Vitamin D: रोज खा रहे सप्लीमेंट, फिर भी शरीर से गायब विटामिन D, डॉक्टरों ने बताया कहां हो रही गलती

Vitamin D: सप्लीमेंट लेने के बावजूद भी विटामिन डी का लेवल कम क्यों रहता है? कई लोग सही डोज, टाइमिंग और अब्सॉर्प्शन ना समझ पाने के कारण कमी से जूझते रहते हैं. ऐसे जानें सही लेवल, लक्षण और कैसे बढ़ाएं विटामिन डी.

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विटामिन डी हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. (Photo: ITG) विटामिन डी हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. (Photo: ITG)

आजतक लाइफस्टाइल डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST

Vitamin D: विटामिन डी आपकी बॉडी के लिए बेहद जरूरी है. ये सिर्फ हड्डियों को मजबूत बनाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाने, मूड को बेहतर रखने, मसल्स की ताकत बढ़ाने और पूरे दिन एनर्जी बनाए रखने में भी मदद करता है. यही वजह है कि कई लोग इसे टैबलेट या सप्लीमेंट के रूप में रोजाना लेते हैं.

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लेकिन अक्सर देखा गया है कि सप्लीमेंट लेने के बावजूद भी रिपोर्ट्स में विटामिन डी का लेवल कम ही दिखाई देता है, जो हैरानी की बात है. इसका मतलब है कि सिर्फ टैबलेट्स खाने से हमेशा शरीर को पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिल पाता. तो सवाल ये उठता है कि आखिर टैबलेट्स और सप्लीमेंट्स लेने के बाद भी आपके शरीर में विटामिन डी की कमी क्यों रहती है? चलिए डॉक्टर से जानें.

सप्लीमेंट लेने के बाद भी क्यों रहती है कमी?
मैक्स हॉस्पिटल नोएडा की इंटरनल मेडिसिन की सीनियर डॉक्टर, डॉ. शोवाना वैष्णवी बताती हैं कि अक्सर लोग विटामिन डी की गलत डोज लेते हैं या अनियमित तरीके से सप्लीमेंट लेते हैं. विटामिन डी को शरीर में ठीक से अब्सॉर्ब होने के लिए फैट की जरूरत होती है. अगर बॉडी में ज्यादा फैट है, तो ये विटामिन फैट में ही फंस जाता है और इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं रहता.इसके अलावा कुछ लोगों के इंटेस्टाइन में प्रॉब्लम होती है, या कुछ दवाइयां जैसे एंटीकॉन्वल्सेंट और कॉर्टिकोस्टेरॉयड विटामिन डी के मेटाबोलिज्म में रुकावट डाल सकती हैं.

यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद के गैस्ट्रो और लिवर रोग एक्सपर्ट, डॉ. ध्रुव कांत मिश्रा के अनुसार लिवर या किडनी की समस्याएं, गलत सप्लीमेंट क्वालिटी या सही टाइमिंग ना रखना भी विटामिन डी को असरदार होने से रोक सकता है. गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के सीनियर एक्सपर्ट, डॉ. अमोघ दुधवेवाला कहते हैं कि अक्सर लोग केवल 1000 IU रोजाना लेते हैं, जो कई लोगों के लिए पर्याप्त नहीं होता. हालांकि, विटामिन डी सप्लीमेंट अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार लें. विटामिन डी फैट-सॉल्युबल है इसलिए खाली पेट लेने से भी इसका असर कम हो जाता है.

क्या हैं विटामिन डी की कमी के लक्षण?  
अगर सप्लीमेंट लेने के बावजूद आप हमेशा थके हुए रहते हैं, मसल्स या हड्डियों में दर्द है, स्टैमिना कम है, बाल झड़ते हैं, बार-बार इंफेक्शन होता है, मूड खराब रहता है, नींद नहीं आती, पीठ में लगातार दर्द रहता है या ऑपरेशन के बाद जल्दी रिकवरी नहीं होती, तो इसका मतलब है कि विटामिन डी अभी भी कम है. महिलाओं में इसके कारण पीरियड्स भी इर्रेगुलर हो सकते हैं.

