क्या होता है हलाल फूड? टीम इंडिया के मेन्यू में शामिल किए जाने पर हो रहा है बवाल

कानपुर में भारत और न्यूजीलैंड के बीच टेस्ट सीरीज जल्द शुरू होने वाली है. होटल प्रबंधन ने भारतीय खिलाड़ियों के लिए भोजन का जो मेन्यू जारी किया है उसमें हलाल मीट परोसने की मंजूरी दी गई है. ये मेन्यू सामने आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर लोग BCCI को जमकर ट्रोल कर रहे हैं. लोग BCCI पर हलाल मीट को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं.

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हलाल मीट को लेकर घिरी BCCI हलाल मीट को लेकर घिरी BCCI

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 9:35 PM IST
  • इस्लाम में हलाल मीट की है अनुमति
  • सोशल मीडिया पर घिरा बीसीसीआई

25 नवंबर से कानपुर में भारत और न्यूजीलैंड के बीच टेस्ट सीरीज खेली जाएगी. होटल प्रबंधन ने भारतीय खिलाड़ियों के लिए भोजन का मेन्यू भी जारी कर दिया है. इसमें पोर्क और बीफ को बाहर रखा गया है लेकिन हलाल मीट परोसने की मंजूरी दी गई है. ये मेन्यू सामने आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर लोग BCCI को जमकर ट्रोल कर रहे हैं. लोग BCCI पर हलाल मीट को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर हलाल मीट क्या होता है और हर बार इसे लेकर विवाद क्यों हो जाता है.

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क्या होता है हलाल मीट- हलाल अरबी शब्द है और इसे इस्लामिक कानून के हिसाब से परिभाषित किया गया है. इस्लाम में हलाल मीट की प्रक्रिया का पालन करने की ही अनुमति है. इसमें जानवरों को धाबीहा यानी गले की नस और श्वासनली को काटकर मारना जरूरी माना गया है. मारते समय जानवरों का जिंदा और स्वस्थ होना भी जरूरी है. इसमें जानवरों के शव से सारा खून बहाया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान विशेष आयतें पढ़ी जाती हैं जिसे तस्मिया या शाहदा कहा जाता है. हलाल की प्रक्रिया पर अक्सर बहस भी होती है जैसे कि क्या इसमें जानवरों को बेहोश किया जा सकता है या नहीं.

हलाल फूड अथॉरिटी (HFA) के अनुसार, किसी भी जानवर को मारने के लिए उसे बेहोश नहीं किया जा सकता है. हालांकि, इसका पालन तब किया जा सकता है जब जानवर जीवित बच जाए और फिर उसे हलाल के तरीके से मारा जाता है. HFA की गाइडलाइंस के मुताबिक, बूचड़खाने पूरी तरह से हलाल के मुताबिक होने चाहिए. इसका मतलब है कि उनके पास कोई भी ऐसी जगह नहीं हो सकती जो इन मानकों को पूरा ना करती हो. 

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पूरी दुनिया में हलाल के कई तरीके- इंग्लैंड के रॉयल सोसायटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी (RSPCA) के अनुसार, जानवरों को बिना बेहोश किए मारना उनके अनावश्यक दर्द को बहुत ज्यादा बढ़ाता है. 2011 के यूके फूड स्टैंडर्ड एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि 84% मवेशी, 81% भेड़ और 88% मुर्गियां हलाल मांस के लिए मारे जाने से पहले बेहोश थीं. 1979 से ही यूरोपीय संघ में जानवरों को बेहोश करके मारा जाना अनिवार्य है, हालांकि धार्मिक कारणों से इसमें छूट भी दी सकती है. डेनमार्क सहित कुछ देशों ने जानवरों को बेहोश किए बिना मारने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं, ब्रिटेन सरकार का कहना है कि धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से मारने के तरीके पर प्रतिबंध लगाने का उसका कोई इरादा नहीं है.

मुसलमानों के लिए नियमों का खास ख्याल- ग्राहकों को हलाल प्रोडक्ट के बारे में सही जानकारी देने के लिए इसके उचित लेबलिंग करने की मांग दुनिया भर में होती रही है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, UK में मुस्लिम आबादी को ध्यान में रखते हुए रेस्टोरेंट में और वहां के दुकानदार हलाल प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन करते हैं.  हलाल फूड अथॉरिटी का कहना है कि मुस्लिम ग्राहकों को बनाए रखने के लिए बूचड़खानों में हलाल प्रक्रियाओं को अपनाना जरूरी है.

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हलाल और झटका मीट में अंतर- हलाल और झटका मीट दोनों ही तरीकों में जानवर की जान जाती है बस इसे मारने तरीका अलग-अलग होता है. झटका मीट में जानवर की गर्दन पर तेज धार वाले हथियार से वार किया जाता है ताकि एक झटके में उसकी जान चली जाए. वहीं, हलाल मीट के लिए जानवर की गर्दन और सांस वाली नस काट दी जाती है, जिसके कुछ देर बाद ही उसकी मौत हो जाती है. झटका का तरीका अपनाने वालों का कहना है कि इसमें जानवरों को दर्द से नहीं गुजरना पड़ता है क्‍योंकि एक झटके में ही उसकी जान ले ली जाती है. काटने से पहले उसे बेहोश भी कर दिया जाता है, ताकि उसे ज्यादा तकलीफ ना हो. वहीं, हलाल मानने वालों का कहना है कि सांस की नली कटने से जानवर खुद ही कुछ सेकेंड में मर जाता है. हलाल में जानवरों को मारने से पहले खूब खिलाया-पिलाया जाता है जबकि झटका में जानवरों को मारने से पहले उन्हें पहले से भूखा-प्‍यासा रखा जाता है. इस्‍लाम में हलाल के अलावा अन्‍य किसी भी तरह के मीट की मनाही है.

 

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