से वो नोमोफोबिया का शिकार हो रहा है. नोमोफोबिया से होने वाली दिक्कतों को जानने के बाद निश्चित ही आपका लगाव स्मार्ट गैजेट से कम हो जाएगा.

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- भारत में इस तरह स्क्रीन स्विच करना आम बात है. मोबाइल फोन का लंबे समय तक उपयोग गर्दन में दर्द, आंखों में सूखेपन, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम और अनिद्रा का कारण बन सकता है.

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- 20 से 30 वर्ष की आयु के लगभग 60 प्रतिशत युवाओं को अपना मोबाइल फोन खोने की आशंका रहती है, जिसे नोमोफोबिया कहा जाता है. इस अवस्था इंसान के अंदर बेचैनी काफी ज्यादा बढ़ जाती है.

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- पूरी दुनिया नोमोफोबिया का सबसे ज्यादा शिकार पुरुष ही हैं. नोमोफोबिया के चपेट में 58 फीसदी पुरुष और 47 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.

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- हम प्रतिदिन विभिन्न उपकरणों पर जितने घंटे बिताते हैं, वह हमें गर्दन, कंधे, पीठ, कोहनी, कलाई और अंगूठे के लंबे और पुराने दर्द सहित कई समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाता है.

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- मोबाइल फोन स्विच ऑफ नोमोफोबिया की वजह से आप मानसिक अवसाद के शिकार होते हैं. इससे इंसान की याद्दाश्त पर भी काफी असर पड़ता है.

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ऐसे टलेगा नोमोफोबिया का खतरा-
मतलब सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग न करें. कोशिश करें कि हर तीन महीने में 7 दिन के लिए फेसबुक प्रयोग न करें. सप्ताह में एक बार एक पूरे दिन सोशल मीडिया से बचें. एक दिन में तीन घंटे से अधिक कंप्यूटर का उपयोग न करें. अपने मोबाइल टॉक टाइम को एक दिन में दो घंटे से अधिक तक सीमित रखें. मोबाइल की बैटरी को एक दिन में एक से अधिक बार चार्ज न करें.

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