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डॉ. शोवाना के अनुसार, अगर लक्षण बने रहते हैं तो इसका मतलब है कि शरीर सही तरीके से सप्लीमेंट को अब्सॉर्ब नहीं कर रहा या डोज सही नहीं है.

विटामिन डी का सही लेवल क्यों है जरूरी?
विटामिन डी शरीर के लिए एक बैलेंस गेम जैसा है. अगर ये कम हो जाए तो हड्डियां कमजोर होती हैं, इम्यूनिटी घटती है और थकान बढ़ जाती है. लेकिन अगर ये जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकता है. इसलिए इसका सही लेवल जानना बहुत जरूरी है.

क्या है ज्यादातर लोगों के लिए सही रेंज?
डॉ. शोवना के अनुसार, आम तौर पर 25(OH)D का लेवल 30 से 50 ng/ml के बीच होना अच्छी सेहत के लिए सही माना जाता है. ये रेंज बच्चों, बड़ों और ज्यादातर उम्र के लोगों के लिए ठीक रहती है.

बुजुर्गों और संवेदनशील ग्रुप्स को क्यों देना चाहिए थोड़ा ज्यादा ध्यान?
डॉ. ध्रुव कांत मिश्रा बताते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर विटामिन डी को उतनी अच्छी तरह अब्सॉर्ब नहीं कर पाता. इसलिए बुजुर्गों को थोड़ा ज्यादा सपोर्ट की जरूरत होती है. वो ये भी याद दिलाते हैं कि शिशु और प्रेग्नेंट महिलाओं को अपने विटामिन डी लेवल की रेगुलर जांच करानी चाहिए, क्योंकि इनके शरीर को एक्स्ट्रा पोषण की जरूरत होती है.

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एथलीट्स और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए कौन सा लेवल बेहतर?
डॉ. अमोघ दुधवेवाला के अनुसार, कुछ लोगों को सामान्य रेंज से थोड़ी ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. एथलीट्स, प्रेग्नेंट महिलाएं और वो बुजुर्ग जिनको ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या है, उनके लिए 40–65/70 ng/ml तक का लेवल सही माना जाता है. इससे उनकी हड्डियों, मसल्स और रिकवरी पर अच्छा असर पड़ता है.

किस लेवल पर बढ़ जाता है खतरा?
डॉ. दुधवेवाला ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर विटामिन डी का लेवल 100 ng/ml से ऊपर चला जाए तो शरीर में टॉक्सिसिटी का खतरा बढ़ जाता है. अगर ये 150 ng/ml तक पहुंच जाए तो ये क्लिनिकली खतरनाक माना जाता है. ऐसे में तुरंत डॉक्टर परामर्श की जरूरत पड़ती है.

लाइफस्टाइल बदलकर बढ़ाएं विटामिन डी
अगर आप विटामिन डी की कमी पूरी करना चाहते हैं तो केवल सप्लीमेंट्स लेना ही काफी नहीं है. डॉ. अमोघ दुधवेवाला बताते हैं कि लाइफस्टाइल में कुछ साधारण बदलाव भी बहुत फर्क डाल सकते हैं. सूरज की रोशनी में समय बिताना, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करना, वेट-बेयरिंग एक्सरसाइज करना और पौष्टिक आहार लेना बहुत जरूरी है.

अच्छे फूड्स में मछली, अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड दूध, ड्राई फ्रूट्स, दालें, हरी सब्जियां, किण्वित खाद्य और चीज शामिल हैं. ये कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन K के अच्छे स्रोत हैं. डॉ. ध्रुव कांत मिश्रा कहते हैं कि अगर बार-बार इंफेक्शन हो रहे हैं, इम्यूनिटी कम है या मूड खराब है, तो इसका मतलब है कि शरीर अभी भी विटामिन डी को ठीक से एब्सॉर्ब नहीं कर रहा.

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